दीपावली के अगले दिन यानी आज शुक्रवार को कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के अवसर गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, और यह विशेष पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्रदेव के अहंकार को समाप्त कर गोकुलवासियों की रक्षा करने की कथा से जुड़ा हुआ है। इस दिन की महत्ता सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि प्राकृतिक संतुलन और सामूहिक समर्पण का प्रतीक भी है। गोवर्धन पूजा में भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, जो हमें यह याद दिलाता है कि हमारी प्रकृति से आत्मीयता और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे ऊपर है। ग्लोबल वार्मिंग के दौर में यह प्राचीन परंपरा बेहद सकारात्मक संदेश देती है।
यह त्योहार जीवन में सरलता, संतुलन, और पर्यावरण के प्रति आदर को प्रकट करने का अवसर है, जो हमारी संस्कृति और आध्यात्मिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है।
गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक महत्व गहरे धार्मिक और जीवन-दर्शन से जुड़ा है। यह पर्व सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय जीवन-शैली में निहित प्रकृति और देवताओं के साथ हमारे संबंधों का प्रतीक है। गोवर्धन पर्वत की पूजा करना, किसी एक पर्वत या देवता की आराधना मात्र नहीं, बल्कि यह सजीव और निर्जीव प्रकृति की शक्ति और उसकी सुरक्षा का संकल्प है, जो हमें श्रीकृष्ण के जीवन-दर्शन में दिखाई देता है।
आध्यात्मिक संदर्भ में गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा यह स्मरण कराती है कि जीवन की रक्षा और उसे सहेजने की जिम्मेदारी हमारे हाथों में है। श्रीकृष्ण ने इंद्र के क्रोध को झेलते हुए गोकुलवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर यह संदेश दिया था कि मनुष्य के पास विपत्तियों से निपटने का सामर्थ्य है। इस पर्व में यह संकल्प किया जाता है कि प्रकृति का हर रूप हमारी परंपरा, संस्कृति और धर्म का हिस्सा है और उसकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है।
गोवर्धन पूजा के दौरान की जाने वाली परिक्रमा एक तरह का आत्म-चिंतन है, जिसमें हम प्रकृति से अपने जुड़े होने का अनुभव करते हैं। यह एक प्रतीकात्मक कार्य है जो यह बताता है कि हम प्रकृति की सुरक्षा और उसमें निहित संतुलन को बनाए रखने के लिए उत्तरदायी हैं।
गोवर्धन पूजा 2021 मुहूर्त
प्रातःकालीन मुहूर्त:
समय: सुबह 06:36 AM से 08:47 AM
अवधि: 2 घंटे 11 मिनट
सायंकालीन मुहूर्त:
समय: दोपहर 03:22 PM से 05:33 PM
अवधि: 2 घंटे 11 मिनट
प्रतिपदा तिथि:
प्रारंभ: 5 नवम्बर 2021 को 02:44 AM
समाप्ति: 5 नवम्बर 2021 को 11:14 PM
पूजा के मंत्र और आराधना
गोवर्धन पूजा के समय उच्चारित किए जाने वाले मंत्र और स्तुति अत्यंत पवित्र और गहरे अर्थों से जुड़े हैं। इन मंत्रों का उद्देश्य सिर्फ शब्दों का पाठ नहीं, बल्कि गहन ध्यान और श्रद्धा के साथ भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता में एकाग्रता को बढ़ाना है।
1. गोवर्धन पूजन मंत्र
“ॐ गोवर्धन धराधराय नमः।”
यह मंत्र गोवर्धन पर्वत की स्थिरता और शक्ति को नमन करने का प्रतीक है। इस मंत्र से हम उस शक्ति का आह्वान करते हैं जो हमारे जीवन को स्थिरता और संतुलन प्रदान करती है।
2. कृष्ण गायत्री मंत्र
“ॐ देवकीनंदनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्॥”
यह मंत्र श्रीकृष्ण के दिव्य गुणों का ध्यान करते हुए मन और आत्मा को शुद्ध करने के लिए जपा जाता है। यह हमें उनके प्रति हमारी आस्था और उनकी कृपा से जुड़े रहने का मार्ग दिखाता है।
3. अन्नकूट स्तुति
“अन्नकूटाय विद्महे गोवर्धनाय धीमहि। तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्॥”
यह स्तुति अन्नकूट के पर्व में की जाने वाली अर्पण की भावना का प्रतीक है। हम इसे अपने जीवन के प्रति समर्पण के रूप में लेते हैं, जहाँ भोग का कोई उद्देश्य नहीं, बल्कि आराध्य के प्रति निष्ठा और सेवा है।
गोवर्धन पूजा का आत्मिक और प्रकृति संरक्षण का संदेश
यह पूजा हमें यह सिखाती है कि प्रकृति का संतुलन और उसका आदर जीवन का आधार है। यह पर्व हमें हमारे चारों ओर की प्रकृति की सुरक्षा और उसमें निहित ऊर्जा का स्मरण कराता है। श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन की गहन सच्चाई और मानवीय अस्तित्व के साथ प्रकृति की एकता का परिचायक है।
इस प्रकार, गोवर्धन पूजा न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति आदर और उसमें निहित संतुलन की रक्षा का संकल्प भी है। इसका पालन केवल अनुष्ठान मात्र न होकर, हमारी दैनिक जीवन में इस दर्शन को आत्मसात करना है, जहाँ हम प्रकृति के सभी तत्वों के साथ सामंजस्य और उनके संरक्षण में अपना योगदान दें।
गिरिराज शरण…
गोवर्धन पूजा विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र में मनाई जाती है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की एक घटना से जुड़ा है। उस समय बृज के लोग हर साल इंद्रदेव की पूजा करते थे, क्योंकि वे बारिश और फसलों के लिए उन्हें महत्वपूर्ण मानते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने लोगों को समझाया कि हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यह हमारी गायों और पर्यावरण के लिए अन्न और जल का स्रोत है। इंद्रदेव को यह बात ठीक नहीं लगी और उन्होंने बृज क्षेत्र पर भीषण बारिश कर दी। तब श्रीकृष्ण ने सभी को गोवर्धन की तलहटी में चलने के लिए कहा, उन्होंने लोगों को समझाया कि इसी पर्वत ने हमारी सदैव रक्षा की है, हमें वन, वनस्पति दिए हैं। ऐसे में हमारी रक्षा भी गोवर्धन ही करेंगे।
श्री कृष्ण ने तलहटी में खड़े होकर अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों की रक्षा की। इस घटना ने इंद्र का अहंकार तोड़ा, और तभी से गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाने लगा।
बालि प्रतिपदा कथा
राजा महाबलि, जिन्हें उनकी प्रजा बेहद पसंद करती थी, अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। इंद्र की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर महाबलि से तीन कदम जमीन मांगी। एक कदम में पृथ्वी और दूसरे में स्वर्ग नापने के बाद तीसरे कदम के लिए महाबलि ने अपना सिर आगे कर दिया। भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक भेज दिया लेकिन उनकी इच्छा पर उन्हें वर्ष में एक दिन अपनी प्रजा से मिलने की अनुमति दी। इस दिन को बालि प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है।