World Water Day: पानी सहेजने की बजाय अंधाधुंध इस्तेमाल से खतरे की घंटी


अगर पानी के अंधाधुंध व बेजा इस्तेमाल की आदत में नकेल नहीं डाली गई और सुधार नहीं किया गया तो आने वाले दिन बुंदेलखंड की तरह पानी की समस्या उत्पन्न करेंगे जहां पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है और जलस्रोत सूख गए हैं।


ब्रजेश शर्मा
नरसिंहपुर Published On :
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पानी के अंधाधुंध व बेजा दोहन की वजह से नरसिंहपुर व करेली ड्राईजोन में आए।

नरसिंहपुर। खेतीबाड़ी और घरेलू इस्तेमाल में पानी के अंधाधुंध दोहन से जिले के छह विकासखंडों में दो विकासखंड नरसिंहपुर और करेली ड्राईजोन में आ गए हैं।

खतरे की घंटी बजना शुरू हो गया है कि अगर पानी के अंधाधुंध व बेजा इस्तेमाल की आदत में नकेल नहीं डाली गई और सुधार नहीं किया गया तो आने वाले दिन बुंदेलखंड की तरह पानी की समस्या उत्पन्न करेंगे जहां पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है और जलस्रोत सूख गए हैं।

जिले में पानी का अंधाधुंध दोहन पिछले तीन दशक से अधिक समय से जारी है। खेतीबाड़ी वाले जिले में तीन चार दशक से पहले खेतों को बरसात के पानी से भरा जाता था। हवेली बंधान पद्धति से खेतीबाड़ी होती थी जिससे पानी थमा रहता था।

जिले की नदियां, तालाब, कुआं, झरने सभी सदा नीरा रहते थे, लेकिन पिछले दो दशक से रेत माफिया की भूख ने जिले की 12 नदियां नर्मदा, शक्कर, शेढ़, माछा, सीतारेवा, दुधी, ऊमर, पांडाझिर, बरांझ समेत अन्य को तबाह कर दिया है।

नदी में पानी को थामने वाली त्रिस्तरीय सतह जिसमें कपा और अन्य तह होती है। उसे मशीनों के द्वारा रेत खुदाई से तहस-नहस कर दिया गया। इससे पानी शोधन और उसे थामने की प्राकृतिक प्रक्रिया नष्ट होती गई और कई नदियां समय से पहले दम तोड़ चुकी हैं या अस्तित्व के लिए जूझ रही हैं।

इसी तरह तालाबों के हाल हो गए हैं। तालाबों को संरक्षण-संवर्धन देने की बजाय उन पर चारों तरफ बढ़े अतिक्रमण और बना दिए गए कचराघर से उनका अस्तित्व भी लगभग समाप्त है।

यही हाल सभी कुआं, झरनों का है। कुएं तो अब जिले में कहीं देखने को नहीं मिल रहे हैं। इक्के-दुक्के स्थानों पर अगर हैं तो वह केवल दर्शनीय बन गए हैं। रखरखाव नहीं होने से वे पूरी तरह ठप हो गए हैं। पानी के झरने, स्रोत बंद हो गए हैं।

नहरें जरूर पर स्प्रिंकलर से अंधाधुंध दोहन –

जिले में सिंचाई में सर्वाधिक पानी का उपयोग हो रहा है। जिले में नहरें जरूर आई हैं, लेकिन सूखी हैं। बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार ने अधिकारियों को पौ-बारह की है, लेकिन किसानों को सुविधाएं नहीं मिली।

आज भी रबी सीजन में जब विभाग पानी देने के लिए मांगपत्र बुला रहा है तो नहर विभाग के आला अफसर भी यह नहीं बता सकेंगे कि अब तक कितने मांगपत्र आए हैं।

जरूरत के वक्त नहरों में पानी नहीं होने से गन्ने और अन्य फसलों को इस समय स्प्रिंकलर चलाकर सिंचाई करना पड़ रही हैं। अंधाधुंध दोहन से जलस्तर लगातार नीचे खिसकता जा रहा है।

कागजों में वाटर रिहार्वेस्टिंग सिस्टम –

पानी को रोकने के लिए नगरीय इलाकों में नगरपालिकाओं को भवन, मकान बनाने के लिए वाटर रिहार्वेस्टिंग सिस्टम लागू किया गया है कि आपको एक निश्चित राशि जमा करना पड़ेगी।

