औद्योगिक प्रदूषण झेल रहे लोगों पर अब यूनियन कार्बाइड का खतरा! भोपाल से कचरा लाकर पीथमपुर में जलाने पर विरोध


भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को पीथमपुर में जलाने की योजना पर स्थानीय ग्रामीणों का विरोध जारी है। वे प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को लेकर आशंकित हैं, खासकर जब पहले किए गए परीक्षण असफल रहे थे। स्थानीय निवासियों की मांग है कि उनके जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए इस योजना पर पुनर्विचार किया जाए।


आदित्य सिंह
स्पेशल स्टोरी Updated On :

दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना, भोपाल गैस कांड की चालीसवीं बरसी की तैयारियों के बीच, सरकार और संबंधित विभागों द्वारा कई योजनाएं बनाई जा रही हैं। हालांकि, इन तैयारियों के दौरान कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जिन पर ज्यादा चर्चा नहीं हो रही, लेकिन इनसे लोग चिंतित और परेशान हैं।

भोपाल गैस हादसे की जमीन से लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूर स्थित मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर है। यहां के लोग नियमित रूप से प्रदर्शन कर रहे हैं, क्योंकि यूनियन कार्बाइड के अत्यधिक विषाक्त रासायनिक कचरे को यहां जलाने की योजना बनाई जा रही है, जो विश्व के सबसे खतरनाक कचरों में शामिल है। लोग अपना विरोध इसलिए जता रहे हैं क्योंकि उनके जीवन पर संभावित असर की आशंकाओं के बीच उन्हें लग रहा है कि भोपाल का प्रदूषण खत्म करने की वहीं  कोई बेहतर व्यवस्था नहीं की जा रही है और पीथमपुर के बहाने यहां के गांवों को इस जहरीले कचरे को ढ़ोने के लिए तैयार किया जा रहा है। ये लोग कहते हैं कि यह एक किस्म का भेदभाव है उनके क्षेत्र के साथ।

लोगों के मुताबिक यूनियन कार्बाइड हादसे और इसके बाद के इतिहास को देखें तो यह कहना मुश्किल नहीं है कि इस फैसले से उनका जीवन भी खतरे में पड़ सकता है लेकिन सरकार ने इसे लेकर जो फैसला किया है उस दौरान लोगों से भी कोई बातचीत नहीं की और न ही आश्वस्त करना ही जरूरी समझा कि ऐसा करना क्यों खतरनाक नहीं होगा।

पीथमपुर में जहां भोपाल का कचरा जलाया जाना है, उस पहाड़ी के आसपास इंदौर जिले के कई गांव बसे हैं और बहुत से कारखाने भी हैं।

 

पीथमपुर के सेक्टर नंबर दो की एक पहाड़ी, जो धार जिले में स्थित है और जिसकी तलहटी इंदौर जिले में है, यह स्थित एक कंपनी इस कचरे के निपटान के लिए चुनी गई है। सरकार ने फैसला किया है कि भोपाल गैस त्रासदी से निकला 337 मीट्रिक टन कचरा पीथमपुर औद्योगिक कचरा प्रबंधन कंपनी (पीआईडब्ल्यूएमसी) में जलाया जाएगा, जो इस क्षेत्र में कचरा जलाने वाली एकमात्र कंपनी है। साल 2021 में, सरकार ने इस कचरे के निपटान के लिए टेंडर जारी किए थे, जिसके बाद इस कंपनी को ठेका मिला।

करीब दस साल पहले यहां यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने के कई परीक्षण किए गए थे, लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार इनमें से करीब छह परीक्षण सफल नहीं रहे थे।

तस्वीर तारपुरा गांव की है, यूनियन कार्बाइड का कचरा आने की खबर के बाद से गांव में आए दिन लोग इसी चिंता में जुटते हैं।

अब फिर से इस कचरे को लाने की योजना के चलते तारपुरा गांव के लोग, जो इस फैक्ट्री के निकट रहते हैं, चिंतित हैं। फैक्ट्री के पास रहने वाले प्रकाश सरकड़े कहते हैं कि उनके घरों में हर दिन काले धुएं की परत जम जाती है। वे बताते हैं कि स्थानीय नगर पालिका से पानी न मिलने पर यहां का भूजल इतना दूषित है कि उसे पीना घातक हो सकता है। वे कहते हैं कि, “कई बार अधिकारियों और मीडिया को अपनी परेशानियां बता चुके हैं लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ, अब तो ऐसा लगता है कि शायद उन्हें जीने का अधिकार भी नहीं है।”

