इंदौर। शहर से करीब तीस किमी दूर प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर बसा है। कभी एक छोटा सा गांव आज तीन लाख की आबादी के साथ मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है, जहां करीब सात सौ छोटे-बड़े कारखाने हैं।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यहां भी वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और पीथमपुर में डॉक्टर विशेषकर स्त्रीरोग विशेषज्ञ दावा करते हैं कि इसकी वजह से ही यहां इन्फर्टिलिटी के मामले भी बढ़ रहे हैं। इस इलाके में बीते करीब बीस वर्ष से काम कर रहीं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. आशा पवैया हैं।
करीब 15 वर्षों तक सरकारी नौकरी करने के बाद अब वे यहां अपना निजी अस्पताल चलाती हैं। वे कहती हैं कि पिछले कुछ वर्षों में उनके अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के अलावा उनके अस्पताल में संतानहीनता से परेशान सबसे ज्यादा मरीज़ आते हैं।
वे आगे बताती हैं कि इन हालातों में महिलाओं की स्थिति बेहद खराब होती है वे शारिरिक रूप से तो चुनौती का सामना कर ही रहीं होती हैं साथ ही सामाजिक और पारिवारिक रुप से भी वे लगातार प्रताड़ित होती हैं। डॉ. पवैया कहती हैं, “ऐसी स्थिति में सबसे पहला दोष महिला का माना जाता है और उसे हर बार पारिवारिक तौर पर और सामाजिक तौर पर प्रताड़ित किया जाता है और साथ ही छोड़ देने की धमकी दी जाती है।
डॉक्टर बताती हैं कि पीथमपुर में उनके अस्पताल में स्थानीय लोगों के अलावा इंदौर, सागौर, धार बेटमा, देपालपुर, घाटाबिल्लौद जैसे आसपास के इलाकों से भी संतानहीनता से जूझ रहे दंपती पहुंचते हैं।
इंदौर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमवाय के टीबी चेस्ट विभाग के प्रमुख और इंदौर में वायु प्रदूषण कम करने के लिए चल रहे क्लीन एयर कैटलिस्ट प्रोजेक्ट के विशेषज्ञ डॉ. सलिल भार्गव कहते हैं कि सालों तक लगातार प्रदूषण के बीच रहने वाले लोगों में वायु प्रदूषण के परिणाम बेहद परेशान करने वाले हो सकते हैं और उन्हें इसके गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। ठीक ऐसा ही पीथमपुर के इन कारखानों के बीच रहने वाले सैकड़ों लोग इसी तरह के परिणामों का सामना कर रहे हैं।
डॉ. भार्गव यह बात कई शोध के आधार पर कहते हैं हालांकि इस तरह के शोध इंदौर या पीथमपुर जैसे इलाकों में अब तक नहीं किए गए हैं। इससे पहले विश्व भर में हुए कई शोध में पाया गया है कि वायु प्रदूषण से संतानहीनता, तनाव, गर्भपात, महिलाओं की माहवारी में रुकावट जैसी समस्याएं भी होती हैं। वहीं पुरुषों में भी भी प्रजनन क्षमता पर इसका असर पड़ता है।
पीथमपुर में इस परेशानी की वजह से पीड़ित महिलाओं की परेशानियां भी कुछ अलग नहीं हैं। इन्हें माहवारी में अनियमितता, तनाव, बांझपन जैसी समस्याएं हो जाती हैं। वहीं कई पुरुषों में शुक्राणुओं की कमी भी एक बड़ी समस्या है।
डॉ. आशा पवैया कहती हैं कि पिछले कुछ वर्षों में इलाके में संतानहीन दंपतियों की संख्या काफ़ी बढ़ी है। वे कहती हैं कि पीथमपुर और आसपास के इलाके जैसे धार, देपालपुर, सागौर, बेटमा से उनके पास कई ऐसे दंपती आते हैं जिनकी शादी के कई वर्षों बाद भी संतान नहीं है। इनमें से कुछ लोगों ने इसके लिए पीथमपुर और इंदौर के डॉक्टरों से सलाह भी ली और हार्मोनल टेस्ट, अल्ट्रासाउंड स्कैन तथा खून की जांच जैसी जरूरी जांचें भी करवाईं। डॉक्टर बताती हैं कि इनमें से उनके कई मरीज़ों की जांच में पुरुषों में शुक्राणु कम होने या बांझपन जैसी वजहें भी सामने आईं।
