धार/पीथमपुर। जहां एक ओर देश में सरकार उद्योग-धंधों को बढ़ाने में लगी हुई है वहीं उद्योग के साथ वायु प्रदूषण भी लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसको लेकर कठोर कार्रवाई नहीं हो रही है।
यदि समय रहते वायु प्रदूषण पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में इसका दुष्परिणाम देखने को मिलेगा। पूरा देश पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है।
सरकार के नियमों को ठेंगा दिखते नजर आ रहे उद्योग-कारखानों द्वारा नियम-कायदों का सही तरीके से पालन नहीं करने के कारण शहर की आबोहवा में धीमा जहर घुलने लगा है मतलब हवा प्रदूषित होने लगी है।
बीते दिन शहर में हानिकारक कणों का स्तर 260 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर यानी एक्यूआई तक पहुंच गया था। ये कण स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करते हैं। यह खतरा आगे और बढ़ेगा।
प्रदूषण को कम किया जा सकता है, इसके लिए पुराने कारखानों की चिमनियों सें निकलने वाला धुआं व पुराने वाहनों का उपयोग बंद करना होगा, निजी वाहनों से बाहर निकलने की बजाय लोक परिवहन को अपनाना होगा।
इसके साथ ही निर्माण कार्य ढंक कर करने होंगे व निर्माण सामग्री को सड़क पर जमा करने की बजाय अलग क्षेत्रों में रखना होगा। ये कुछ ऐसे कदम हैं, जो वायु प्रदूषण को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
शहर मे उद्योगों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण और विकास के नाम पर अंधाधुंध कटाई ने पर्यावरण का दम घोंट दिया है। पीथमपुर पिछले बीस सालों मे सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला क्षेत्र बन गया है।
हालांकि प्रदूषण के मामले मे ग्वालियर और भोपाल से बेहतर स्थिति है, लेकिन परिस्थितियों को सुधारा नहीं गया तो पीथमपुर में पर्यावरण की स्थिति बिगड़ सकती है।
ग्वालियर की हवा प्रदेश में सबसे प्रदूषित रही। यहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 329 तक पहुंच गया। राजधानी भोपाल का वातावरण भी सेहतमंद नहीं रहा, क्योंकि वायु प्रदूषण की स्थिति बताने वाला सूचकांक यहां भी 299 दर्ज किया है। आदर्श स्थिति में यह सूचकांक 50 होना चाहिए।
पीथमपुर में धूल, धुएं और हानिकारक गैसों के कणों का स्तर बढ़ रहा है, जिसकी वजह ठंड व नमी है। यह खतरा आगे और बढ़ेगा। प्रदूषित हवा की वजह से बीमार, बुजुर्ग, बच्चों की सेहत पर विपरीत असर पड़ता है।
प्रदूषण का एक्यूआई लेवल बढ़ने के बाद भी लोग कचरे और खेतों में धान के अवशेष जलाने से रुक नहीं रहे हैं। बेशक सरकार इस समय खेतों में जलने वाले अवशेषों को रोकने का काम कर रही है लेकिन शहर में लोग खूब कचरा जला रहे हैं।
हालांकि एनजीटी के स्पष्ट निर्देश हैं कि किसी भी सूरत में कचरे को न जलाया जाए क्योंकि इससे निकलने वाला धुंआ ज्यादा हानिकारक होता है, लेकिन इस पर कम ही ध्यान दिया जाता है। पिछले दिनों नगर पालिका कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान करीब दस दिनों तक जगह-जगह कचरा जलाया गया।
ठंड में इसलिए बढ़ता है वायु प्रदूषण –
वातावरण में धूल, धुएं व हानिकारक गैसों के कणों की मौजूदगी हमेशा रहती है। ठंड के दिनों में ये कण नमी पाकर भारी हो जाते हैं और सतह से अधिक ऊंचाई तक नहीं फैल पाते। निचले स्तर पर ही रहते हैं और प्रदूषण का कारण बनते हैं।
यही कण गर्मी के दिनों में शुष्क हो जाते हैं और अधिक ऊंचाई तक पहुंच जाते हैं, जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर कम होता है। वहीं वर्षा के दिनों में यही कण जमीन से ऊपर नहीं उठ पाते इसलिए हवा सर्वाधिक साफ होती है।
ये है कारण –
कारखानों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण फैला रहा है जिसके लिए सरकार को कठोर कदम उठाना चाहिए। कारखानों से निकलने वाला प्रदूषित पानी मिट्टी के अंदर जाकर तो जमीनों के साथ जल को प्रदूषित कर रहा है। सड़कों का बार-बार खराब होना, केबल बिछाने, पाइप लाइन डालने व अन्य कामों के लिए बार-बार सड़कों की खुदाई करना, पुराने वाहनों का सड़कों पर दौड़ना, छोटे कारखानों का शहर के अंदर संचालित होना।
प्रदेश के प्रमुख शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक
- शहर – सूचकांक
- ग्वालियर – 329
- भोपाल – 299
- कटनी – 263
- पीथमपुर – 260
- मंडीदीप – 260
- जबलपुर – 214
- सिंगरौली – 253
- उज्जैन – 181