मध्यप्रदेश के इंदौर में लंबे समय बाद कोरोनाकाल के सन्नाटे को तोड़ते हुए तमाम विपक्षी राजनीतिक दल, जनसंगठन और सामाजिक कार्यकर्ता बारिश में भीगते हुए सड़क पर एक मानव श्रृंखला बनाने के लिए उतरे।
सोमवार 28 जून को संघर्ष की यह अद्भुत एकजुटता एक जंगल को बचाने के लिए दिखायी गयी जहां आदित्य बिड़ला समूह के हीरा खनन के लिए सरकार पेड़ों को काटने जा रही है। पिछले कई दिनों से बक्सवाहा के जंगल को लेकर लिखा जा रहा है, लेकिन सड़क पर इतना बड़ा आंदोलन इससे पहले देखने में नहीं आया है।
इंदौर में इस जंगल को बचाने के लिए बक्सवाहा बचाओ समर्थक समूह बना है जिसमें तमाम गैर-सरकारी संगठन और जनसंगठनों व दलों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
इसी समूह की ओर से संभाग आयुक्त के दफ्तर पर बुलाये गये प्रदर्शन के बाद राज्यपाल के नाम दिये गये ज्ञापन में स्पष्ट मांग की गयी कि बिड़ला समूह को 50 साल के पट्टे पर जंगल को देने और सवा दो लाख से ज्यादा पेड़ काटने की पर्यावरणीय मंजूरी को तत्काल वापस लिया जाय।
बक्सवाहा का जंगल पन्ना के पास छतरपुर में पड़ता है। यहां आदित्य बिड़ला समूह की कंपनी एस्सेल माइनिंग को खुदाई कर के हीरा निकालना है। इसके लिए सवा दो लाख के आसपास पेड़ काटे जाने हैं।
अनुमान के अनुसार यहां 3.42 करोड़ कैरेट (6.8 टन) के हीरे दबे पड़े हैं जिसके लिए 382 हेक्टेयर जंगल को नष्ट किया जाना होगा। इससे जंगल में रहने वाली 17 जनजातियों के कुल 8000 लोग विस्थापित हो जाएंगे। उनके पुनर्वास और पुनर्स्थापन की कोई योजना अभी सामने नहीं रखी गयी है।
इस खनन परियोजना के खिलाफ भोपाल में एनजीटी की पीठ के समक्ष जबलपुर के डॉ. पीजी नाजपांडे ने एक याचिका लगायी थी जिसे वहां सूचीबद्ध नहीं किया गया। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी। याचिकाकर्ता का नाम नेहा सिंह है।
दो साल पहले 2019 में मध्य प्रदेश की सरकार ने हीरा खनन परियोजना के लिए जंगल की नीलामी का टेंडर जारी किया था जिसमें आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को ठेका मिला और सरकार ने 62.64 हेक्टेयर क़ीमती वन भूमि कंपनी को अगले पचास वर्षों के लिए पट्टे पर दे दी।
वन विभाग की जनगणना के अनुसार बक्सवाहा के जंगल में 2,15,875 पेड़ हैं। इस उत्खनन को करने के लिए सागौन, केन, बेहड़ा, बरगद, जम्मू, तेंदु, अर्जुन, और अन्य औषधीय पेड़ों को काटना होगा। स्थानीय लोग इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं और अब यह विरोध संगठित होकर इंदौर जैसे महानगर तक पहुंच चुका है।
इस परियोजना की लागत लगभग 55000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। खनन 62.64 हेक्टेयर क्षेत्र में होना है लेकिन कंपनी ने 382.13 हेक्टेयर भूमि की मांग की है। उसके मुताबिक अतिरिक्त वन क्षेत्र का उपयोग परियोजना के लिए सहायक बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए किया जाना है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका के अलावा एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जा रहा है जो वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के नाम है।
2.15 lakh trees to be cut in the Buxwaha forest for a diamond mine. The mining project will destroy 382.131 hectares of forest. Ask @PrakashJavdekar to not give clearances to mining at Buxwaha forest. @jhatkaadotorg https://t.co/dIGQbYl21p #SaveBuxwahaForest
— Vizhaag.S (@VizhaagS) June 29, 2021
सोमवार को प्रदर्शन से दो हफ्ते पहले 16 जून को मध्य प्रदेश के जनसंगठनों और संस्थाओं की एक ऑनलाइन बैठक आयोजित की गई थी जिसमें एक तदर्थ कमेटी का गठन किया गया।
इसके कामों में बक्सवाहा के मसले पर कार्यरत लोगों से समन्वय कर एक संयोजन समिति का गठन करना और बक्सवाहा के जमीनी हालात देखकर आगे की रणनीति बनाने को मूर्तरूप देना शामिल है।
इसके बाद 24 और 25 जून को कमेटी के राहुल भायजी, अब्दुल हक, यश भारतीय और सचिन श्रीवास्तव ने बक्सवाहा का दौरा कर के एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की।
इस रिपोर्ट में बक्सवाहा जंगल में पांच पक्षकारों और उनके हितों को गिनवाया गया है। पहला पक्ष सरकार और कंपनी का है, जिनकी दिलचस्पी जंगल के नीचे दबे पड़े हीरे में है।
दूसरा पक्ष उन लोगों का है जिन्हें इलाके में पहले खनन कर चुकी कंपनी रियो टिंटों से फायदा हुआ था और जिन्हें नौकरी मिली थी। जब कंपनी ने अपना काम वहां बंद किया तो करीब 400 लोगों को चार-चार लाख रुपये का अतिरिक्त भुगतान भी हुआ था।