रोज़ाना कई मरीज़ आते हैं…
जब हम डॉ. पवैया से मिलने उनके अस्पताल पहुंचे तो उस समय भी उनके पास तीन महिला मरीज़ इसी समस्या का इलाज कराने पहुंचीं थीं। डॉ. पवैया कहती हैं कि रोजाना उनके पास करीब 50-60 मरीज़ आते हैं और इनमें से 8-10 मरीज़ बांझपन की शिकायत वाले होते हैं। उनके मुताबिक काम के हर दिन में करीब 4-5 नए मरीज़ अपनी यह समस्या लेकर आती हैं।
डॉ. पवैया के मुताबिक बांझपन की एक अहम वजह इलाके में वायु प्रदूषण है। वे बताती हैं कि वायु प्रदूषण से महिलाएं कई तरह की स्वास्थ्य और सामाजिक परेशानियों का सामना कर रहीं हैं। उनके मुताबिक पिछले कुछ समय में गर्भपात के मामले भी बढ़ रहे हैं। इसके अलावा, महिलाओं में अनियमित माहवारी को भी वे इसी वायु प्रदूषण से जोड़कर देखती हैं।
इसी क्षेत्र में कविता (बदला हुआ नाम) रहती हैं। उन्हें शादी के छह साल बाद तक संतान नहीं हई। वे बताती हैं कि उन्हें इस दौरान अपने पति और परिवार की प्रताड़ना और समाज का भारी दबाव सहना पड़ा। मां न बन पाने को पूरी तरह उनका ही दोष मान लिया गया। यह सब काफी समय तक चलता रहा। इसके बाद इलाज के लिए प्रयास शुरू हुए। इस दौरान तमाम मेडिकल जांचें करवाईं गईं।
वे बताती हैं कि शुरुआत मे जांचें केवल उनकी ही होती थीं लेकिन इनमें सबकुछ ठीक था, लेकिन बाद में डॉक्टर के कहने पर उन्होंने अपने पति से भी जांच के लिए कहा जिसके लिए वे तैयार नहीं हुए और जब बाद में पति जांच के लिए तैयार हुए तो पता चला कि उनका स्पर्म काउंट केवल पांच प्रतिशत है और उसकी क्वालिटी भी कमज़ोर है। ज़ाहिर है, डॉक्टर ने संतानहीनता के लिए फैक्ट्री में काम करने वाले उनके पति की सेहत को ही वजह बताया है। वे बताती हैं कि उनके पति पास की ही एक फैक्ट्री में काम करते हैं।
रुआंसी होकर कविता बताती हैं कि इस दौरान उन्होंने परिवार और समाज का जो दबाव सहा, उसे बता पाना मुश्किल है। वे कहती हैं कि उनके पति और परिवार लगभग हर रोज़ दूसरी शादी की धमकी देते थे।
डॉ. आशा पवैया इस मामले पर रोशनी डालती हैं और कहती हैं कि इस तरह की परेशानियां कई वजहों से होती हैं लेकिन उन्हें पीथमपुर इलाके में इसकी वजह वायु प्रदूषण ज्यादा लगती है हालांकि उन्होंने इस बारे में कोई शोध नहीं किया है लेकिन मौजूदा स्थितियां इसी ओर इशारा करती हैं।
अमर (बदला हुआ नाम) चार साल पहले पीथमपुर छोड़ चुके हैं और अब गुजरात के अहमदाबाद में रहते हैं। वे यहां एक फैक्ट्री में काम करते थे और कुछ समय के लिए एक निजी स्कूल में पढ़ाते थे।
स्कूल संचालक के माध्यम से उन्होंने फोन पर हमें बताया कि यहां रहते हुए उनकी संतान नहीं थी और इसके लिए उन्होंने कई तरह का इलाज लिया। उस समय उन्हें मेडिकल टेस्ट से पता चला कि परेशानी उनकी पत्नी में नहीं, बल्कि उनमें हैं। उनके मुताबिक उन्हें बताया गया कि उनकी इस परेशानी का कारण वायु प्रदूषण हो सकता है। इसके बाद उन्होंने पीथमपुर छोड़ दिया। अमर, हमसे भी इस इस बारे में इससे ज्यादा बात करना नहीं चाहते थे।
डॉ. आशा पवैया इसी इलाके में बीते करीब 15 साल तक एक सरकारी डॉक्टर के तौर पर काम कर चुकी हैं। वे अपने अनुभव के आधार पर हमें बताती हैं कि इस इलाके में इन्फर्टिलिटी यानी बांझपन की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है क्योंकि इतनी संख्या में इस तरह की परेशानियों वाले मरीज़ पहले कभी उनके पास नहीं आते थे।
लोग हमें अशुभ समझते हैं…