जब नगरपालिका यह सुनिश्चित कर लेगी कि आपने बरसात के पानी को रोकने के लिए वाटर रिहार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया है तो वह आपकी राशि वापस करेगी, लेकिन इस नियम कायदों पर भी अनियमितताओं की कड़ी जुड़ी है कि कहीं पर भी इस तरह के नियम लागू नहीं है सिर्फ कागज ही दुरस्त हैं।

यही कारण है कि सरकारी भवनों में ही वाटर रिहार्वेस्टिंग सिस्टम के हाल बेहाल हैं। कहीं पर भी वह सफल और व्यवस्थित नहीं मिलेंगे।

करोड़ों हो रहे खर्च पर आम लोगों के लिए एक भी नजीर नहीं –

जिले में पिछले दो-तीन दशक से कई करोड़ों रुपये पानी बचाने के लिए खर्च कर दिए गए। अधिकारी और नेता मिलकर करोड़ों रुपये की होली खेल गए लेकिन पानी बचाने की एक भी नजीर आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है।

राजीव गांधी जल ग्रहण मिशन के तहत कई चरणों में कार्य हुए जिसमें कई करोड़ खर्च हुए। हाल ही में 15वें वित्त आयोग से संबंधित कार्ययोजना में 164 लाख रुपये का आवंटन है जिसमें 50 प्रतिशत राशि जल और स्वच्छता पर व्यय हो रही है।

नेताओं और अधिकारियों से अगर जनता पूछ ले कि पानी बचाने के ठोस जतन कहां हैं। कहां रिटेनिंग वॉल हैं। कहां स्टॉप डेम और मनरेगा कवर्जेंस के तहत कार्य किए जा रहे हैं तो अधिकारी एक भी उदाहरण नहीं बता सकेंगे।

जल जीवन मिशन के तहत 313 गांव में रेट्रोफिटिंग नल जल योजना लागू हुई है, इसमें भी बड़े पैमाने पर कार्य होना है। 258 गांवों में प्रशासकीय स्वीकृति भी मिली है।

बारूरेवा और सींगरी का पुनर्जीवन –

अब जिला पंचायत की तरफ से बारूरेवा नदी के पुनर्जीवन के लिए कई लाख रुपये किए जाने की योजना है और हो भी रहे हैं पर अब तक कोई ठोस प्रगति जमीन पर नहीं दिख रही है।

इसी तरह सींगरी नदी के पुनर्जीवन को लेकर अभियान चल रहा है। इसके पहले भी सींगरी नदी के लिए कई लाख रुपये स्वीकृत हुए थे लेकिन नतीजे सिफर रहे।

हम सिर्फ ले रहे हैं पानी, जमा करने के कोई आंकड़े नहीं

– जिले में नल जल योजनाएं
– स्थापित नल जल योजना- 372
– स्रोत असफल होने से बंद- 9
– जिले में लगभग11 हजार हैंडपंप (बंद-चालू शामिल)
– जिले में नगरीय निकायों में पानी के वैद्य-अवैध कनेक्शन लगभग- 40 हजार
– जिले में घर परिवारों में करीब 40 हजार बोरबेल

जिले में 11 हजार 300 हैंडपंप है जिसमें लगभग 90 बंद हैं। आने वाले दिनों में पानी की समस्या तो रहेगी। इस पर सभी को विचार तो करना चाहिए।

डीआर चौबे, कार्यपालन यंत्री पीएचई, नरसिंहपुर

भूजल स्तर के मामले में करेली और नरसिंहपुर की स्थिति ठीक नहीं है। बाकी दूसरे विकासखंडों में स्थिति संतोषजनक कही जा सकती है। लेकिन अगले एक दशक में नरसिंहपुर जिले के हालात भी गड़बड़ हो जाएंगे। बुंदेलखंड जैसे हालत बनेंगे कि पानी के लिए त्राहि-त्राहि की नौबत रहेगी। यही कारण है कि बुंदेलखंड में अटल भूजल योजना लागू करना पड़ी है।

एसके पटेल, सहायक भूजल अधिकारी, नरसिंहपुर


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