प्रकाश सरकड़े, तारपुरा निवासी

तुलसीराम यादव का कहना है कि गांव के कई लोग बीमार हो जाते हैं और यहां का पानी इतना दूषित है कि नहाने पर भी स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं। वे कहते हैं कि सरकारी डॉक्टर इस बात को मानते हैं कि यह सब उनके गांव में मौजूद प्रदूषण के चलते हो रहा है लेकिन सरकार नहीं मानती।

गांव की एक वृद्ध महिला गंगा बाई कहती हैं कि जब फैक्ट्री की चिमनी से धुआं निकलता है, तो आसपास रहना मुश्किल हो जाता है। अपने बारे में बताते हुए वे कहती हैं कि वे इस दौरान घर से बाहर निकलने से बचती हैं, क्योंकि बदबू और धुएं से उन्हें घुटन और उल्टियां होने लगती हैं। उनकी ही तरह एक अन्य महिला सजन बाई, जो दशकों से यहां रह रही हैं, कहती हैं कि उनके बच्चों को अब इस प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है, और भोपाल से कचरा लाए जाने के बाद हालात और खराब हो सकते हैं। ऐसे में उन्हें अपने बच्चों की चिंता है।

गंगा बाई, तारपुरा गांव की निवासी

प्रकाश सरकड़े बताते हैं कि उनकी बस्ती में लगातार लोग आंखों की बीमारियों और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं, जो प्रदूषण के कारण है। तुलसीराम यादव बताते हैं कि दस-बारह साल पहले जब यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाया गया था, तब कई लोग बीमार हो गए थे और उस दौरान आंखों में जलन इतनी बढ़ गई थी कि कई दिनों तक देखने में कठिनाई होती थी। इस बारे में अधिकारियों को भी पता है और नेताओं को भी लेकिन फिर एक बार कचरा यहीं जलाने का निर्णय लिया गया है। सजन बाई कहती हैं कि ऐसा लगता है कि बाकी लोगों से अलग कचरे को खत्म करने पर होने वाले प्रदूषण को ग्रहण करने के लिए इसी इलाके के लोगों को चुन लिया गया है।

 

भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा कहती हैं कि यूनियन कार्बाइड के कचरे को जलाने के दौरान डाइऑक्सिन और फुरान जैसे विषैले रसायन निकलते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं और पर्यावरण में लंबे समय तक मौजूद रहते हैं। ये रसायन कैंसर, प्रजनन संबंधी बीमारियों और मानव विकास में रुकावट जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकते हैं। रचना ढींगरा कहती हैं कि यह पदार्थ दुनिया में सबसे खतरनाक माने गए हैं और यह भी तय है कि पीथमपुर की इस कंपनी में कचरा जलने पर इन पदार्थों का उत्सर्जन नहीं रोका जा सकता है लेकिन फिर भी लोगों की चिंता नहीं की जा रही है।

रचना ढींगरा, सामाजिक कार्यकर्ता

पीथमपुर में कचरा जलाने का मप्र में लगातार विरोध होता रहा है, और इसमें पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया, गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर, और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे राजनेता भी शामिल रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक इन नेताओं ने तारपुरा और आसपास के लोगों को इस कचरे के संभावित खतरों पर चिंता जताई थी और लोगों के अधिकारों की वकालत की थी।

तारपुरा के लोग प्रदूषण से किस हद तक प्रभावित हैं इसका अंदाज़ा बस्ती के नजदीक ही बने बोकनेश्वर महादेव के मंदिर में पहुंचकर लग जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह एक प्राचीन मंदिर है जो पहले इस पहाड़ी पर हरियाली और साफ-मीठे पानी के लिए जाना जाता था। हरियाली यहां अब भी दिखाई देती है लेकिन साफ पानी नहीं। मंदिर में बने कओं का पानी लाल और काला पड़ चुका है।

प्रदूषण के चलते बोकनेश्वर मंदिर परिसर में स्थित एक कुएं का पानी काला पड़ चुका है।