इसी दौरान डॉ. पवैया हमें पीथमपुर के नजदीक के एक गांव से आए एक युवा दंपती से मिलवाती हैं। इनमें पत्नी की उम्र 28 साल है और पति 31 वर्ष के हैं। स्वाति (बदला हुआ नाम) हमें बताती हैं कि उनकी शादी को साढ़े चार साल हो चुके हैं और वे धार और इंदौर जिले के करीब पांच डॉक्टरों से इसे लेकर मिल चुकी हैं लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। स्वाति से जब हम पूछते हैं कि इसे लेकर उन्हें कोई पारिवारिक या सामाजिक परेशानी होती है तो वे हिचकिचाते हुए इससे इंकार करती हैं।
हालांकि कुछ ही मिनटों में उनके पति गोपाल (बदला हुआ नाम) इस बातचीत के बीच आते हैं और कहते हैं कि लोग हमारा मुंह देखना भी पसंद नहीं करते। किसी सामाजिक कार्यक्रम में जाते हैं तो लोग बस यही पूछते हैं कि अब तक बच्चा क्यों नहीं हुआ। इतनी देर में स्वाति की आखें भी भर आती हैं वे कहती हैं कि समाज के शुभ कार्यों में उन्हें बुलाया नहीं जाता सब उन्हें अशुभ समझते हैं।
बांझपन के शिकार परिवारों में सबसे अधिक औद्योगिक क्षेत्र के आसपास के ही होते हैं वहीं इनमें भी उनकी संख्या ज्यादा होती है जो फैक्ट्रियों के बेहद नज़दीक बनी बस्तियों में रहते हैं।
गोपनियता की शर्त पर विनोद कुमार (बदला हुआ नाम) ने हमें बताया कि उनके भाई के यहां संतान नहीं हो रही थी लेकिन शुरुआती तीन साल तक केवल परिवार ने पत्नी कीं जांचें करवाईं लेकिन बाद में जब डॉक्टर के बार-बार कहने पर पति की जांच की गई तो परेशानी उनमें निकली। इस तरह उनकी पत्नी तीन साल तक परिवार के ताने उस दोष के लिए सुनती रहीं जो उनका नहीं था।
कुछ दिनों बाद जब हम डॉ. पवैया के अस्पताल में फिर पहुंचे तो भी नज़ारा वही था। उनके अस्पताल में बांझपन का इलाज कराने के लिए कई महिलाएं आईं हुईं थीं। यहां फिर हमारी बातचीत बांझपान की शिकार कुछेक महिलाओं से हुई, जो बताती हैं कि उन्हें नहीं पता कि उन्हें संतान क्यों नहीं हो रही जबकि उन्हें अपना शरीर पूरी-तरह स्वस्थ लगता है। महिलाएं बताती हैं कि उन्हें डॉक्टर से पता चला है कि वायु प्रदूषण भी इसकी वजह हो सकती है। इनमें से भी कुछ महिलाओं के पति की जांच की गई थी जिनका स्पर्म काउंट बेहद कम और कम गुणवत्ता का पाया गया।
कविता की तरह शुरुआत में इन महिलाओं को भी दोष दिया गया। उषा (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि कैसे बांझ कहकर उन्हें एक बार लगभग घर से निकाल दिया गया था और पति ने दूसरी शादी करने की धमकी दी थी। एक अन्य महिला सरिता (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि वे आज भी इसी तरह का अपमान झेल रहीं हैं। उन्हें आज भी इसी तरह की घरेलू प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।
ये दोनों ही महिलाएं पीथमपुर के सेक्टर नंबर तीन की एक घनी बस्ती में रहती हैं। इस इलाके के नजदीक बहुत से स्टील और सरिया बनाने वाले कारखाने हैं। इन कारखानों से बड़े पैमाने पर धुआं निकलता है। इनके आसपास रहने वाले लोग बताते हैं कि जब धुआं निकलता है तो अक्सर दिन में भी रोशनी कम हो जाती है। वे बताते हैं कि अलग-अलग स्तर पर स्टील गलाने की प्रक्रिया में कई रंगों का धुआं निकलता है।
सरिता पीथमपुर के नजदीक ही एक गांव में रहती हैं। वे बताती हैं कि उनके गांव की आबोहवा साफ है ऐसे में उन्हें नहीं पता कि उनकी परेशानी का कारण हवा कैसे हो सकती है। सरिता से और ज्यादा बात करने पर पता चला कि उनके घर में वायु प्रदूषण के नाम पर केवल चूल्हा है जिस पर वे अक्सर खाना पकाती हैं।
प्रदूषण के कारण छोड़ कर जा रहे पीथमपुर!
संजय सिंह, इसी इलाके में रहते हैं और गुजरात में ऐसी ही एक फैक्ट्री में काम करते हैं, वे कहते हैं कि जो फैक्ट्री चालू होती है तो ऐसा लगता है जैसे नया बादल बन गया हूं अलग-अलग रंगों की दुआएं वाला। समझाते हैं कि अलग-अलग रंगों का धुआं यानी अलग-अलग रसायनों का हवा में आना। इसका सीधा मतलब है कि लोगों में हवा के माध्यम से यह ज़हर फैल रहा है। संजय सिंह, अब पीथमपुर छोड़कर इंदौर में रहना चाहते हैं, क्योंकि उनके मुताबिक वहां रहने के लिए बेहतर जगह है और प्रदूषण भी कम है। संजय कहते हैं कि औद्योगिक क्षेत्रों में कर्मचारियों और जनता के लिए रहने के लिए बेहतर कॉलोनियां होनी चाहिए वर्ना प्रदूषण से बच पाना मुश्किल होगा। पीथमपुर में कॉलोनियां औद्योगिक क्षेत्रों के बेहद नजदीक हैं। यहां व्यवस्थित मजदूर कॉलोनियों के लिए मांग वर्षों से की जा रही है।
क्लीन एयर कैटेलिस्ट इंदौर कार्यक्रम की जेंडर लीड अज़रा ख़ान बताती हैं…
वायु प्रदूषण से महिलाओं का स्वास्थ्य प्रभावित होता है और इससे प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ता है। अज़रा कहती हैं कि इसके बारे कई तरह की रिसर्च दुनियाभर में हो चुकी है, तथा भारत में हैदराबाद और चेन्नई में भी इसे लेकर शोध हुए हैं और उनमें यह पाया गया है कि वायु प्रदूषण महिलाओं में तनाव का कारण हो सकता है इसके अलावा उन्हें ब्लडप्रेशर और प्रजनन क्षमता पर भी असर डालता है।
पीथमपुर में सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में पिछले करीब तीन साल से पदस्थ युवा चिकित्सक डॉ. रौनक चंदेल भी इस बात से इंकार नहीं करते कि पीथमपुर में संतानहीनता की समस्या है। वे बताते हैं कि उनके पास रोज़ाना ऐसी समस्याओं वाले कई मरीज़ आते हैं। हालांकि वे इसका ठोस कारण नहीं बताते। डॉ. चंदेल के मुताबिक इसकी वजह केवल वायु प्रदूषण को ही नहीं बताया जा सकता।
यह स्थिति तब है जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में वायु प्रदूषण कोई बहुत ज्यादा खतरनाक स्तर पर नहीं है। हालांकि नवंबर से 7 दिसंबर, 2022 तक यहां AQI का न्यूनतम स्तर 114 और अधिकतम स्तर 296 रहा है। यानी यहां हवा की गुणवत्ता ज्यादातर बार सांस लेने लायक नहीं थी। 7 दिसंबर को जब हम इस बारे में लिख रहे हैं उस समय भी पीथमपुर में वायु की गुणवत्ता का स्तर 236 AQI है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग की ENV Alert के मुताबिक यहां वायु की गुणवत्ता खराब है।
करीब 15 किलोमीटर के दायरे में फैले इस औद्योगिक क्षेत्र में एक अत्याधुनिक एयर क्वालिटी मॉनीटर भी लगाया गया है। यह मशीन केंद्रीय और राज्य स्तर पर पीथमपुर में प्रदूषण नियंत्रण के आंकड़े जारी करती है। दोनों कार्यालयों की मोबाइल एप पर इसी मशीन से आंकड़े अपडेट होते हैं।
डॉ. भार्गव वायु प्रदूषण से संतानोत्पत्ति में आने वाली परेशानियों को तथ्यात्मक बताते हैं। वे कहते हैं कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले लोगों को श्वास, दमा जैसी परेशानियों के अलावा बांझपन भी हो सकता है। हालांकि पीथमपुर के मामले में वे कहते हैं कि अगर कहीं इस तरह के मरीज़ ज्यादा संख्या में मिल रहे हैं तो चिंताजनक है। उनके मुताबिक यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इसकी वजह वायु प्रदूषण ही है, लेकिन इससे इंकार भी नहीं कर सकते हैं।
