कारखाना क्षेत्रों के नजदीक वायु प्रदूषण से बीमार हो रहे लोग, महिलाएं झेल रहीं दोहरी परेशानी


पीथमपुर उद्योग क्षेत्र में स्टील फैक्ट्रियों से घिरे एक रहवासी क्षेत्र के लोगों की परेशानियां, वायु प्रदूषण इतना कि घर बेचने की भी सोच रहे


आदित्य सिंह
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इंदौर। वायु प्रदूषण को लेकर हमारा समाज बेपरवाह नज़र आता है, लेकिन इसी समाज के बहुत से लोग इसके नुकसान झेल रहे हैं। इंदौर और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाली एक बड़ी आबादी कारखानों के आसपास ही बसी है। यह दरअसल इसलिए है क्योंकि उद्योग क्षेत्रों में लोगों के रहने के लिए कोई अलग व्यवस्था नहीं की गई। यूं तो प्रदूषण से सभी परेशान हैं, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाली घरेलू महिलाओं पर होता है।

प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में इस परेशानी को साफ-साफ देखा जा सकता है। यहां एक बड़ी आबादी कारखानों के एकदम नजदीक रहती है।

 

 

सेक्टर तीन, यहां सुबह-सुबह जब बुजुर्ग सैर को निकलते हैं ठीक उसी समय आसपास की स्टील फैक्ट्रियां भी काम शुरू करती हैं। ये लोग बताते हैं कि फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं कुछ ही देर में पूरे आसमान में छा जाता है और सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। यही हाल देर शाम या रात को भी होता है।

इस विषय पर हमने पीथमपुर के सेक्टर तीन में कई स्टील फैक्ट्रियों के बीच मौजूद एक रहवासी कॉलोनी के कुछ लोगों से बात की। यहां के लोगों ने बताया कि कैसे अब कमाई का एक बड़ा हिस्सा अस्पताल और दवाओं पर खर्च हो रहा है और कैसे इस प्रदूषण के बीच उन्हें अपने खुशहाल और हरे-भरे गांव याद आते हैं।

प्रदूषण नियंत्रण विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इस इलाके में कभी भी एपीआई सामान्य ही रहता है, लेकिन इस इलाके में रहने वाले लोगों के मुताबिक यह प्रदूषण अभी से उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां दे रहा है। घर में रहने वाली महिलाओं और बुजुर्गों को सांस लेने में परेशानी होती है। इसके साथ ही आंखों में जलन एक बड़ी समस्या है।

करीब तीन स्टील फैक्ट्रियों के बीच रहने वाली क्षमा दुबे कहती हैं कि उनका ज्यादातर समय घर की सफाई करने में ही निकल जाता है। वे बताती हैं कि प्रदूषण उनके स्वास्थ्य को कई तरह से परेशान कर रहा है। पहला तो उन्हें और उनके पति नर्मदा प्रसाद दुबे को सांस लेने में दिक्कत और आंखों में जलन होती है और दूसरा उनकी काफी उर्जा प्रदूषण के कारण गंदे होने वाले घर को साफ करने में ही निकल जाती है।

बहुत सी महिलाएं यहां आंखों की इस जलन के इलाज के लिए के लिए डॉक्टर द्वार बताई हुई एक दवा का इस्तेमाल करती हैं। ये महिलाएं बताती हैं कि धुआं आंखों में जाता है और आंखों से पानी बहने लगता है या जलन शुरू हो जाती है।

यहां रहने वाले नितिन दुबे बताते हैं कि कैसे पास ही बनी एक फैक्ट्री से धुआं निकलता है और बादल छा जाते हैं। 26 साल के इस नौजवान को अपने माता-पिता की चिंता है। नितिन बताते हैं कि रोज़गार की मजबूरी के कारण उन्हें अपने गांव की ताज़ी हवा छोड़कर यहां रहना पड़ रहा है।

पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर तीन में रहवासी कॉलोनी से कुछ दूर एक स्टील फैक्ट्री

एक अन्य युवा संजय सिंह बताते हैं कि कैसे सुबह से शाम तक वायु प्रदूषण बना रहता है। उनके माता-पिता भी इस प्रदूषण से परेशान हैं। उनकी मां उषा सिंह बताती हैं कि उनके पति अब ज्यादा बीमार रहते हैं। उन्हें सांस लेने में परेशानी होती है और उन्हें खुद भी कफ और सिरदर्द बना रहता है। वे कहती हैं कि अब यहां से अपना घर बेचकर कहीं और जाने के लिए भी सोच रहीं हैं।

उनके मुताबिक उनकी बहू भी अक्सर बीमार रहती है और उसे  भी प्रदूषण के चलते सांस लेने में परेशानी होती है। वे आगे बताती हैं कि रोजाना घर गंदा होता है। घर के सीलिंग फैन हर दस दिन में पूरी तरह साफ करने होते हैं। वे बताती हैं कि उनके और ज्यादातर घरों में सफाई की जिम्मेदारी महिलाओं पर ज्यादा है क्योंकि वे घरों में होती हैं और पति काम पर जाते हैं।

इस इलाके में करीब 20 लोगों से बात की गई। इन सभी ने प्रदूषण को एक गंभीर स्थिति बताया। इनमें महिलाओं की समस्याएं ज्यादा दिखाईं दीं। इन महिलाओं के मुताबिक दिन भर घर में रहकर हवा में समाए इस प्रदूषण का मुकाबला करना आसान नहीं है।