यहां से बहने वाला बरसाती पानी लाल रंग का दिखाई देता है जिसमें गांव के बच्चे नहा रहे हैं। ये बच्चे बताते हैं कि फिलहाल पानी से कम खुजली हो रही है इसलिए वे यहां नहा रहे हैं लेकिन अक्सर ऐसा करना मुश्किल होता है। मंदिर के पुजारी परसराम पुरी कहते हैं कि अब वे कुएं का पानी पूजा में भी उपयोग नहीं करते और अपने जानवरों को भी यह पानी देने पर वे बीमार हो जाते हैं। पुरी कहते हैं कि अगर भोपाल गैस का कचरा आता है तो शायद जितना प्रदूषण वे अभी देख रहे हैं उससे भी कहीं ज्यादा हो जाएगा।

तारपुरा गांव पर बसे एक प्राचीन मंदिर के पास बहने वाले पहाड़ी नाले में बारिश के मौसम में भी लाल रंग का पानी आता है।

आज भले ही तारपुरा के लोगों की समस्याओं पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा हो, लेकिन बारह साल पहले हालात अलग थे। 2012 में, जब मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड के खतरनाक कचरे को जलाने का विरोध किया था, तब सरकार ने कोर्ट में तारपुरा गांव का हवाला देते हुए कहा था कि यह गांव कचरा निपटान स्थल से महज 250 मीटर की दूरी पर स्थित है और यहां के 105 मकानों में रहने वाले लोगों के हितों का ख्याल रखते हुए कचरे के इंसीनेरेशन से पहले उन्हें पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए।

पीथमपुर नगर पालिका की अध्यक्ष सेवंती बाई पटेल इस मुद्दे पर स्पष्ट रूप से कहती हैं कि वे भोपाल के कचरे को पीथमपुर लाने के सख्त खिलाफ हैं। उन्होंने बताया कि नगर पालिका परिषद में सभी दलों के पार्षदों ने इस फैसले का विरोध करने का प्रस्ताव पारित किया है। पटेल के अनुसार, उन्होंने प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारियों को पीथमपुर की समस्याओं और संभावित खतरों के बारे में अवगत कराया है

पीथमपुर में कचरा जलाए जाने पर खासा विरोध हो रहा है।

पीथमपुर नगरीय क्षेत्र में सरकार के इस फैसले का लगातार विरोध हो रहा है। यहां अब तक कई बार विरोध रैलियां निकाली जा चुकी हैं। पूर्व पार्षद और स्थानीय कांग्रेस नेता विपुल पटेल बताते हैं कि औद्योगिक क्षेत्र होना अच्छा है लेकिन पर्यावरण का बचाया जाना भी जरूरी है। वे बताते हैं कि पीथमपुर में जमीनी पानी पीने काबिल नहीं है ऐसे में नगर पालिका की लोगों तक पानी पहुंचाती है। तारपुरा जैसे गांवों में तो हालात और भी खराब हैं जहां जमीनी पानी में रासायनिक कचरे की बदबू आती है। वे कहते हैं कि इन लोगों को  विपुल पटेल कहते हैं कि वे हर हाल में इस फैसले का विरोध करते हैं और इसके खिलाफ पूरी लड़ाई लड़ रहे हैं, आने वाले दिनों में यह विरोध और भी तेज होगा।

 

पीथमपुर एक बड़ा इलाका है और यह धार विधानसभा क्षेत्र के तहत आता है। यहां की विधायक नीना वर्मा कहती हैं कि उन्हें इस बारे में जबसे पता चला है वे लगातार इस फैसले को बदलवाने के लिए प्रयास कर रहीं हैं। वे कहती हैं कि वे हमेशा से इसके विरोध में रहीं हैं और आगे भी इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेंगी। वर्मा के मुताबिक यह कचरा अगर पीथमपुर में जलाया जाता है तो एक बड़ी आबादी के लिए खतरनाक स्थिति होगी।

 

जिस जगह यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाया जाना है उसके आसपास के इलाके में करीब दो दर्जन गांव हैं जहां लाखों की संख्या में बसाहट रहती है। इनमें चीराखान, माचल, सिलोटिया, बगोदा, धन्नड़, गावला, किसानपुरा, भवरेगढ़, बजरंगपुरा, कलारिया, धारवरा, राजपुरा, बीजपुरा, बेटमा खुर्द, गालोंदा, ओरंगपुरा, भेसले, सोनवाय, तिही, सिरखंडी, तलावली, मोना, लिलेंडी शामिल हैं। ये गांव धार और इंदौर जिलों में आते हैं।