डॉ. भार्गव कहते हैं इंदौर जैसे लगातार फैल रहे महानगर में खासकर कारखाना क्षेत्रों के नज़दीक इस तरह की स्टडी होना बेहद जरुरी है, जो बता सके कि वायु प्रदूषण इंसानों और उनके समाज पर किस-किस तरह से असर डाल रहा है।
पीथमपुर इलाके में पिछले करीब तीन दशकों से रह रहे पत्रकार अनवर खान बताते हैं कि संतानहीनता की समस्या इलाके में अब काफी बढ़ चुकी है। वे बताते हैं कि उनके जानने वाले ही कई परिवार संतानहीनता का इलाज करवा रहे हैं।
ख़ान के मुताबिक वे अक्सर इस बारे में सुनते हैं, लेकिन लोग कभी भी इस पर खुलकर बात नहीं करना चाहते, वे बताते हैं कि सागौर और एक नजदीकी गांव खेड़ा में संतानहीनता से कई लोग परेशान हैं और इनकी संख्या दर्जनों में है, लेकिन फिर भी इसे लेकर खुलकर बात नहीं की जाती, क्योंकि दुर्भाग्य से किसी भी स्तर पर वायु प्रदूषण को अब भी यहां गंभीर परेशानी नहीं माना जाता है।
पीथमपुर के नज़दीक सागौर कभी एक छोटा सा गांव हुआ करता था, लेकिन आज यहां बने औद्योगिक क्षेत्र में करीब सौ से अधिक छोटे-बड़े कारखाने हैं और इनमें काम करने वाले लोग भी आसपास बनी बस्तियों में ही रहते हैं। सागौर में भी कई संतानहीन दंपती हैं जो लगातार अपनी इस समस्या का इलाज करा रहे हैं। इनमें से कई लोग अब इस बारे में बात भी नहीं करना चाहते।
हम सागौर से करीब तीन किमी दूर खेड़ा गांव भी गए, जहां लोग इस बारे में खुलकर बात करने से कतराते हैं। हालांकि वे बाद में बताते हैं कि संतान न होने के कारण कई महिलाएं अपना इलाज करा रहीं हैं। जब उनसे पुरुषों के इलाज के बारे में पूछा गया तो कोई ख़ास जानकारी नहीं मिली। यहां के लोग बताते हैं कि प्रदूषण इलाके में बड़ी समस्या है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि फैक्ट्रियों से गंदा पानी ज़मीनों में छोड़ा जाता है जिसके चलते पानी का स्वाद खत्म हो चुका है ऐसे में अब सभी के घरों में पानी साफ करने वाला आरओ सिस्टम लगा हुआ है लेकिन फैक्ट्रियों की चिमनियां हवा में धुआं भी छोड़ती हैं और प्रदूषित हवा से बचना संभव नहीं है, क्योंकि सभी इसी में सांस लेते हैं।
इस बीच यह याद रखा जाना चाहिए कि वायु प्रदूषण को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया की 99 प्रतिशत आबादी को साफ़ हवा नहीं मिलती और World Air Quality Report 2021 कहती है कि दुनिया के सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण वाले कई शहर भारत में हैं। ऐसे में बात केवल ज़मीनी साफ-सफाई तक सीमित कैसे रह सकती है! भारत का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर है और अब लोग इस शहर की हवा की चिंता भी कर रहे हैं।
(यह स्टोरी इन्टरन्यूज के अर्थ जर्नलिज़म नेटवर्क के सहयोग से की गयी है।)
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