विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवसः जीवन में खुश रहने व सामंजस्य बनाए रखने का कौशल हो रहा कम

ब्रजेश शर्मा
नरसिंहपुर Published On :
World-Suicide-Prevention-Day-2022

समाज में बढ़ते अवसाद और लोगों में कम हो रही संघर्षशील, सहनशीलता धीरता से पिछले कुछ वर्षों में आत्महत्या की दर में लगातार तेजी आ रही है।

देश में विशेषकर मध्यप्रदेश में खुशी का सूचकांक (हैप्पीनेस इंडेक्स) व्यक्त कर रहा है कि जीवन में खुश रहने और सामंजस्य बनाए रखने का कौशल कम हो रहा है। हर आयु-वर्ग में अवसाद से ग्रस्त बहुतेरे लोग मौत को गले लगा रहे हैं।

भारत में आत्महत्या की औसत दर बढ़कर 12 व्यक्ति प्रति लाख हो गई है। मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में तीसरे नंबर पर है जहां सबसे ज्यादा लोग मौत को गले लगाते हैं।

महाराष्ट्र 22107 (13.5 प्रतिशत) एवं तमिलनाडु 18223 (11.5%) के बाद मध्यप्रदेश 14965 (9.1प्रतिशत) का नंबर है। यह दर वर्ष 2021 की है। इसके बाद पश्चिम बंगाल 13500 (8.2) कर्नाटक 13056 (8%) राज्य हैं।

विशेष बात यह है कि इन राज्यों में हुई आत्महत्या देश में कुल हुई आत्महत्या का 50.4% हिस्सा है। देश के 23 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों का गणित 49.6% है।

मध्यप्रदेश के पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, छत्तीसगढ़ में यह दर बहुत कम है। उत्तर प्रदेश में आत्महत्या की दर 3.6% है जबकि वहां की जनसंख्या देश की जनसंख्या की 16.9% है।

इसके उलट मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां आत्महत्या की दर वर्ष 2021 में 17.7 व्यक्ति प्रति लाख तक पहुंच गई। महाराष्ट्र और मप्र में पिछले वर्षों में हुई आत्महत्या के प्रकरणों में आई तेजी के कई कारण हैं। इनमें बिगड़ी खेती-बाड़ी भी एक मुख्य वजह है।

मप्र में वर्ष 2020 में 444 एवं वर्ष 2021 में 386 किसानों ने असमय मौत को गले लगाया। परिवार की समस्या के कारण 33.2% व बीमारी से तंग आकर 18.6% लोगों ने अपनी जीवन इहलीला समाप्त की।

लव अफेयर से 4.6%, बैंक ऋण की अदायगी नहीं होने से 3.9%, बेरोजगारी से 2.2%, परीक्षा में फेल होने से 1%, गरीबी से परेशान 1.1% लोग आत्महत्या करने वालों में से रहे हैं।

बीते वर्ष मप्र में जिन लोगों ने आत्महत्या की उनमें से 3055 घरेलू महिलाएं थी। घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना व अन्य कारणों से उन्होंने यह आत्मघाती कदम उठाया।

मप्र में बढ़ते आत्मघाती कदम का कारण प्रमुख तौर पर यह है कि जीवन में खुशहाली की भावना क्षीण होना। मप्र में हैप्पीनेस इंडेक्स इतना कम है कि वह देश के निचली पायदान (28वें स्थान) पर है।

देश के टॉप हैप्पीनेस राज्यों में मिजोरम, हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पुडुचेरी, चंडीगढ़ व दिल्ली आदि हैं। महाराष्ट्र, तमिलनाडु में हैप्पीनेस भी है तो आत्महत्या की दर भी अधिक है लेकिन मध्यप्रदेश हैप्पीनेस इंडेक्स में फिसड्डी है।

देश में हैप्पीनेस इंडेक्स की बात करें तो मार्च 2022 में 146 देशों में भारत 136वें स्थान पर रहा। खुशहाल राज्यों में मप्र के नहीं होने से यहां सरकार ने आनंदम व राज्य स्तर पर आनंदम मंत्रालय आदि के गठन से कार्यक्रम जरूर चलाए, लेकिन ढाक के तीन पात की तरह वह जमीनी अस्तित्व ढूंढ रहे हैं।

देश में आत्महत्या की दर (टॉप 5 राज्य)*

राज्य 2019. 2020. 2021
महाराष्ट्र 13.6 13.0 13.5
तमिलनाडु 9.7 11.0 11.5
पश्चिम बंगाल 9.1 9.5 9.1
मध्य प्रदेश 9.0. 8.6. 9.1
कर्नाटक 8.1. 8.0. 8.0

अवसाद मुख्य कारण –

बढ़ती आत्महत्याओं के मामले में अवसाद एक प्रमुख कारण है। कोरोना व उसके बाद इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं। निश्चित तौर पर यह हमारे समाज के लिए एक दुखदाई बात है। सामंजस्य और सहनशीलता की कमी भी है। – डॉ. सुधा विक्रोल, विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, नरसिंहपुर

देश में पिछले 5 वर्षों में आत्महत्या की दर पर एक नजर*

वर्ष दर आत्महत्या
2017. 9.9 (129887)
2018. 10.2 (134516)
2019. 10.4 (139123)
2020. 11.3 (153052)
2021. 12.0 (164003)

* आंकड़े एनसीआरबी से


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