विश्व आर्द्रभूमि दिवस: आद्रभूमि को संरक्षित करने का सार्थक प्रयास आवश्यक


भारत में आर्द्रभूमि (वेटलैंड) संरक्षण और रामसर साइट्स का महत्व। जलवायु परिवर्तन से निपटने में वेटलैंड्स की भूमिका, मध्यप्रदेश की प्रमुख झीलें और सरकार की अधिसूचना प्रक्रिया पर विस्तृत जानकारी।


राजकुमार सिन्हा
हवा-पानी Published On :

ईरान के शहर रामसर के केस्पियन सागर तट पर दो फरवरी 1971 को अंतर्राष्ट्रीय वेटलैंड यानी आद्रभूमि कन्वेंशन का आयोजन हुआ था। जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ ने दो फरवरी को आद्रभूमि दिवस घोषित किया था। जो आद्रभूमि विश्व भर में जैवविविधता और मानव के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जाती है, उन्हें ‘रामसर साईट’ दर्जा दिया जाता है। किसी भी आद्रभूमि को रामसर साईट का दर्जा देने के लिए कुछ मानक तय किया गया है। जिसमें मुख्य आद्रभूमि का दुर्लभ व प्राकृतिक होना और संकटग्रस्त प्रजातियों के जीवन चक्र को प्रतिकूल परिस्थितियों में आश्रय देना शामिल है।

आद्रभूमियों की अधिसूचना उनके संरक्षण और भविष्य में रामसर साईट का दर्जा मिलने की संभावनाओं के लिये रास्ता बनाती है।अधिसूचना काफी मायने रखती है क्योंकि यह आद्रभूमि की सीमाओं का निर्धारण करने और इसके प्रभाव क्षेत्र की पहचान करने के अलावा जल निकाय को कानूनी दर्जा देने का भी काम करती है। सरकारें आद्रभूमियों की अधिसूचना में सक्रिय तौर पर रूचि नहीं लेती है क्योंकि अधिसूचना के बाद आद्रभूमि और उसके आसपास की गतिविधियों को विनियमित करने के अलावा आद्रभूमि की सीमाओं का निर्धारण किया जाता है। किसानों और मछुआरों के साथ- साथ उनके आसपास रहने वाले तमाम लोग अपनी आजीविका के लिए आद्रभूमि से जुड़े होते हैं और अधिसूचना जारी होने के बाद इन सभी लोगों पर सीधा असर पड़ता है।

झील के आसपास भूमाफियाओं द्वारा अनधिकृत रूप से जमीन पर कब्जा के कारण भी अधिसूचना में अङंगे डाले जाते हैं। वेटलैंड इंटरनेशनल’ के अनुसार भारत की करीब 30 प्रतिशत आर्द्रभूमि पिछले तीन दशकों में विलुप्त हो चुकी है। विश्व में रामसर स्थलों की संख्या 2414 है और भारत में 85 है।

मध्यप्रदेश में भोपाल का ‘राजा भोज तालाब,’ इंदौर का ‘सिरपुर झील’ एवं ‘यशवंत सागर’ तालाब,शिवपुरी जिले के ‘माधव राष्ट्रीय उद्यान’ में स्थित ‘सांख्य सागर’ और पिछले वर्ष अगस्त में तवा जलाशय को शामिल करने के बाद‘रामसर स्थलों’ की संख्या पांच हो गई है।हालिया मिडिया रिपोर्ट के अनुसार रामसर साइट घोषित भोपाल की बङी झील के केचमेंन्ट ही नहीं फुल टेंक लेबल (एफटीएल) में तेजी से निर्माण हो रहें हैं।

करीब पांच से सात एकङ दलदली जमीन को ठोस बनाने के साथ ही उस पर रिसोर्ट, कल्ब हाउस और रेस्टोरेंट बनाए जा चुके हैं।प्रशासन को इस अनियंत्रित अवैध निर्माण को सख्ती से निपटना चाहिए। मध्यप्रदेश राज्य वेटलैंड प्राधिकरण ने वेटलैंड रूल्स 2017 के तहत छह झीलों की अधिसूचना के लिए राज्य सरकार को भेजा था।

इसमें शिवपुरी जिले के जाधव सागर एवं माधव सागर, सागर जिले की सागर झीलें, अशोक नगर जिले के ईसागढ़ में सिंध सागर, रतलाम में अमृत सागर और दतिया जिले में सीता सागर शामिल हैं। सरकार के प्रयासों को सही दिशा में सही उद्देश्य के साथ आगे बढने की जरूरत है इसलिए इन सभी छह झीलों को राज्य वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017 के तहत शीघ्र अधिसूचित किया जाना चाहिए।

नियम में यह भी प्रावधान है कि अधिसूचना से पहले सार्वजनिक सुनवाई किया जाएगा। मंडला की आदिवासी गोंड रानी दुर्गावती द्वारा जबलपुर शहर में 52 तालाबों का निर्माण कराया गया था, परन्तु अवैध निर्माण और शहरीकरण के कारण अब गिनती के ही, आधे-अधूरे तालाब बचे हैं। जबलपुर में नर्मदा का 30 किलोमीटर प्रवाह क्षेत्र और ‘संग्राम सागर,’ ‘मढोताल,’ ‘बाल सागर,’ ‘देवताल’ आदि अनेकों तालाब पर्याप्त संसाधन के बाबजूद प्रबंधन की कमी के कारण ‘रामसर साईट’ में जगह नहीं बना पाए हैं।

‘वेटलेंड’ यानि आर्द्रभूमि के नाम से पहचाने जाने वाले अपने आसपास के ताल-तलैया, विशाल जलाशय और तटीय इलाके हजारों हजार जैविक इकाइयों का ठिकाना भर नहीं होते, बल्कि उनके भरोसे आज के सबसे बड़े जलवायु परिवर्तन के संकट से भी निपटा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए आर्द्रभूमि (वेटलैंड) हमारा सबसे प्रभावी पारिस्थितिकी तंत्र है। ये कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर तापमान कम करने और प्रदूषण घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

दलदली भूमि में कार्बन अवशोषित करने की क्षमता जंगलों की कार्बन भंडारण क्षमता से दोगुनी होती है।मध्यप्रदेश में 82 हजार 643 कुल जल निकाय हैं जिनमें आधे से भी अधिक 45 हजार 386 उपयोग में नहीं है। देश के तीन शहरों इंदौर, भोपाल और उदयपुर को ‘वेटलैंड सिटी’ का दर्जा दिलाने के लिए ‘केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ ने ‘रामसर सचिवालय, स्विट्जरलैंड’ को प्रस्ताव भेजा है। किसी शहर को यदि ‘वेटलैंड सिटी’ का दर्जा मिल जाता है तो वहां पर्यावरण संरक्षण के लिए दिए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए दरवाजे खुल जाते हैं।


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