नर्मदा जयंतीः अवैध उत्खनन से खोखली हो रही हमारी जीवन रेखा, खत्म हो रहीं मछलियां और बेशकीमती औषधियां


खनन रोकने के कई दावों के बीच भी नहीं बदल रही सूरत, खत्म हो रहा सौंदर्य


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
हवा-पानी Updated On :

नर्मदापुरम। प्रदेश की जीवनदायिनी नदी नर्मदा की जयंती मनाई जा रही है। इस बीच नर्मदा का जोर से जयकारा लगाने वाले लोगों में से बहुत से लोगों में से कुछ इस पवित्र नदी को तिल-तिल कर मार रहे हैं। इस नदी की रेत कीमती है और आज तेज़ी से हो रहे विकास में इसकी कीमत और भी बढ़ रही है। यह रेत नर्मदा का श्रृंगार कही जाती है लेकिन यह श्रंगार भी नदी से छीना जा रहा है। स्थिति यह हो चुकी है कि खनन करने वाले मुट्ठी भर लोगों के इस दुस्साहस के चलते हमारी सभ्यता की इस विशाल नदी का अस्तित्व ही खतरे में है।

नरसिंहपुर जिले की समृद्धि नर्मदा से ही है लेकिन इस जिले में भी इस नदी में बड़ी मात्रा में रेत खनन हो रहा है। इस नदी का पानी जहां यहां  के किसानों के लिए वरदान है और तो वहीं रेत से अवैध खनन माफिया पैसा बना रहे हैं। इस खनन को रोकने के तमाम दावे किए जाते हैं लेकिन सचाई यह है कि जिले में रेत का उत्खनन चौबीसों घंटे चलता है। कभी बड़ी बड़ी मशीनों और डंपरों से तो कभी छोटे तौर पर नावों से रेत लाई जाती है।

खतरे में है पानी को थामने वाली सतहः नदी के अंदर जेसीबी के पंजे जब रेत निकालते हैं तो इससे नदी के अंदर कि उस सतह को खतरा उत्पन्न हो जाता है जो जमीन के अंदर पानी को थामे रखती है। यह सतह क्षतिग्रस्त हो रही है जिससे नदी देर सबेर रिसाव की वजह से सूखना शुरू हो जाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि नियमों के विरुद्ध हो रहे इस अवैध खनन से नर्मदा भी आने वाले सालों में पूरा तरह सूख सकती है जैसे दूसरी कई छोटी नदियां सूख गईं जिनमें अवैध खनन होता रहा।

 

जलीय जीव जंतुओं और वनस्पति को खतराः खनन की वजह से नदी का जल प्रवाह भी तेज़ी से बह जाता है ऐसे में यहां जलीव वनस्पति भी अच्छी तरह से विकसित नहीं हो पाती है। वहीं रेत के लिए जेसीबी और नाव के बढ़ते दखल से नदी के जलीय जीव जंतु विलुप्त हो रहे हैं। स्थानीय  लोग बताते हैं कि आज से कुछ दशक पहले नर्मदा के दोनों तटों पर पाई जाने वाली कई औषधियां, जड़ी बूटियां और वनस्पतियां भी अब देखने को नहीं मिलती। इनमें से कई वनस्पतियां पूरी तरह विलुप्त होने की कगार पर हैं। विशेषज्ञ बताते है कि इन वनस्पतियों की कमी और तेज़ी से जल प्रवाह के कारण पानी के अंदर ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है। वहीं कटाव के कारण कई जगह पानी स्थिर भी हो रहा है ऐसे में वहां शैवाल काफी बढ़ रहे हैं। जिससे जलीय जीवों को परेशानी होती है।

 

नर्मदा में उत्खनन के कारण इस नदी की कई मछलियां भी खत्म हो रहीं हैं। इनमें से एक है महाशीर नाम की मछली। जो अब विलुप्तप्राय है। सुनहरे रंग की यह मछली नर्मदा की रानी कही जाती है और पहले नर्मदा में यह काफ़ी मात्रा में मिल जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है अब यह महाशीर कम ही ही देखने को मिलती है। यहां के मछुआरे भी नदी में कम हो रही मछलियों की शिकायत करते हैं।

इस बारे में जिले के खनिज अधिकारी ओपी बघेल कहते हैं कि खनन रोकने में जिला प्रशासन पूरी तरह सतर्क है और इसका असर भी हो रहा है। हालांकि जिस समय हम उनसे बात कर रहे थे उस समय भी नर्मदा के बहुत से तटों पर अवैध खनन जारी था।  बघेल आगे कहते हैं कि जेसीबी और पोकलेन के ज़रिये अवैध खनन नहीं हो सके इसके लिए कलेक्टर और एसडीएम ने सख्ती की है और अधिकारी लगातार मॉनिटरिंग कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उनकी कोशिश है कि नदी के अंदर खनन पूरी तरह बंद है।



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