 

  मूल्यों पर हैं गहरे सवाल

इस विषय पर दशकों से सक्रिय रहे  इंदौर के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतक चिन्मय मिश्र कहते हैं कि यह केवल कचरा एक जगह से दूसरी जगह ले जाना है, जैसे भोपाल में इसे लेकर विवाद हुआ तो इसे पीथमपुर में ले आया गया। यहां के लोगों के बारे में सोचे बिना ही निर्णय लिया जा रहा है। वे कहते हैं कि क्या यह तय किया जा चुका है कि पीथमपुर का प्लांट कचरा जलाने के लिए पूरी तरह समर्थ है, अगर ऐसा है तो क्यों नहीं सरकार इसके बारे में पूरे दस्तावेज़ लोगों के सामने रखती।

चिन्मय मिश्र, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता

वे कहते हैं कि यहां सरकार को खुद सोचना चाहिए कि क्या वे इन लोगों के प्रति मानवता से पेश आ रहे हैं, क्या वे इनके साथ न्याय और समानता का व्यवहार कर रहे हैं! इसके अलावा क्या यहां के लोगों को अपनी ही जमीन पर प्रदूषण झेलने से इंकार करने की भी आज़ादी है! मिश्र कहते हैं कि यहां बात सरकार के द्वारा संवैधानिक मान्यताओं और कानूनी नियमों पालन की है, जहां किसी व्यक्ति के जीवन को नुकसान पहुंचाने पर सरकार किसी दूसरे व्यक्ति को कानून के तहत सजा दे सकती है तो फिर यहां तो सरकार खुद ही ऐसा कर रही है, फिर क्या सरकार खुद ये अपराध करने पर सज़ा से बच सकती है।

इस मामले के उपाय पर बात करते हुए चिन्मय मिश्र आगे कहते हैं कि  यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने के लिए 1250 डिग्री सेल्सियस का न्यूनतम तापमान की जरूरत होती है जो कि पीथमपुर की इस फैक्ट्री में नहीं होता है इसके लिए चाहें सीमेंट फैक्ट्रियों में की मदद ली जा सकती है जहां तापमान 1500 डिग्री सेल्सियस तक होता है। जहां यह कचरा बिना अवशिष्ट छोड़े आसानी से खत्म हो सकता है और लोगों को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा।

 

इन सभी गांवों के लोग किसी न किसी तरह से इस पहाड़ी पर मौजूद कारखानों से होने वाले प्रदूषण के चलते परेशान हैं। इंदौर जिले के देपालपुर में आने वाला चीराखान गांव भी ऐसा ही है। यहां के सचिन पटेल बताते हैं कि उनका गांव इसी पहाड़ी की तलहटी में है और यही वजह है कि गांव में पूरा जमीनी पानी प्रदूषित हो चुका है। एक दूसरे जिले और तहसील में आने वाले इस गांव को भी पीथमपुर नगर पालिका ही पानी की सप्लाई करती है क्योंकि इस हरे भरे गांव में भी पीने के पानी  की कोई सुविधा नहीं है। गांव के कुएं और ट्यूबवेल सभी रसायनयुक्त रंग-बिरंगा पानी देते हैं। वे कहते हैं कि उनके इलाके में बाहरी पानी ही पीना होता है क्योंकि पानी की हार्डनेस का स्तर (टीडीएस) करीब ढ़ाई हजार या इससे ज्यादा तक होता है।

दीपक पटेल, चीराखान गांव के रहवासी

यहां रहने वाले दीपक पटेल कहते हैं कि गांव के नालों में भी रसायनयुक्त जहरीला पानी ही आता है। जिसमें अगर पैर भी डाल दिया जाए तो दाने पड़ जाते हैं। वे कहते हैं कि अब गांव का पूरा पानी खराब हो चुका है।

पहाड़ी के नीचे का यही इलाका इंदौर के सबसे बड़े जलाशय यशवंत सागर का कैचमेंट एरिया है। यहां के नदी नालों से ही बारिश का पानी कई किमी का सफर तय करते हुए इंदौर के इस जलाशय तक पहुंचता है। दीपक पटेल कहते हैं कि उनके गांव के नजदीक से ही गंभीर नदी बहती है जो कई बार बुरी तरह प्रदूषित हो जाती है। वे कहते हैं कि अगर यूनियन कार्बाइड का कचरा जलने के बाद कोई भी रिसाव होता है तो वह इंदौर को भी प्रभावित करेगा।

