सिंगरौली जिला सबसे अधिक वायु प्रदूषण वालों शहरों में शामिल, बढ़ रही सांस व त्वचा से जुड़े रोगियों की संख्या


सिंगरौली जिले में दिल्ली सरीखा वायु प्रदूषण है और कोयला व विद्युत उत्पादक कंपनियां प्रदूषण का प्रमुख कारण मानी जा रही हैं।


Manish Kumar
हवा-पानी Published On :
air pollution singrauli

सिंगरौली। वायु प्रदूषण शब्द सुनकर सबसे पहले देश की राजधानी दिल्ली का नाम ही सामने आता है लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मध्यप्रदेश में क्षेत्रफल व आबादी के मामले में भोपाल व जबलपुर भले ही आगे हों, लेकिन वायु प्रदूषण के मामले में एक छोटा सा जिला सिंगरौली इन दोनों ही शहरों से आगे है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ऐप पर जारी रिकॉर्ड के मुताबिक, प्रदेश में सिंगरौली की स्थिति वायु गुणवत्ता इंडेक्स के मामले में सबसे अधिक खराब है।

मौसम के बदले रूख और बढ़ी आर्द्रता के बीच सिंगरौली जिले की हवा खराब होती जा रही है और कोयला व विद्युत उत्पादक कंपनियां प्रदूषण का प्रमुख कारण मानी जा रही हैं। इस जिले में दिल्ली सरीखा वायु प्रदूषण है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ऐप पर जारी रिकॉर्ड के मुताबिक, 20 नवंबर को वायु गुणवत्ता इंडेक्स भोपाल का 322 और जबलपुर का 309 अंक दर्ज किया गया। वहीं दूसरी ओर से सिंगरौली में वायु गुणवत्ता इंडेक्स 331 दर्ज किया गया जिसे सबसे खराब स्थिति माना जा रहा है।

जिले व आसपास के क्षेत्र में विद्युत उत्पादक कंपनियों की 20 चिमनियां 24 घंटे जहरीला धुआं उगलती हैं। हालांकि प्रदूषण को कम करने के लिए चिमनियों में एफजीडी (फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन) तकनीकी लगाने की प्रक्रिया जारी है।

हालांकि, इन इकायों की चिमनियों से धुआं निकलने का सिलसिला जारी है, जिससे यहां का वायु प्रदूषण स्तर भोपाल व जबलपुर जैसे शहरों से भी अधिक है।

बता दें कि एनटीपीसी विंध्यनगर में छह, एनटीपीसी सिंगरौली शक्तिनगर में चार, हिंडालको में छह, रिलायंस में तीन व एस्सार पॉवर में एक चिमनी लगभग चौबीसों घंटे धुआं उगलती ही रहती हैं।

सिंगरौली परिक्षेत्र में वायु प्रदूषण दमघोंटू बनता जा रहा है। आलम यह है कि लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है और खांसी सहित अन्य बीमारी होना तो आम बात होती जा रही है।

पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. अनिल गौतंम, पर्यावरण कार्यकर्ता प्रमोद शर्मा व पर्यावरणविद् प्रदीप सिंह का कहना है कि यहां हवा में अन्य शहरों की तरह वाहनों का धूल कण तो नहीं है, लेकिन उद्योगों से निकले फ्लोराइड, मर्करी, सीसा आदि हैवी मेटल्स स्वास्थ्य को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं।

क्षेत्र के सभी सरकारी डॉक्टर इस तथ्य को अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन जानते-बूझते हुए भी कोई इस बारे में कुछ नहीं बोलता और इलाके में सांस और त्वचा रोग के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के स्थानीय अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक अभी जिले में प्रदूषण की यह स्थिति बनी रहने वाली है। नवंबर के दूसरे सप्ताह से लगातार जिले का वायु गुणवत्ता इंडेक्स 300 से अधिक ही आ रहा है।

हालांकि अधिकारी दलील देते हैं कि सिंगरौली जिले के लिए यह खतरा नया नहीं है क्योंकि बीते कई सालों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती रही है।

वर्ष 2024 तक विद्युत उत्पादक कंपनियों के सभी यूनिटों में एफजीडी (फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन) तकनीकी लगाए जाने का लक्ष्य रखा गया है और यदि योजना के मुताबिक एफजीडी लगाने की प्रक्रिया पूरी हुई तो चिमनियों से निकलने वाला जहरीला धुआं बंद हो जाएगा।

इसके साथ ही सड़क मार्ग से कोयले का परिवहन भी वर्ष 2024 तक कम होने की संभावना है। इसका मतलब यह है कि अभी जिले के रहवासियों को तीन साल तक और वायु प्रदूषण का दंश झेलना होगा।


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