इसी क्षेत्र में अपने दो मंजिला मकान में रहने वाली 45 वर्षीय महिला उर्मिला बताती हैं कि कई बार सुबह चार-पांच बजे फैक्ट्रियों की चिमनियां शुरू हो जाती हैं। इसके बाद जब परिवार के लोग सोकर जागते हैं तो घर की छत, दीवारों और यहां तक कि अंदर फर्श पर भी काला धुआं और इसकी कालिख़ मिलती है। इसे साफ़ करना उनकी रोज की दिनचर्चा है।

उर्मिला बताती हैं कि इसके बाद शरीर में ज्यादा काम करने की ताकत नहीं रहती। उनके मुताबिक उनका स्वास्थ्य प्रदूषण से दो तरह से प्रभावित है। एक तो वे हवा के साथ इसे अपने शरीर में लेने को मजबूर हैं और दूसरा उन्हें इसे साफ करने के लिए रोजाना कड़ी शारीरिक मेहनत करनी पड़ती है। वे कहती हैं कि कई परिवार यहां आकर कुछ साल रहते हैं और फिर कहीं और रहने के लिए चले जाते हैं।

प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण विभाग में प्रयोगशाला प्रमुख के रुप में कार्यरत रहे डॉ. दिलीप कुमार वाघेला बताते हैं कि

अमूमन पीथमपुर में प्रदूषण रोकने के लिए कारखाने कारगर कदम उठाते हैं, लेकिन कई स्थानों पर ऐसा नहीं होता। इन कारखानों के आसपास कई मजदूर रहते हैं जिन्हें यह प्रदूषण झेलना पड़ता है।

पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में आदर्श वर्कर्स कॉलोनी यानी कामगारों के लिए बेहतर रिहायश इलाकों को विकसित करने की मांग काफी पहले से उठ रही है। हालांकि इन मांगों को लेकर कोई बहुत ठोस जवाब अब तक नहीं मिल सका है।

प्रदूषण विभाग के अधिकारी इसे समस्या तो मानते हैं, लेकिन वे प्रदूषण के आंकड़ों को बताते हुए कहते हैं कि यहां प्रदूषण की स्थिति इतनी ख़राब नहीं है जिससे किसी के स्वास्थ्य पर असर पड़े। क्षेत्रीय अधिकारी कांति चौधरी बताते हैं कि

अब तक ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है। हालांकि चौधरी कहते हैं कि वे इस बारे में जल्दी ही रिपोर्ट जुटाएंगे।

इस बात पर श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. सलिल भार्गव बताते हैं कि

कारखाना क्षेत्रों में रहने वाले कामकाजी लोगों के लिए यह स्थिति काफी परेशानी भरी होती है। इसी तरह के वातावरण में लंबे समय तक रहना इन लोगों के लिए खतरनाक होता है। वे कहते हैं कि इससे उनके फेफड़ों पर काफी बुरा असर पड़ता है।

भार्गव के मुताबिक मजदूर अपने कारखानों के नजदीक रहना चाहते हैं ताकि उनका आवाजाही का खर्च बच सके। ऐसे में अब कारखानों को चाहिए कि वे प्रदूषण को कम रखने के लिए तय मापदंडों का पालन करें।

औद्योगिक क्षेत्रों में बहुत से रहवासी प्रदूषण संबंधी अपनी शिकायतें न सुने जाने की बात कहते हैं। सेक्टर तीन की जिस कॉलोनी से देशगांव यह रिपोर्ट ला रहा है वहां भी लोगों की आम शिकायत यही सुनने को मिली। प्रदूषण नियंत्रण विभाग के एक अधिकारी नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर कहते हैं कि प्रदूषण से निपटना आसान नहीं है। इसके लिए एक ढांचागत विकास की जरुरत है जो कि फिलहाल उपलब्ध नहीं है।

इसी तरह एक स्टील फैक्ट्री के अधिकारी भी गोपनीयता की शर्त पर बताते हैं कि फैक्ट्री परिसर के अंदर मजदूर रहते हैं और आसपास के इलाके में लोग बसे हैं। वे बताते हैं कि उनकी फैक्ट्री में तमाम मापदंडों का पालन किया जाता है, लेकिन फिर भी काले धुएं पर पूरी तरह रोक लगा पाना मुश्किल और खर्चीला काम होता है इसलिए ज्यादातर फैक्ट्रियों में इसका पूरी तरह पालन नहीं होता।

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औद्योगिक क्षेत्रों में बुनियादी ढांचागत सुविधाओं की कमी है और ज्यादातर कामकाजी आबादी इन कारखानों के नजदीक ही रहती है और इनमें महिलाओं को वायु प्रदूषण का खतरा अधिक है। ये खतरा उन महिलाओं को और भी अधिक होता है जो इन फैक्ट्रियों में काम करती हैं। यह समझना भी जरुरी है कि कैसे कारखानों के प्रदूषण से रोज़गार और श्रमिक आपूर्ति प्रभावित होती है। अगर यह अध्ययन होता है तो हम समझ सकेंगे कि कैसे रोजगार देने वाले कारखाने इन विषयों से और भी अधिक प्रभावित होता है। ऐसे में प्रदूषण नियंत्रण करने के नियमों का पालन करना उनके लिए कहीं ज्यादा फायदेमंद होगा।


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