इस बात को इंदौर के नागरिक भी मानते हैं। शहर में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता राहुल बनर्जी, आईआईटी खरगपुर से अपनी पढ़ाई पूरी कर मप्र के इसी इलाके में आकर बस गए हैं। वे कहते हैं कि भोपाल गैस त्रासदी के कचरे को नष्ट करने के इस मामले को गंभीरता से लेने की जरुरत है। राहुल बताते हैं कि इंदौर शहर पर इसके खतरे से बिल्कुल भी इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि तारपुरा की पहाड़ी से जहरीला पानी बहकर यशवंत सागर के कैचमेंट में ही जाता है। ऐसे में अगर हवा और पानी में से कुछ भी प्रदूषित होता है तो पीथमपुर और इंदौर दोनों के लोगों को इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे।

पीथमपुर की रामकी कंपनी जहां यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाया जाना है वहां बड़े पैमाने पर औद्योगिक कचरा जमीन में दबाकर रखा गया है।

पीथमपुर की रामकी इन्वायरोमेंट जिसे पीथमपुर औद्योगिक कचरा प्रबंधन कंपनी (पीआईडब्ल्यूएमसी) भी कहा जाता है, वहां कई हजार टन कचरा जमीन पर दबाकर रखा गया है, कचरे के इस ढ़ेर पर तो अब पेड़ पौधे तक उगने लगे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक इसमें एक बहुत छोटी सी मात्रा यूनियन कार्बाइड के कचरे की भी है जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वर्षों पहले यहां नष्ट करने के लिए परिक्षण के तौर पर पहली खेप में लाया गया था। ऐसे में इस पहाड़ से रिसने वाला पानी साफ नहीं होता है।

साल 2010 से पीथमपुर में कचरा जलाने का मप्र में लगातार विरोध होता रहा है, और इनमें आम लोगों से लेकर पूर्व राजनेता तक शामिल रहे। साल 2012 में पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया ने खुले तौर पर इससे असहमति जताई। वहीं गैस राहत मंत्री बाबूलाल गौर का भी यही रुख रहा। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसे लेकर खुश नहीं थे। जयंत मलैया इंदौर की स्थिति को लेकर खासे चिंतित रहे।

हालांकि इसके बाद भी साल 2012 से 15 के बीच परिक्षण जारी रहे और CPCB के दस्तावेजों के अनुसार, यूनियन कार्बाइड के कचरे के 7 परीक्षणों के दौरान तारपुरा गांव के निवासियों को डाइऑक्सिन और फ्यूरान्स (दुनिया के सबसे विषैले रसायनों में से एक) के उच्च स्तर के संपर्क में लाया गया था। रिपोर्ट्स बताती हैं कि उस समय इन तत्वों की मात्रा तय सीमा से 16 गुना अधिक स्तर पर पहुंच गई थी।

 

इंदौर पर इसके संभावित असर को लेकर यहां के राजनेता भी चिंतित हैं। इंदौर संसदीय क्षेत्र के सांसद शंकर लालवानी कहते हैं कि उन्हें इस बारे में खबर है लेकिन अब तक कोई ठोस प्रस्ताव उन तक नहीं पहुंचा है। हालांकि वे इस स्थिति को लेकर उच्चाधिकारियों से संपर्क करेंगे। ललवानी कहते हैं कि उन्हें लगता है कि अगर ऐसा फैसला लिया गया है तो उन्हें विश्वास है कि लोगों की सुरक्षा के बारे में अच्छी तरह सोचा गया होगा।

हालांकि भोपाल गैस त्रासदी के बाद दशकों से इस मुद्दे पर लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ ऐसा नहीं बिल्कुल नही मानते। भोपाल ग्रुप फ़ॉर इन्फार्मेशन एंड एक्शन की रचना ढ़ींगरा कहती हैं कि पीथमपुर में भोपाल गैस का कचरा पहले सही जलाने की मनाही थी और इसके बाद भी जब ट्रायल हुए तो वे फेल रहे हैं। वे कहती हैं कि भोपाल में हादसे वाली जगह के नीचे पंद्रह हजार टन से ज्यादा कचरा दबा हुआ है और यह 337 टन केवल उपरी कचरा है लेकिन यह बेहद खतरनाक है क्योंकि पीथमपुर की फैसिलिटी इतनी उम्दा नहीं है कि वहां यह कचरा करीब बारह डिग्री सेल्सियस पर जलाया जा सके और कोई अवशेष शेष न रहे। ढ़ींगरा के मुताबिक पीथमपुर में कचरा जलाने पर पहले भी फारएवर केमिकल कहलाने वाले डायक्सोसिन और फ्यूरान निकल चुके हैं और आगे ऐसा करने पर यह फिर होगा। फॉरएवर केमिकल यानी ऐसे रसायन जो उत्सर्जन के बाद सदा के लिए पर्यावरण में व्याप्त हो जाते हैं।

 

पीथमपुर में कचरा जलाना इसके नजदीक रहने वाले लोगों के लिए एक खतरनाक कदम होगा, तमिलनाडु में रहने वाले जानकार धर्मेश साहा भी यही मानते हैं। धर्मेश पूर्व में अंर्तराष्ट्रीय संस्था गाया GAIA (Global Alliance for Incinerator Alternatives) से भारतीय समन्वयक के रुप में  जुड़े रहे हैं और उन्होंने यूनियन कार्बाइड के कचरे को नष्ट करने के लिए उपयोग की जा रही इस युक्ति पर भी काम किया है। वे कहते हैं कि भारत में इस तरह की उच्च गुणवत्ता वाली कोई सुविधा नहीं है जहां यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाया जा सके। धर्मेश के मुताबिक पीथमपुर में जो इन्सिनिरेटर है वह कम क्षमता का है और अगर इसमें यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाया जाता है तो इसमें स्पिलेज की संभावना ज्यादा है।

पीथमपुर में रामकी कंपनी

राजनेता भले ही इस बारे में खुलकर बोल रहे हैं और अपनी चिंताएं जाहिर कर रहे हैं लेकिन सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग) और गैस राहत विभाग के अधिकारी इस मामले को लेकर कोई ज्यादा बात नहीं करना चाहते। सीपीसीबी के क्षेत्रीय निदेशक पी जगन से इस बारे में जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि खबरों में पहले ही काफी आ चुका है और इससे ज्यादा वे नहीं कह सकते। जगन ने कहा कि वे फिलहाल भोपाल में नहीं हैं और इस बारे में ज्यादा बात नहीं कर सकते। गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के उपसचिव कृष्णकांत दुबे ने बताया कि इस मामले में अभी कुछ नहीं है, आपसे हम आगे बात करेंगे।

 

धार जिले के कलेक्टर को इसे लेकर कोई खबर नहीं है। कलेक्टर प्रियांक शुक्ला के कहते हैं कि भले ही यह उनके जिले में हो रहा है लेकिन इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं है, वे कहते हैं कि इसे लेकर हमें भोपाल में संबंधित अधिकारियों से बात करनी चाहिए।

 

दुनिया का सबसे खतरनाक कचरा नष्ट करने की जिस प्रक्रिया से सबसे ज्यादा प्रभावित जनता हो रही है उसी विषय के बारे में जनता को कोई खास जानकारी नहीं दी जा रही है। यह एक परेशान करने वाली स्थिति है।

 

सामाजिक कार्यकर्ता राहुल बनर्जी कहते हैं कि यह खतरनाक कचरा है, ऐसे में इसके लिए कुछ कड़े नियम हैं। वे कहते हैं कि भले ही अधिकारियों ने यह प्रक्रिया भले ही गुप्त रखी है लेकिन भोपाल से कचरा इंदौर और पीथमपुर तक पहुंचाना आसान नहीं होगा। वे कहते हैं कि इस खतरनाक कचरे का ट्रांसपोर्टेशन करने के लिए कई कठिन नियम हैं जिनका पालन करना आवश्यक होगा। वे कहते हैं कि टांसपोर्ट करके भोपाल से पीथमपुर तक लाना ही एक बेहद कठिन प्रक्रिया है, इसके लिए विशेष कंटेनर बनाने होंगे। कंटेनर को लाने के लिए पूरा पुलिस बंदोबस्त होगा।

