हिन्दू पंचांग के मतानुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक, पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। शरद पूर्णिमा को कौमुदी व्रत, कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है।
कई धर्मावलंबियों का मानना है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचा था।
शरद पूर्णिमा की पूजन विधि
इस दिन स्नान कर उपवास रखे। तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित कर उनकी पूजा करें। सायंकाल में चंद्रोदय होने पर सोने, चांदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाएं।
इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करें, उसे चन्द्रमा की चांदनी में रखें। जब एक प्रहर यानी 3 घंटे बीत जाएं, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। इसके बाद भक्तिपूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएं। मांगलिक कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें।
शरद पूर्णिमा व्रत की कथा
एक साहुकार की दो बेटियां थीं। दोनों ही बेटियां शरद पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। बड़ी बेटी पूरे मनोयोग से अपना व्रत पूरा करती थी जबकि छोटी बेटी व्रत को अधूरा छोड़ देती थी। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि छोटी बेटी की संतान पैदा होते ही मौत के मुंह में चली जाती थी। उसने कई पंडितों से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा को पूरे विधि-विधान से पूजा करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।
उसने शरद पूर्णिमा का व्रत किया। तब छोटी बेटी के यहां संतान पैदा हुई, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गई। उसने अपनी संतान के शव को लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और उसी जगह पर बैठने को कहा, जहां उसने अपनी संतान को उसने कपड़े से ढंका था। बड़ी बहन जब बैठने लगी, तो उसका घाघरा बच्चे को छू गया और बच्चा रोने लगा।
इस पर बड़ी बहन बोली कि तुम मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य और पुण्य से यह जीवित हुआ है। इस घटना के बाद से वह हर वर्ष शरद पूर्णिमा का पूरा व्रत करने लगी।