तस्वीरें झूठ बोलती हैं या अधिकारियों के दावे सोलह आने सच


– शुगर मिल में गन्ने से लदी ट्रॉलियों की कतार की तरह घाट में तैयार रहती हैं रेत से भरी ट्रैक्टर ट्रॉलियां।
– रोड किनारे कई स्थानों पर लगे रेत के ढेर।


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
जबलपुर Published On :
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नरसिंहपुर। आम लोगों को शुगर मिलों के आसपास गन्ने से लदी ट्रैक्टर ट्रॉलियों की लंबी कतार का हाल तो मालूम ही है कि किस तरह लंबी दूरी तक ट्रैक्टर ट्रॉलियां कतारबद्ध रहती हैं।

कुछ इसी तरह का नजारा नर्मदा तटों के घाटों पर भी देखने को मिल सकता है जहां रेत से भरी ट्रैक्टर ट्रॉलियों की लंबी कतार हरी झंडी पाने के लिए बेताब रहती हैं कि कब हरी झंडी मिले और दौड़ती ट्रैक्टर ट्रॉलियां रेत को इधर-उधर खुर्द-बुर्द कर दें।

आंखों देखा हाल –

रविवार का दिन समय, लगभग 12 बजे रहे हैं। महादेव पिपरिया घाट से लोग नर्मदा स्नान करके वापस लौट रहे हैं। घाट पिपरिया गांव के बाहर 20-22 ट्रैक्टर ट्रॉलियों की लंबी कतार लगी है जिसमें रेत भरी है।

रेत से भरी ट्रॉलियों पर कुछ लोग लेटे-लेटे मोबाइल चला रहे हैं। कुछ ट्रैक्टर पर बैठे गाने सुन रहे हैं। उसके आगे और आसपास कई दबंग दिख रहे लोग खड़े आपस में बतिया रहे हैं। यह हाल है नर्मदा किनारे घाटों का जहां रेत का वैध अवैध खनन धड़ल्ले से हो रहा है।

यह बात अलहदा है कि अधिकारियों को रेत का खनन नहीं दिख रहा है। जब वह पहुंचते हैं तो सब उम्दा ही उम्दा। कहीं रेत के अवैध खनन के निशान नहीं मिलते।

घाट पिपरिया पर एक के बाद एक रेत से भरी ट्रैक्टर ट्रॉलियों की कतार शायद हरी झंडी का इंतजार कर रही थी कि जैसे ही उनके आका उन्हें आगे बढ़ने को कहेंगे। वह बेलगाम धड़ल्ले से ट्रैक्टर दौड़ा देंगे।

शायद अधिकारियों को नहीं दिख पाई होगी सड़क किनारे रेत – 

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बीते दिनों बड़े साहब समेत कई अधिकारियों ने घाट पिपरिया, ब्रम्हकुंड, झांसीघाट का भ्रमण किया। रेत खनन का हाल देखा लेकिन कहीं उन्हें रेत खनन के निशान नहीं मिले। कहीं अवैध रेत के भंडारण नहीं दिखे।

शायद अधिकारियों को घाट पिपरिया में सड़क किनारे रेत के ढेर नहीं दिख पाए होंगे। शाम का वक्त था शायद इस वजह से उन्हें घाट पिपरिया में कई स्थानों पर सड़क किनारे पड़ी कई घनमीटर रेत नहीं दिखी होगी।

हालांकि, जब माघ पूर्णिमा पर व दूसरे दिन लोग रविवार को नर्मदा दर्शन के लिए पहुंचे तो पाया कि प्रशासन के दावों और जमीनी सच्चाई में कितना फर्क है। लेकिन, प्रशासन अपने दावों पर सच की चादर तो ओढ़ा सकता है। कोई उसे चुनौती भी नहीं दे सकता। हालांकि, लोगों का कहना था कि सच तो सच है।

माफिया का नेटवर्क प्रशासन से बहुत अधिक स्ट्रांग –

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रेत माफिया का नेटवर्क प्रशासन से बहुत अधिक स्ट्रांग है। यह तो पुलिस और अधिकारी भी जानते हैं। जहां-जहां रेत के अवैध खनन हो रहे हैं वहां रेत खनन करने वाले बीसों किमी दूर कई गांवों में अपने मुखबिरों को सिर्फ इस बात का गुजारा भत्ता देते हैं कि वह प्रशासन की गाड़ियां या ऐसे लोगों के वाहनों की सूचना मोबाइल पर देते रहें।

समय पर जानकारी नहीं मिली तो फिर गुजारा भत्ता तो दूर अच्छे से लानत-मलामत की भी गुंजाइश है। यही वजह है कि घाट पिपरिया के पहले खमरिया, सुपला, धमना, तिंदनी आदि गांवों के चौराहों दुकानों पर यह मुखबिर गिद्ध दृष्टि लगाए रखते हैं।

फिर महकमे के एक-दो लोग तो ऐसे रहते हैं कि जो वेतन जरूर विभाग का लेते हैं, लेकिन हमदर्दी उन्हें माफिया के प्रति रहती है और वह नर्मदा की जय बोलने से हिचकते भी नहीं। जोर का जयकारा सबसे पहले वही लगाते हैं।

अधिकारियों ने नहीं पाया रेत का अवैध खनन –

कमिश्नर जबलपुर बी चंद्रशेखर के निर्देशों के परिपालन में कलेक्टर वेद प्रकाश के निर्देशानुसार खनिज विभाग की जबलपुर और नरसिंहपुर जिले की संयुक्त टीमों ने नर्मदा नदी के उन क्षेत्रों में रेत उत्खनन की जांच की, जहां इन दोनों जिलों की सीमायें लगती हैं।

संयुक्त जांच में दोनों जिलों की सीमाओं में नर्मदा नदी में कहीं भी रेत का उत्खनन नहीं पाया गया। इसके साथ ही कहीं भी किसी प्रकार की मशीनों से रेत का उत्खनन भी नहीं पाया गया।



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