नर्मदा के किनारों से भी रुठ गई ज्वार, अब मोटे अनाज नहीं रहे सुलभ


नर्मदा की ऊंचे- नीचे टीले, पहाड़ी क्षेत्र, जमीन की उर्वरा शक्ति और बेहतर आबोहवा की अनुकूलता के बावजूद कृषि प्रधान नरसिंहपुर जिले में यह मोटा अनाज खेती-बाड़ी से दूर हो गया है


ब्रजेश शर्मा
सबकी बात Published On :

नरसिंहपुर। दुनिया भर में मानव स्वास्थ्य पर देखे जा रहे खतरों के बीच अब लोग अपनी जड़ों की ओर लौटने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है इंसानी खानपान पर। जिसमें पिछली करीब एक सदी के दौरान सबसे ज्यादा परिवर्तन आया है। ऐसे में अब पुराने भोजन पर लौटने की तैयारी हो रही है ले किन फिलहाल यह इतना आसान दिखाई नहीं देता। इनमें सबसे अहम है मानव सभ्यता का पारंपरिक अनाज कहा जाने वाला मोटा अनाज।

नर्मदा की ऊंचे- नीचे टीले, पहाड़ी क्षेत्र, जमीन की उर्वरा शक्ति और बेहतर आबोहवा की अनुकूलता के बावजूद कृषि प्रधान नरसिंहपुर जिले में यह मोटा अनाज खेती-बाड़ी से दूर हो गया है। अब यहां मोटे अनाज की पैदावार न के बराबर हो रही है और स्थिति यह है कि सागर और छिंदवाड़ा जैसे आसपास के जिलों से बहुत थोड़ी मात्रा में अनाज यहां के बाज़ारों में बिकने के लिए आ रहा है। नरसिंहपुर जिले में ज्वार की खेती के लिए पर्याप्त अनुकूलता होने के बावजूद किसान अब नगदी फसल मक्का को वरीयता दे रहे हैं। जिससे यह मोटा और स्वास्थ्यवर्धक अनाज आज लोगों के लिए सहज सुलभ नहीं है।

नवंबर के आखिरी हफ्ते में नरसिंहपुर जिले में ज्वार के खुदरा दाम 30 से 35 रु प्रति किग्रा थे लेकिन जब मांग बढ़ी और आवक घट गई तो दिसंबर के पहले हफ्ते में यह दाम ₹60 प्रति किग्रा तक हो गए। यहां के व्यापारी बताते हैं कि  स्वास्थ्य की दृष्टि से ज्वार की पूछ परख जिले में बढ़ी है। जिले में खरीफ सीजन में सबसे अधिक पैदावार देने वाला यह अनाज अब बाजार से नदारद है। इसकी वजह यह है कि क्षेत्र के किसान अब इस अनाज को खरीफ सीजन में नहीं बोया जाता है।

इस वजह से यह पड़ोस के सागर जिले  के कई पहाड़ी क्षेत्रों और  छिंदवाड़ा के आदिवासी बहुल इलाकों से नरसिंहपुर के बाजारों में पहुंच रहा है। जिले में खेती के लिए लगभग 3 लाख 10 हज़ार हेक्टेयर वाले क्षेत्र में एक लाख 86 हजार हेक्टेयर क्षेत्र खरीफ का है। इसमें पिछले 5 सालों में ज्वार, कोदो कुटकी का रकबा तेजी से घटा है।

सिंचाई के बढ़ते साधनों और सिंचित होती जमीन से किसान अब इस फसल को बोने के लिए रुचि नहीं लेते, दूसरा कारण यह है कि 2 – 3 साल पहले जब मध्यप्रदेश शासन ने समर्थन मूल्य पर मक्का लेना शुरू किया तो तेजी से मक्के का रकबा बढ़ गया और ज्वार पूरी तरह से समाप्त कर दी गई, लेकिन समर्थन मूल्य पर मुक्का खरीदी बंद होने के बाद मौजूदा वर्ष में यह सिर्फ दो ढाई हजार हेक्टर क्षेत्र में सिमट गई है। हालांकि, यह आंकड़े कृषि विभाग के हैं जबकि किसान बताते हैं कि अब जिले से ज्वार पूरी तरह नदारद है। 20 – 25 हेक्टेयर में ही आदिवासी बहुल इलाके में अब ज्वार बोई गई है जबकि मक्का इस बार 76000 हेक्टेयर से ज्यादा के क्षेत्र में उगाया जा रहा है।

