भोपाल। बीते महीनों में बिजली संकट के बाद सरकार उर्जा के प्रति चिंतित है। ऐसे में एक बार फिर ध्यान नवकरणीय उर्जा की ओर जा रहा है। ऐसी उर्जा जिसे लाने में बहुत बड़ी मात्रा में संसाधन खर्च न हों। प्रदेश सरकार पहले ही किसानों के लिए बिजली की ज़रुरत को पूरा करने के लिए सौर उर्जा लाने का प्रयास कर रही थी और अब बिजली संकट ने इन प्रयासों को और भी बढ़ा दिया है। वहीं आम नागरिक भी इसे लेकर गंभीर नजर आ रहे हैं। प्रदेश के पश्चिमी इलाके में बेहतर स्थिति है। जहां सौर उर्जा को अपनाने वालों की संख्या बढ़ी है।
अब प्रदेश सरकार पचास प्रतिशत तक बिजली सौर उर्जा से बनाने पर विचार कर रही है। इसके अलावा भविष्य में सरकार तीस हजार मेगावॉट सौर उर्जा उत्पादन का लक्ष्य बनाकर काम कर ही है।
सरकार ने किसानों के लिए सौर उर्जा उपलब्ध कराने के लिए कुसुम योजना लागू की है। जिसमें अब कुछ बदलाव किये जा रहे हैं। इसके तहत अब किसानों को मिलने वाली बिजली को सौर उर्जा से पैदा किया जाना है। इसके बाद उम्मीद जताई जा रही है कि किसानों को कृषि कार्यों के लिए कुल 18 घंटे बिजली मिल सकेगी।
हालांकि सौर उर्जा को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता के बावजूद अब तक केवल 2700 मेगावाट ही बिजली पैदा हो रही है। वहीं सरकारी दावों की मानें तो यह आंकड़ा करीब पांच हजार मेगावॉट बताया जाता है।
इसके अलावा मप्र में आसपास के राज्यों से महंगी बिजली मिलना भी सौर उर्जा को अपनाने का एक बड़ा कारण है। प्रदेश में गुजरात और छत्तीसगढ़ से ज्यादा दामों पर बिजली मिलती है और यह अंतर करीब चालीस प्रतिशत तक है। ऐसे में लोगों को सौर उर्जा की ओर मुड़ना समझदारी लग रहा है। पश्चिमी मध्यप्रदेश में इसकी तादाद अधिक है।
प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर में करीब 3,100 जगहों पर सोलर पैनल लगाकर उर्जा उत्पन्न की जा रही है। इसके अलावा उज्जैन जिले में 615, रतलाम जिले में 205, धार जिले में 200 और खरगोन जिले में 154 छतों और जमीनों पर सौर पैनल लगाकर बिजली तैयार की जा रही है।
इस तरह पश्चिमी मप्र में कुल करीब पांच हजार घरों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर सोलर पैनल से बिजली उत्पादन किया जा रहा है। बीते एक साल में यह संख्या तेजी से बढ़ी है। बीते साल तक इस इलाके में करीब तीन हजार के आसपास ही लोग सौर उर्जा बनाते थे।
बिजली वितरण कंपनी की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस साल पश्चिमी मप्र के सभी जिलों में लगे सोलर पैनलों से करीब पांच करोड़ रुपये कीमत की बिजली बनाई गई है। ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि जब प्रदेश के एक इलाके में केवल कुछ प्रतिशत ही इतनी बड़ी राशि की बिजली बनाकर बचत कर सकते हैं तो प्रदेश भर में लागू होने पर इसका आंकड़ा क्या होगा।
सरकार इस उर्जा को लोगों तक पहुंचाने के लिए जागरुकता और प्रोत्साहन दोनों पर काम कर रही है। जागरुकता अभियान तो तरह-तरह से चलाया ही जा रहा है वहीं प्रोत्साहन के लिए सरकार सोलर पैनल लगवाने पर सब्सिडी दे रही है।