ऐसे लोगों को उम्मीद है कि नये खनन प्रोजेक्ट से उन्हें फिर से फायदा होगा और उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी। तीसरा पक्ष खनन का विरोध कर रहे संगठनों का है जो किसी भी कीमत पर बक्सवाहा के जंगलों को नहीं कटने देना चाहते।
चौथा पक्ष ऐसे लोगों का है जो पेड़ों और पर्यावरण को बचाने की बात तो करते हैं, स्थानीय निवासियों के रोजगार की चिंता में यह भी मानते हैं कि प्रोजेक्ट के माध्यम से अगर कुछ लोगों को रोजगार मिल जाता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
आखिरी और सबसे जरूरी पक्ष उन ग्रामीणों का है जो हीरा खनन में रोजगार की उम्मीद लगाये बैठे हैं। उन्हें लगता है कि इससे एक बेहतर भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।
आज से नौ साल पहले ब्रिटिश-ऑस्ट्रेलियाई हीरा कंपनी रियो टिंटो ने यहां खनन का एक प्रस्ताव राज्य सरकार को दिया था। 6.8 टन हीरे दबे होने का आंकड़ा उसी के सर्वे से आया था। उसके बाद रियो टिंटो ने राज्य सरकार के साथ एक अनुबंध पर दस्तखत किया और 140 करोड़ रुपये का निवेश कर डाला।
उसे वन विभाग की ओर से एक छोटे स्तर की परियोजना की ही मंजूरी मिली थी। इस जमीन का आकार पौने पांच सौ हेक्टेयर था। बाद में 2014 में कंपनी ने 500 हेक्टेयर जमीन और मांगी और पूर्ण खनन के लिए कुल ज़रूरत 971 हेक्टेयर की बतायी तो मामला फंस गया।
वन विभाग ने इस मांग को खारिज कर दिया। फिर यह प्रस्ताव वन परामर्श समिति (एफएसी) को भेज दिया जो कि वनों के मामले में मंजूरी देने वाली सर्वोच्च इकाई है। इस बीच स्थानीय आबादी की ओर से परियोजना का तगड़ा विरोध हुआ। इन सब के बीच 2016 में रियो टिंटो को परियोजना को बीच में ही छोड़ कर जाना पड़ा।
एस्सेल माइनिंग ने फिलहाल 364 हेक्टेयर जमीन की ही मांग की है, लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि एक साथ 971 हेक्टेयर उसने जान-बूझ कर नहीं मांगा है क्योंकि मामला फंस जाता। इस तरह एक बार मंजूरी मिल जाने पर कंपनी धीरे-धीरे उतनी ही ज़मीन ले लेगी जितनी 2015 में रियो टिंटो ने मांगी थी और उसे नहीं मिली।
छतरपुर में बक्सवाहा बचाओ अभियान के संयोजक शरत कुमरे ने 26 जून को जिला मुख्यालय पर एक विरोध प्रदर्शन की योजना बनायी थी लेकिन प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी। इसके बाद से वहां के पर्यावरणकर्मी और संगठन हरित सत्याग्रह पर बैठे हुए हैं जो आज खत्म होने की बात कही गयी है।
इससे पहले छतरपुर में अलग-अलग तबकों की ओर से बक्सवाहा बचाने की अपील की गयी है। कोई दो सप्ताह पहले यहां उत्तराखंड के चिपको आंदोलन की तर्ज पर पेड़ों से लिपटने का एक अभियान शुरू किया गया था।
चित्रकूट प्रमुख द्वार के महंत स्वामी मदन गोपाल दास ने बक्सवाहा के बम्हौरी गांव में पर्यावरण चौपाल लगायी थी और पेड़ कटाई को रोकने पर जोर देते हुए पेड़ों से लिपटकर उन्हें बचाने का संकल्प भी लिया था। अभी चार दिन पहले बिलकुल ऐसा ही अभियान अलीराजपुर के कटठीवाड़ा में युवाओं ने चलाया था।
उधर महोबा जिले में बक्सवाहा को बचाने के लिए हवन पूजन का कार्यक्रम हुआ है। वहां के लोगों ने प्रधानमंत्री और दमोह के सांसद प्रहलाद सिंह पटेल को इससे पहले अपने खून से पत्र लिखा था। ऐसा पहली बार नहीं था।
अलग बुंदेलखंड राज्य की मांग को लेकर 635 दिन तक अनशन कर चुके बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के संरक्षक तारा पाटकर, बुन्देलखण्ड राष्ट्र समिति के केन्द्रीय अध्यक्ष प्रवीण पांडेय , बीआरएस प्रमुख डालचंद ने अपने साथियों के साथ 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर 17वीं बार प्रधानमंत्री, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपने खून से खत लिखा था और बक्सवाहा जंगल को बचाने की मांग की थी।
बांदा, महोबा, हमीरपुर, चित्रकूट, फतेहपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी आदि जिलों में भी बुंदेलखंड के लोगों ने अपने खून से खत लिखकर बुंदेलखंड के इस जंगल को बचाने की गुहार लगायी थी।
पर्यावरण दिवस के आसपास ही नरसिंहपुर में कई कवियों और गीतकारों के फुटेज को मिलाकर बनाया गया एक वीडियो गीत भी जारी किया गया था जिसमें बक्सवाहा को बचाने का आह्वान था।
नरसिंहपुर में कई कवियों और गीतकारों के फुटेज को मिलाकर बनाया गया एक वीडियो
इंदौर के इस ऐतिहासिक प्रदर्शन पर तकरीबन सभी अखबारों ने अच्छी कवरेज की है। नीचे कुछ अखबारों में प्रदर्शन की छपी खबरों को देखा जा सकता है।