शासन स्तर पर कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए किसानों में ज्वार, कोदो कुटकी आदि मोटे अनाज की फसल की बुवाई को प्रोत्साहित करने के लिए अब स्कीम भी बंद कर दी गई हैं । इस वजह से गरीब आदिवासी किसान भी इस अनाज से दूर हो रहे है। ऐसे में किसान भी इस ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं। यह उस समय हो रहा है जब केंद्र सरकार मोटे अनाज कोे प्रोत्साहन देने का काम कर रही है। केंद्र सरकार ने साल 2023 को मोटा अनाज वर्ष यानी मिलेट ईयर घोषित किया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत ‘अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज (मिलेट) वर्ष 2023’ के जश्न को आगे बढ़ाएगा और पौष्टिक अनाज की खेती एवं सेवन को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाएगा।

कृषि विशेषज्ञ और कृषि अधिकारी मानते हैं कि नरसिंहपुर जिले में ज्वार की खेती के लिए बहुत अच्छी संभावनाएं हैं। पर्याप्त अनुकूलता होने की वजह से यह जिंस आदिवासी किसानों को भी भरपूर लाभ दे सकती है। मौजूदा समय में 6000 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बिक रही ज्वार किसानों को मक्के से बेहतर दाम दिला सकती है। इस समय जिले में मक्का के दाम में 1700- 18 00 रुपए प्रति क्विंटल हैं।

इसलिए ज़रूरी है ज्वाराः  स्वास्थ्य के प्रति पहले से ज्यादा जागरूक व सचेत हो रहे लोगों के लिए अब ज्वार जैसे मोटे अनाज किसी दवा से कम नहीं हैं। ज्वार के कई स्वास्थ्यवर्धक फायदे हैं। इसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और फाइबर है। इसके अलावा अन्य खनिज तत्व मैग्नीसियम, फास्फोरस, कापर , कैल्सियम, पोटेसियम आयरन,आदि इम्यूनिटी स्ट्रांग करता है।  इसमें मौजूद फाइबर पाचन तंत्र की कार्य क्षमता में सुधार लाता है।

पेट के रोगों में भी मददगारः  ज्वार में लगभग 48% फाइबर पाया जाता है। यह एक बारके भोजन में शरीर को 12 ग्राम से अधिक फाइबर देता है ,इससे पेट में ऐठन, गैस कब्ज आदि से छुटकारा मिलता है। अलावा इसके, खराब कोलेस्ट्रॉल अर्थात एलडीएल को हटाने में मदद करता है। पाचन शक्ति बढ़ाता है । यह भूख को नियंत्रित भी करता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट कई रोगों की रोकथाम के लिए मदद करता है। ग्लूटेन फ्री होने की वजह से यह खराब कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम कर बढ़ाता है। ज्वार की तासीर ठंडी होने से स्वस्थ डाइजेशन ,सेहतमंद दिल, मजबूत दांत के लिए बेहतर व मुहांसों से छुटकारा दिलाने में सहायक है।

खेती की दृष्टि से नर्मदा के दोनों तरफ 5- 10 किलोमीटर के एरिया में एवं तेंदूखेड़ा जैसे ग्रामीण अंचलों में ज्वार की बहुत अच्छी संभावनाएं हैं। भविष्य में इसके बहुत अच्छे स्कोप हो सकते हैं। दाम अच्छे मिलेंगे, अभी पिछले दो-तीन सालों से ज्वार जिले में ना के बराबर हो रही है। शासन से कोई भी स्कीम नहीं है जो ज्वार के लिए प्रोत्साहित करें फिर भी हमारी कोशिश है कि यह अनाज किसान आगे ले चलें।

          राजेश त्रिपाठी, उपसंचालक कृषि नरसिंहपुर





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