नई दिल्ली। बीते कई दशकों में भारत में हजारों लोगों की मौत लू की वजह से हुई है, लेकिन यह कम होने की बजाय साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। इस बीच, विश्व बैंक की ताजातरीन रिपोर्ट ने और भी भयावह हालात की तस्वीर बताई है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में लू और तपिश से आने वाले दो दशकों में जिंदगी खतरे में आ जाएगी और इतनी गर्मी होगी कि मनुष्य के बर्दाश्त के बाहर हो जाएगा।
विश्व बैंक की ‘क्लाइमेट इन्वेस्टमेंट अपॉर्च्यूनिटीज इन इंडियाज कूलिंग सेक्टर’ नाम से आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सामान्य से ज्यादा गर्मी का सामना कर रहा है। गर्मी जल्द शुरू हो जाती है और ज्यादा समय तक टिकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल 2022 में भारत समय से पहले लू की चपेट में आ गया था, जिससे आम जनजीवन ठहर-सा गया था और राजधानी नई दिल्ली में तो तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।
इस साल मार्च का महीना तापमान में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी का गवाह बना था और यह इतिहास का सबसे गर्म मार्च महीना बन गया था।
रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि भारत में जल्द लू की तीव्रता उस सीमा को पार कर जाएगी, जो इंसान के बर्दाश्त करने के योग्य है।
इसमें आगे कहा गया है कि अगस्त 2021 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी आंकलन रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले दशक में भीषण लू चलने के अधिक मामले सामने आएंगे।
यह रिपोर्ट तिरुवनंतपुरम में केरल सरकार के साथ साझेदारी में विश्व बैंक द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘भारत जलवायु एवं विकास साझेदारों’ की बैठक में जारी की जाएगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘जी20 क्लाइमेट रिस्क एटलस ने भी 2021 में आगाह किया था कि यदि कार्बन उत्सर्जन का स्तर अधिक बना रहता है तो पूरे भारत में 2036 से 2065 के बीच लू 25 गुना अधिक समय तक चलने की आशंका है।’
रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2030 तक गर्मी के तनाव से संबंधित उत्पादकता में गिरावट के कारण वैश्विक स्तर पर जो आठ करोड़ नौकरियां जाने का अनुमान जताया गया है, उनमें से 3.4 करोड़ नौकरियां भारत में जाएंगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण एशियाई देशों में भारी श्रम पर गर्मी का सबसे ज्यादा असर भारत में देखा गया है। भारत में सालभर में 101 अरब घंटे गर्मी के कारण बर्बाद होते हैं।