दिवाली 2024: आखिर कब मनाई जाएगी दीपावली, इसे लेकर दो तरह के मत हैं। और इन्हीं मतों में उलझी है जनता। ऐसे में जरूरी है लोग दोनों मतों को जानें और अपनी बुद्धि से निर्णय लें।
इस वर्ष दीपावली की तिथि को लेकर दो मत हैं और दोनों का आधार अलग-अलग शास्त्रीय और ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित है। पहला मत 1 नवंबर को दीपावली मानता है, जबकि दूसरा 31 अक्टूबर को इस पर्व का समर्थन करता है। आइए, इन दोनों मतों को समझते हैं।
पहला मत: 1 नवंबर को दीपावली मनाना शास्त्र-सम्मत क्यों है?
इस वर्ष कई प्रतिष्ठित धार्मिक पीठों, मंदिरों और आचार्य पीठों ने 1 नवंबर 2024 को दीपावली मनाने का समर्थन किया है। पुरी, द्वारका, कांची, और काशी जैसे महत्वपूर्ण स्थानों के शंकराचार्यों और विद्वानों के अनुसार, दीपावली का पर्व 1 नवंबर को मनाना शास्त्र-सम्मत है क्योंकि इस दिन अमावस्या तिथि सूर्योदय के समय प्रभावी है। उनके अनुसार, अमावस्या तिथि सूर्योदय के साथ होनी चाहिए, जो कि 1 नवंबर को हो रही है।
बड़े कारण:
उदयाव्यापिनी तिथि का सिद्धांत: निम्बार्की और वैष्णव संप्रदायों के अनुसार, किसी भी पर्व की तिथि सूर्योदय के समय देखी जाती है। इस मान्यता के अनुसार, जिस दिन सूर्योदय के साथ अमावस्या हो, वही तिथि दीपावली के लिए उपयुक्त मानी जाती है। चूँकि 1 नवंबर को सूर्योदय के समय अमावस्या है, इसलिए इसे दीपावली के लिए सही माना गया है।
प्रदोष व्यापिनी अमावस्या का महत्व:
हरिद्वार और काशी के प्रमुख विद्वानों के अनुसार, दीपावली का पर्व तभी शास्त्र सम्मत होता है जब अमावस्या प्रदोष काल (संध्याकाल) में व्यापी हो। इस वर्ष प्रदोष काल में अमावस्या 1 नवंबर को है, इसलिए इसी दिन को दीपावली का उपयुक्त समय माना जा रहा है।
विभिन्न पंचांगों और विद्वानों का समर्थन
1. मध्य प्रदेश के प्रमुख पंचांग: उज्जैन का निर्णयसागर पंचांग, विदिशा का देवज्ञ प्रबोध पंचांग, और नीमच का बद्रिकाशी पंचांग, सभी 1 नवंबर को दीपावली मानने का समर्थन कर रहे हैं।
2. राजस्थान, गुजरात, और उत्तराखंड के पंचांग: जयपुर का श्री मार्तंड पंचांग, गुजरात का संदेश पंचांग और नैनिताल का श्री गणेश मार्तंड पंचांग भी 1 नवंबर को दीपावली के लिए उपयुक्त मानते हैं।
3. उज्जयिनी विद्वत परिषद और काशी के शंकराचार्य: उज्जयिनी विद्वत परिषद के अध्यक्ष और काशी के प्रमुख शंकराचार्य ने भी 1 नवंबर को दीपावली का दिन सर्वथा उचित माना है। उनके अनुसार, शास्त्रों के निर्देशानुसार दीपावली तभी मनानी चाहिए जब अमावस्या प्रदोष काल में होगा।
दूसरा मत: 31 अक्टूबर को दीपावली क्यों मना रहे हैं?
जयपुर के केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और अखिल भारतीय विद्वत परिषद द्वारा 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने का सुझाव दिया गया है। इन विद्वानों के अनुसार, 31 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल और अर्धरात्रि दोनों में व्यापी होगी, जो लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, अमावस्या की रात को देवी लक्ष्मी घर-घर जाकर समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं।
क्या हैं कारण!
प्रदोष काल और अर्धरात्रि का संयोग: 31 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल के साथ-साथ अर्धरात्रि में भी विद्यमान रहेगी, जिससे यह दिन लक्ष्मी पूजन के लिए अनुकूल है।
ज्योतिषीय गणना: ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 31 अक्टूबर को अमावस्या का प्रभाव अधिक है, जिससे इस दिन लक्ष्मी पूजन करना लाभदायक रहेगा।
अमावस्या तिथि: हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर की दोपहर से शुरू होकर 1 नवंबर की शाम तक प्रभावी रहेगी। ऐसे में कई विद्वान मानते हैं कि 31 अक्टूबर की रात को दीपावली मनाना तर्कसंगत है।
अपनी श्रद्धा के अनुसार तिथि का चयन कर सकते हैं…
इस वर्ष दीपावली की तिथि को लेकर दो मत हैं, जो शास्त्रीय परंपराओं और ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित हैं। श्रद्धालु अपनी धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं, और सुविधा अनुसार 31 अक्टूबर या 1 नवंबर को दीपावली मना सकते हैं। दोनों तिथियों के अपने-अपने आधार हैं, इसलिए किसी भी तिथि का चयन करते हुए श्रद्धा के साथ पूजा करना ही इस पर्व का असली उद्देश्य है।