राहुल बनर्जी का कहना है कि खतरनाक कचरे का सुरक्षित परिवहन अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है। उन्होंने बताया कि इस कचरे का परिवहन, चाहे वह उत्पादन स्थल पर हो या उपचार और निपटान सुविधा (TSDF) तक, सही तरीके से होना चाहिए।

राहुल बनर्जी, सामाजिक कार्यकर्ता, इंदौर

राहुल बनर्जी ने जोर देकर कहा कि कचरे के कंटेनरों को लीक-प्रूफ और यांत्रिक रूप से स्थिर होना चाहिए, साथ ही उन पर स्पष्ट लेबल होना चाहिए, जिसमें कचरे के प्रकार, खतरे की जानकारी और आपातकालीन उपाय शामिल हों। उन्होंने कहा कि ट्रांसपोर्ट वाहनों को खतरनाक कचरे के परिवहन के लिए विशेष अनुमतियां प्राप्त होनी चाहिए और उन पर “HAZARDOUS WASTE” लिखा होना चाहिए, साथ ही आपातकालीन संपर्क नंबर भी दिए जाने चाहिए।

 

यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निपटान के लिए भारत में कई राज्य सरकारों ने इसे अपने राज्य में जलाने से मना कर चुकी हैं। साल तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने साल 2010 में गुजरात सरकार ने इसे जलाने से इंकार करते हुए इसे पर्यावरण और जनस्वास्थ्य के लिए खतरा बताया था। इसके बाद साल 2013 में महाराष्ट्र सरकार ने भी जनता और पर्यावरणीय समूहों के विरोध के चलते इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया, क्योंकि लोगों को विषैले तत्वों के उत्सर्जन से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम का डर था। साल 2015 में तमिलनाडु सरकार ने भी इसी तरह के कारणों से कचरे को जलाने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि इससे राज्य के निवासियों और पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो सकता है। इन घटनाओं में सभी राज्य सरकारों ने पर्यावरण और जनस्वास्थ्य के संभावित खतरों को प्राथमिकता दी और कचरे के निपटान के लिए वैकल्पिक और सुरक्षित उपायों की मांग की।

 

ऐसा नहीं है कि यूनियन कार्बाइड का कचरा केवल देश में ही जलाया जा सकता है इसे विदेश ले जाकर जलाने के भी प्रस्ताव आए हैं।

गुजरात सरकार भी इस कचरे को जलाने से पहले मना कर चुकी है।

2012 में, जर्मन कंपनी GIZ (Deutsche Gesellschaft für Internationale Zusammenarbeit) ने 345 एमटी यूनियन कार्बाइड कचरे को करीब छह हजार किमी दूर जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में ले जाकर जलाने की पेशकश की थी। तब इस इन्सिनरेशन की कुल लागत 54 करोड़ रुपये होती लेकिन अब इसके लिए सरकार 126 करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

 

केंद्र सरकार में महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर भी धार जिले से ही आती हैं। पीथमपुर के लोगों ने उनसे कचरा न जलाने के लिए मांगी थी। सावित्री ठाकुर कहती हैं कि कि वे नहीं चाहतीं कि यहां यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाया जाए। इसके लिए वे संबंधित विभाग के लोगों से मिलेंगी और केंद्रीय स्तर पर भी इस बात को उठाएंगीं।

 

सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा कहती हैं कि फिलहाल जो तरीका अपनाया जा रहा है वह गलत है क्योंकि कचरे के एक बहुत छोटे से हिस्से को खत्म करने के लिए बहुत बड़ी आबादी को खतरे में डाला जा रहा है जबकि इसके बाद भी भोपाल में हजारों टन कचरा शेष रहेगा। ढींगरा कहती हैं कि कचरा विशेष तौर पर बनाए गए स्टैनलैस स्टील के बड़े ड्रमों में हमेशा के लिए रखा जा सकता है। वेस समझाती हैं कि कचरा लीक न हो फिलहाल हमारे पास बस यही इसका उपाय है क्योंकि इसे जलाने पर विशाक्त रसायन तो निकलेंगे ही। रचना के मुताबिक .यह तरीका कहीं ज्यादा सस्ता होगा लेकिन फिर भी अधिकारी महंगे तरीकों को ही अपना रहे हैं, ऐसा क्यों हो रहा है ये समझना मुश्किल नहीं।


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