अभ्यारण्य में लौटी रौनक, साल में पहली बार दिखा दुर्लभ खरमोर


खरमोर पक्षी विशेषकर इस अभयारण्य मे प्रजनन के लिए यहां आते हैं लेकिन वर्ष प्रतिवर्ष इनकी संख्या मे गिरावट चिन्ता का विषय है।


आशीष यादव
हवा-पानी Updated On :

धार। क्षेत्र में पाया जाने वाले दुर्लभ पक्षी खरमोर एक बार फिर सरदारपुर तहसील के अभ्यारण्य में दिखाई दे रहे हैं। शनिवार को यहां खरमोर पक्षी देखे गए। खरमोर जैसे पछी के लिये यह अभयारण्य देशभर में जाना जाता है।

इस खरमोर अभयारण्य पर शासन का एक बड़ा बजट खर्च इसलिए होता है कि इन पक्षियो की संख्या में इजाफा हो और लुप्त होती इस प्रजाति को बचाया जा सके लेकिन वर्ष – प्रतिवर्ष अभयारण्य में खरमोर की कम होती संख्या के चलते वन विभाग चिंतित  है। इस साल अब तक दिखा यह पहला खरमोर पक्षी है।

 

इस बार वन विभाग ने इनकी सुरक्षा, रहन सहन, खान-पान को लेकर विशेष इंतजाम किये हैं।  अभयारण्य के कंपाउंड क्रमांक 422 और 423 मे 584.233 हेक्टेयर मे वन विभाग ने भोजन – पानी के साथ ही सुरक्षा के पूरे उपाय किये है। इस अभयारण्य मे प्रतिवर्ष जुलाई माह मे प्रवासी खरमोर पक्षी आते है और अक्टूबर के अन्त तक परिवार बढ़ाकर बच्चो संग उड़ान भरकर निकल जाते है।

खरमोर पक्षी विशेषकर इस अभयारण्य मे प्रजनन के लिए यहां आते हैं लेकिन वर्ष प्रतिवर्ष इनकी संख्या मे गिरावट चिन्ता का विषय है। इन्हें शिकारियों से बचाना भी विभाग के लिये एक बड़ी चुनौती है।

वन विभाग के एसडीओ सन्तोष कुमार रनशोरे ने बताते है कि खरमोर पक्षी राजस्थान के भरतपुर की ओर से आते हुए धार जिले के सरदारपुर पहुंचते हैं। यह पक्षी शर्मीले होते है इसलिए वे अपने आवास के चयन को लेकर काफी गंभीर होते हैं।

हरियाली और लम्बी – लम्बी घांस खरमोर को खूब भाती है। लम्बी घास की बीड़ मे छुपकर रहना और प्रजनन के आन्नद के साथ ही बच्चों के जन्म और उनके उड़ान भरने जैसे हालात होते ही खरमोर अपने परिवार के साथ वापस अपने मूल स्थान को लोट जाते हैं।

खरमोर पक्षी का प्रिय भोजन कीट व इल्ली होता है। वन विभाग ने खरमोर को अपने अभयारण्य मे आकर्षित करने के लिए इस बार 90 हेक्टेयर भूमि मे मूंग , उड़द , चवले की बोवनी की है। इन फसलो मे अधिक संख्या मे कीट और इल्ली लगने से ही खरमोर के भोजन की व्यवस्था होती है।

प्रारंभिक वर्षाकाल में ही यह अभयारण्य हरियाली की खूबसूरत चादर ओढ़े अपने खरमोर मेहमानो के आने का बेसब्री से इन्तजार कर रहा है। खरमोर के प्रजनन स्थल क्षेत्र को तार फेंसिंग कर सुरक्षित कर दिया गया है। बस अब यह हरियाली से सजा – धजा अभयारण्य अपने मेहमानो के आगवानी की लिए प्रतीक्षा कर रहा है।

वन विभाग के रेंजर महेश अहिरवार बताते है कि वर्ष 82-83 मे राष्टीय स्तर के बर्ड विशेषज्ञ सलीम अली इस क्षेत्र मे आए थे तब उन्होंने पाया था कि यहां खरमोर नामक पक्षी आते हैं इसके बाद से ही इस पर बड़े पैमाने पर तैयारी शुरु हुई थी।

यहां का अभ्यारण्य धार जिले की सरदारपुर से 15 कि.मी. दूर पानपुरा गांव में बनाया गया। इसकी स्थापना 4 जून 1983 को की गई थी। यहां करीब 20800 हेक्टेयर जमीन पर अभ्यारण्य बनाया गया है।

वर्तमान मे खरमोर अभयारण्य के खर्च के लिए शासन स्तर से जिस बजट की जरुरत होती है उससे काफी कम यहां पहुंचता है। यहां हर साल 15 लाख रुपये के आसपास दिये जाते हैं जबकि जरुरत इससे कहीं अधिक की होती है।

 

भूमि की खरीदी बिक्री पर रोक: इस खरमोर अभयारण्य क्षेत्र के 14 गांवों की हजारों हेक्टेयर भूमि की खरीदी बिक्री पर शासन ने तीन दशक से रोक लगा रखी है।शासन की मंशा है कि यह अभयारण्य दुर्लभ खरमोर पक्षियो के लिए सुरक्षित रहे , लेकिन समय – समय पर राजनेता अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए इस क्षेत्र की भूमि की खरीदी बिक्री के रोक के रास्ते को खोलने के लिए घोषणाएं और वादे करते रहे हैं।

बताया जाता है कि दो वर्ष पूर्व इस क्षेत्र से खरीदी बिक्री का रास्ता साफ करने के लिए वन व राजस्व विभाग ने राज्य वाइल्ड लाइफ बोर्ड को एक प्रस्ताव भेजा था  जिस पर अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।

कब कितने आए खरमोर:
सरदारपुर के पानपुरा अभयारण्य में वर्ष 2002-2003 मे सर्वाधिक 38 खरमोर आए थे ।
इसके बाद 2004 में 32 ,  2005 मे 28 ,  2006-2007 और 2008 में 14, 2009 में 22, 2010 2011 में 28, 2012 में 12, 2013 में 8 , 2018 में 14, 2019 में 6 और  2020 में  3 और अब 2021-1 अभी खरमोर पक्षी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।

वन परिक्षेत्र अधिकारी महेश कुमार अहिरवार ने बताया कि अभयारण्य क्षेत्र के क्रमांक 422 में शुक्रवार को एक जोड़ा खरमोर पक्षी का देखा गया है। पक्षियों की सतत निगरानी की जा रही है व दूरबीन से इनपर नजर रखी जा रही है। इसके साथ ही इस बात का भी ख्याल रखा जा रहा है कि इन पक्षियों को इस निगरानी से कोई परेशानी न हो।


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