साल 2020 भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे ख़राब साल रहा है। इस लिहाज़ से यह साल आज़ाद भारत का सबसे ख़राब साल साबित हुआ है। जब देश की अर्थव्यवस्था 23 प्रतिशत पीछे चली गई।
देश के मध्यम वर्गीय यानी मिडिल क्लास परिवारों के लिए तो यह साल और भी बुरा रहा है। आमदनी में रुकावट, कमी और फिर नौकरी का संकट। इसके बाद जो बाकी था उसे पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दामों यानी महंगाई और सरकार की नीतियों ने पूरा कर दिया। इस साल इस तपके ने सभी कुछ झेला है।
देश में मिडिल क्लास परिवारों ने अब तक काफ़ी तरक्की की है लेकिन पिछले कुछ सालों से इस वर्ग पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है और अब यह दबाव इतना बढ़ गया है कि मिडिल क्लास की आर्थिक स्थिति सबसे ख़राब दौर में कही जा सकती है। कम से कम देश में इस साल हुए सर्वे तो यही कहते हैं…
बीते साल से कम हो गए नौकरी पेशा…
सीएमआईई यानी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी के हालिया सर्वे के मुताबिक मध्यमवर्गीय लोगों की नौकरी में कमी आई है।
नौकरीपेशा यानी मासिक वेतन भोगियों की बात करें तो उनकी संख्या में साल 2020 में काफी कमी आई है। इससे पहले 2019 में नौकरी पेशा लोगों की संख्या करीब 8.70 करोड़ थी यानी करीब 22 प्रतिशत लोगों के पास नियमित वेतन की नौकरी थी।
सर्वे के मुताबिक नवंबर 2020 में नौकरीपेशा लोगों की संख्या 6.83 करोड़ हो चुकी है। यह कमी करीब 21 प्रतिशत की रही है यानी बीते साल अगर सौ लोगों के पास नौकरी थी तो इस साल उनमें से 21 लोगों की नौकरी जा चुकी है।
आय गिरी, रोज़गार के साधन कम हुए और महंगाई बढ़ी…
आरबीआई का कन्ज़्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे भी मिडिल क्लास की परेशानियों की काफ़ी कुछ कहानी कहता है। इस सर्वे में लोगों से बीते साल के मुकाबले उनकी कमाई में आए परिवर्तनों की जानकारी ली जाती है। हर दो महीने में नियमित रूप से होने वाले इस सर्वे के परिणाम इसी साल नवंबर में आए हैं जिसके मुताबिक इस बार के आंकड़े बीते दस सालों के मुकाबले सबसे ख़राब हैं।
सर्वे में भाग लेने वाले 63 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनकी आय बीते साल की तुलना कम हुई है। इसके अलावा जब लोगों से यह पूछा गया कि पिछले साल के मुकाबले उनके रोज़गार के साधनों में क्या वे बढ़ोत्तरी देख पा रहे हैं या फिर इनमें कमी आई है और या इस स्थिति में कोई अंतर नहीं आया है।
इस सवाल के जवाब में सर्वे में भाग लेने वाले लोगों में से 80 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि पिछले साल की तुलना में उनके रोज़गार के उपाय कम हो गए हैं।
इस सर्वे में 90 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि ज़रूरी चीज़ों के दाम अब काफी बढ़ गए हैं।
इससे भी परेशान करने वाली बात यह है कि इन सवालों पर लोगों के यह जवाब तब हैं जब दावा किया जा रहा है कि देश में वित्तीय स्थिति सुधर रही है।
लॉक डाउन के ठीक बाद जुलाई और सितंबर तक सर्वे के आंकड़े मौजूदा आंकड़ों से बेहतर थे। उस समय कम लोगों ने कहा था कि उनकी आय और रोज़गार के साधन कम हो गए हैं और अब जब स्थिति सुधरने की बात की जा रही है तो ये सबसे ज़मीनी सर्वे ज़मीन की सच्चाई भी दिखा रहे हैं। ऐसे में ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि देश की अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर आ गई है।
कम होती जा रही है हमारी बचत…
एक अन्य सर्वे की बात करें तो उसमें भी मिडिल क्लास की हालत कोई बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं नज़र आ रही है। लोकल सर्किल नाम की एक सर्वे एजेंसी साल में दो बार मूड ऑफ का कन्ज़्यूमर नाम का एक सर्वे करती है। इसी दिसंबर में इस सर्वे के परिणाम आए हैं।
इस सर्वे में शामिल मध्यमवर्गीय लोगों से जब उनकी बचत के बारे में पूछा गया तो 68 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उनकी बचत पिछले साल के मुकाबले कम हो गई है।
इन 68 प्रतिशत लोगों ने इसके तीन कारण गिनाए हैं। इन कारणों में लोगों की नौकरी जाना, उनके वेतन में कटौती होना या उनका वेतन देर से मिलना शामिल है।
सामान खरीदने वालों में भी आई कमी...
सीएमआईई के एक और सर्वे में कन्ज़ूमर ड्यूराबल्स यानी फ्रिज, टीवी या गाड़ी जैसी लंबे समय तक चलने वाले सामान खरीदने वाले ग्राहकों में भी कमी आई है।
सर्वे के मुताबिक 2020 तक 27 प्रतिशत लोग यह कह रहे थे कि वे आगे जाकर ऐसा कोई सामान खरीदेंगे। लॉक डाउन के दौरान मई में इनकी संख्या 1.2 प्रतिशत हो गई। इसके बाद अक्टूबर और नवंबर में दावा था कि बाजार सामान्य हो जाएगा लेकिन अक्टूबर में ऐसे मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या केवल 7.4 प्रतिशत रही और नवंबर में तो यह 6.5 प्रतिशत रही है।
मिडिल क्लास पर ख़ासा दबाव…
ऐसे में समझा जा सकता है कि मध्यमवर्गीय परिवारों पर कितना ज़्यादा दबाव है। इसी वर्ग पर सबसे ज़्यादा टैक्स और महंगाई की मार पड़ती है। सरकार से या तो बड़े उद्योगपतियों को छूट मिल जाती है या फिर बेहद गरीब लोगों को लेकिन मध्यमवर्गीय लोगों को सरकार से किसी भी तरह की राहत शायद ही कभी मिलती है। मिडिल क्लास देश के आर्थिक ताने-बाने को संभाले हुए हैं ऐसे में अब इस वर्ग को संभालना भी सरकार की ज़िम्मेदारी है।
(उक्त जानकारी वरिष्ठ पत्रकार ऑनिन्द्यो चक्रवर्ती के न्यूज़ क्लिक पर इकॉनॉमी का हिसाब-किताब कार्यक्रम से ली गई है)