नई दिल्ली। आज पूरे देश में महावीर जयंती मनाई जा रही है। महावीर जयंती जैन समुदाय का विशेष पर्व होता है। इस जयंती को भगवान महावीर स्वामी के जन्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वे तीर्थंकर है यानि उनसे पहले जैन धर्म के 23 तीर्थंकर हो चुके हैं। जैन धर्म में तीर्थंकर या अरिहंत अथवा जिनेन्द्र उन 24 व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो खुद अपने तप के माध्यम से आत्मज्ञान जिसे जैन धर्म में ‘केवल ज्ञान’ कहा जाता है प्राप्त करते है।
महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 540 वर्ष पूर्व), वैशाली गणराज्य के कुण्डग्राम में अयोध्या इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार हुआ था।
तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया।
क्या है जैन दर्शन –
- जैन दर्शन सबसे प्राचीन भारतीय दर्शन है। इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जैन धर्म की मान्यता अनुसार 24 तीर्थंकर समय-समय पर संसार चक्र में फसें जीवों के कल्याण के लिए उपदेश देने इस धरती पर आते है।
- लगभग छठी शताब्दी ई॰ पू॰ में अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर के द्वारा जैन दर्शन का पुनराव्रण हुआ।
- इसमें वेद की प्रामाणिकता को कर्मकाण्ड की अधिकता और जड़ता के कारण मिथ्या बताया गया है।
- जैन दर्शन के अनुसार जीव और कर्मो का यह सम्बन्ध अनादि काल से है। जब जीव इन कर्मो को अपनी आत्मा से सम्पूर्ण रूप से मुक्त कर देता है तो वह स्वयं भगवान बन जाता है। लेकिन इसके लिए उसे सम्यक पुरुषार्थ करना पड़ता है। यह जैन धर्म की मौलिक मान्यता है।
- जैन दर्शन ‘अर्हत दर्शन’ के नाम से भी जाना जाता है। जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकर (महापुरूष, जैनों के ईश्वर) हुए जिनमें प्रथम ऋषभदेव तथा अन्तिम महावीर (वर्धमान) हुए।
महावीर स्वामी की शिक्षाएं –
- जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी ने अपनी तपस्या के दौरान ही अपनी शिक्षाओं और उपदेशों के आधार से लोगों को जीवन जीने की रीत बताई थी।
- उन्होंने इसके साथ ही सत्य और अहिंसा के पथ पर चलने का ज्ञान भी प्रदान किया। महावीर स्वामी के द्वारा बताई गई शिक्षाएं और उपदेश ही जैन धर्म के प्रमुख पंचशील सिद्धांत रूप में आज भी मौजूद है। उनके दिए गए सिद्धांतों में सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और ब्रह्रमचर्य का समावेश होता है।
- पशु के प्रति होने वाले अत्याचार, पशु को बलि चढ़ाने की कुपरम्परा और लोगों के भीतर चल रहे जातिवाद का विरोध भगवान महावीर ने किया था। जिसके साथ-साथ महावीर के अनुसार इन सिद्धान्तों और शिक्षाओं को आचरण में आकर कोई भी इंसान एक सच्चा व्यक्ति बन सकता है उन्होंने उसका संदेश प्रदान किया।
जैन धर्म और उसकी शिक्षाएं –
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जब भगवान महावीर ने जैन धर्म का प्रचार किया तब यह धर्म प्रमुखता से सामने आया। ‘जैन’ शब्द जिन या जैन से बना है जिसका अर्थ है ‘विजेता’। तीर्थंकर महावीर के समय तक संगठित रही जैन परंपरा ईसा की तीसरी सदी में दो भागों में विभक्त हो गयी : दिगंबर और श्वेताम्बर।
जैन धर्म का मुख्य उद्देश्य मुक्ति की प्राप्ति है, जिसके लिये किसी अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती है।
जैन धर्म के अनुसार इसे तीन सिद्धांतों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है जिसे थ्री ज्वेल्स या त्रिरत्न कहा जाता है, ये हैं- सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान, सम्यकचरित
इसके अलावा जैन धर्म के पाँच सिद्धांत है –
अहिंसा: जीव को चोट न पहुँचाना
सत्य: झूठ न बोलना
अस्तेय: चोरी न करना
अपरिग्रह: संपत्ति का संचय न करना
और ब्रह्मचर्य: सात्विक जीवन
जैन धर्म का मानना है कि ब्रह्मांड और उसके सभी पदार्थ या संस्थाएँ शाश्वत है यानि समय के संबंध में इसका कोई आदि या अंत नहीं है। ब्रह्मांड स्वयं के ब्रह्मांडीय नियमों द्वारा अपने हिसाब से चलता है।
जैन मानते हैं कि सभी पदार्थ लगातार अपने रूपों को बदलते या संशोधित करते हैं। ब्रह्मांड में कुछ भी नष्ट या निर्मित नहीं किया जा सकता है।
जैन के अनुसार मुक्त आत्मा के पास अनंत ज्ञान, अनंत दृष्टि, अनंत शक्ति और अनंत आनंद है। यह जीव जैन धर्म का देवता है।
जैन धर्म में अनेकांतवाद की एक मौलिक धारणा है कि कोई भी इकाई एक बार में स्थायी होती है, लेकिन परिवर्तन से भी गुजरती है जो निरंतर और अनिवार्य है। अनेकांतवाद के सिद्धांत में कहा गया है कि सभी संस्थाओं के तीन पहलू होते हैं: द्रव्य, गुण, और पर्याय।
वहीं जैन धर्म में स्यादवाद का सिद्धांत महावीर का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है जिसका अर्थ है हमारा ज्ञान सीमित और सापेक्ष है तथा हमें ईमानदारी से इसे स्वीकार करते हुए अपने ज्ञान के असीमित और अप्रश्नेय होने के निरर्थक दावों से बचना चाहिये। किसी वस्तु को देखने के तरीके (जिसे नया कहा जाता है) संख्या में अनंत हैं।
जैन समुदाय आज अपनी व्यवहारिक कुशलता और व्यावसायिक नैतिकता के लिए जाना जाता है और आज जैन देश के सबसे धनी अल्पसंख्यक समुदाय में से एक हैं।
जैन धर्म सभी में बौद्धिक और सामाजिक सहिष्णुता की भावना जगाता है। आज अपरिग्रह का सिद्धांत उपभोक्तावादी आदतों को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है क्योंकि लालच और स्वामित्व की प्रवृत्ति में बहुत वृद्धि हुई है। वहीं कार्बन उत्सर्जन करने वाली अवांछित विलासिता को दूर कर इस विचार से ग्लोबल वार्मिंग में भी सुधार किया जा सकता है।