इंदौर। मध्यप्रदेश की जीवन दायिनी नर्मदा नदी करीब 48 घंटे तक उल्टी बहने के बाद अब सीधी अपनी मूल दिशा में बह रही है। नदी के उल्टा बहने की ख़बरों ने पिछले दिनों खूब सुर्ख़ियां बटोरीं। कहा गया कि नर्मदा अब अपने स्वभाव के मुताबिक पूर्व से पश्चिम की ओर बहने लगी है। लेकिन विशेषज्ञ इसे सही नहीं मानते। उनके मुताबिक नदी गुरुत्वाकर्षण के आधार पर आगे चलती है और कभी उल्टी नहीं बह सकती और अगर कहीं ऐसा दिखाई दिया है तो यह नदी के विपरीत बह रहीं तेज़ हवाओं के कारण हुआ भ्रम हो सकता है जो कि लहरों में हिलोरे लाता है। ये हिलोरे अगर उल्टी दिशा में दिखाई दिये तो लोग सोच सकते हैं कि नदी उल्टी बह रही है लेकिन ऐसा होता नहीं।
बीते कुछ दिनों मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में काफ़ी बारिश हुई। इस दौरान तेज़ हवाएं चलीं। इस बीच 12 अप्रैल को लोगों को नज़र आया कि नर्मदा नदी की लहरे किनारों से उल्टी दिशा में टकरा रहीं हैं। यह नज़ारा बहुत से लोगों ने देखा। जिसके बाद यह ख़बर अख़बारों की हैडलाइन तक बन गईं। हालांकि जब नदी विज्ञान को समझें तो नदी का उल्टा बहना लगभग उतना ही अनोखा माना जाता है जितना की सूर्योदय की दिशा बदल जाना।
इंदौर के जियोलॉजिस्ट डॉ. सुनील चतुर्वेदी इस ख़बर पर चौंक जाते हैं वे बताते हैं कि यह संभव नहीं है। नदी गुरुत्वाकर्षण के नियम के आधार पर बहती है और यह नियम नहीं बदलता ऐसे में नदी का उल्टा बहना अगर दिखाई दिया है तो यह नदी के मार्ग में किसी बाधा के कारण एक बहुत छोटे से हिस्से में हो सकता है लेकिन नर्मदा नदी की दिशा में फिलहाल कोई रुकावट दिखाई नहीं देती।
नर्मदा बचाव आंदोलन से जुड़े बड़वानी में रहने वाले रहमत भाई कहते हैं कि एक साधारण लेकिन सबसे अहम नियम है गुरुत्वाकर्षण। जिस पर प्रथ्वि की हर चीज़ काम करती है। कोई भी नदी इससे परे नहीं है। वे कहते हैं कि अगर इसे भी कोई अनदेखा करे तो कम से कम यह समझना ज़रूरी है कि अगर नदी उल्टी बह जाती तो पानी सरदार सरोवर बांध से करीब दो सौ किमी दूर खंडवा में ओंकारेश्वर बांध तक पहुंच जाता।
और अगर ऐसा होता है तो इतनी दूर तक नर्मदा जैसी विशाल नदी को धक्का देने वाला पानी अपने किनारों पर किस कदर तबाही मचा सकता था। इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में कहा जा सकता है कि नर्मदा के उल्टे बहने का यह दावा या ख़बर पूरी तरह सही नहीं है।
इस ख़बर को पत्रकार शैलेंद्र लड्ढा ने कवर किया। वे बताते हैं 15 जुलाई को मध्यप्रदेश के राजघाट में नर्मदा का जलस्तर 117.10 मीटर था वहीं सरदार सरोवर बांध का 117.50 मीटर पर था। यही वजह थी सरदार सरोवर से बैक वाटर का आना। जो नर्मदा को उल्टी दिशा में धकेल रहा था। उन्होंने इस दौरान नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के एक उपयंत्री आरवी सिंह से भी पुख़्ता किया था जिन्होंने कहा कि गुजरात में सरदार सरोवर के जल संग्रहण क्षेत्र में बारिश का पानी अधिक होने के कारण नदी उल्टी दिशा में बह रही है।
लड्ढा के मुताबिक इससे पहले 12 जुलाई, मंगलवार को सुबह धार जिले के कई हिस्सों में लोग उस समय चौंक गए जब नर्मदा नदी पश्चिम से पूर्व की ओर बह रही थी। इस दौरान घाटों पर लहरें अलग तरह से टकरा रहीं थीं। धार के अलावा दो अन्य जिलों में आलीराजपुर और बड़वानी में करीब 140 किमी की लंबाई तक नर्मदा इसी तरह बह रही थी। हालांकि उनके इस बात को मानने की एक ठोस वजह इस दौरान 11 से 12 जुलाई के बीच धार के चिखलदा में राजघाट डेम में जल स्तर में हुई बढ़ोत्तरी भी रही। जो करीब 1.60 मीटर तक बढ़ गया था। हालांकि इस दौरान मध्यप्रदेश के कई इलाकों में तेज़ बारिश हो रही थी। वे बताते हैं कि इससे पहले 4 अगस्त 2019 को भी ऐसा हुआ था। यह तब हुआ था जब साल सरदार सरोवर बांध के गेट लगने के बाद नर्मदा उल्टी बही थी।
इस ख़बर पर हमने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में विशेषज्ञ अधिकारियों से बात करने का प्रयास किया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका। हालांकि दो दिनों तक प्रदेश की सबसे बड़ी नदी के बदले मिजाज़ को लेकर उनकी ओर से कोई जानकारी जारी भी नहीं की गई थी। ऐसे में इस ख़बर में उनका पक्ष शेष है।
आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय में पर्यावरण के जानकार शैलेंद्र शर्मा कहते हैं कि नर्मदा जैसी विशाल नदी अगर उल्टा बह जाती है तो तंत्र बिगड़ जाएगा। इस नदी का पानी इतनी अधिक दूरी तक और इतने लंबे समय तक उल्टा नहीं बह सकता लेकिन अगर वाक़ई ऐसा होता है तो ईकोलॉजी यानी बुरी तरह से प्रभावित हो जाएगी। नदी के जीव खत्म हो सकते हैं। नदी का बहाव बदलने से कई इलाकों में पानी भर जाएगा। नदी की अंदरूनी सतहों में जमा गंदगी वापस उभर आएगी और इससे अधिक कई दूसरे दुष्प्रभाव हो सकते हैं जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता।