भोपाल। केंद्र सरकार द्वारा रेल, हवाईअड्डे, बंदरगाह आदि क्षेत्रों निजी हाथों में सौंपने और खुदरा बाज़ार में सौ फीसदी विदेशी निवेश के निर्णय के बाद भाजपा शासित मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने राज्य के 40 फीसदी जंगलों की देखभाल जिम्मा निजी कम्पनियों को देने का निर्णय लिया है। यहां जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, राज्य के जंगलों की परिस्थितिकी में सुधार करने और आदिवासियों की आजीविका को सुदृढ़ करने के नाम पर राज्य के कुल 94,689 लाख हैक्टेयर वन क्षेत्र में से 37,420 लाख हैक्टेयर क्षेत्र को निजी कंपनियों को देने का निर्णय लिया गया है।
The Madhya Pradesh government has proposed to hand over 37,420 sq km of degraded forest to corporates for afforestation. But experts have warned of legal concerns. https://t.co/G2FrgHLfTX
— Down To Earth (@down2earthindia) October 22, 2020
रिपोर्ट के अनुसार, इस संबंध में मध्यप्रदेश के मुख्य प्रधान वन संरक्षक द्वारा अधिसूचना जारी की गई है और राज्य के आधे से अधिक बिगड़े वन क्षेत्र को सुधारने के लिए जंगलों की जिस क्षेत्र को अधिसूचित किया गया है। बीते 20 अक्तूबर को राज्य के मुख्य प्रधान वन संरक्षक ने इस संदर्भ में सभी क्षेत्रीय वन विभाग अधिकारियों को एक पत्र लिख कर 15 दिनों में उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी।
जहां वन और पर्यावरण विशेषज्ञ शिवराज सरकार के इस कदम पर संदेह और सवाल उठा रहे हैं वहीं सरकार का कहना है कि इससे वनवासियों को रोजगार मिलेगा, लकड़ी आधारित उद्योगों को कच्चा माल आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और आत्मनिर्भर भारत सपना साकार होगा और हरित क्षेत्र बढ़ाने और पर्यावरण सुरक्षा के दिशा में भी काम होगा।
वास्तव में वहां आदिवासियों के घर-द्वार, खेत और चारागाह हैं. इसे राज्य सरकार बिगड़े वन क्षेत्र की संज्ञा दे कर निजी क्षेत्रों को सौंपने जा रही है।
प्रदेश के कुल 52,739 गांवों में से 22,600 गांव या तो जंगल में बसे हैं या फिर जंगलों की सीमा से सटे हुए हैं।
मध्यप्रदेश के जंगल का एक बड़ा हिस्सा आरक्षित वन है और दूसरा बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, सेंचुरी आदि के रूप में जाना जाता है। शेष क्षेत्र को बिगड़े वन या संरक्षित वन कहा जाता है। इस संरक्षित वन में स्थानीय लोगों के अधिकारों का दस्तावेजीकरण किया जाना है, अधिग्रहण नहीं। यह बिगड़े जंगल स्थानीय आदिवासी समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन हैं, जो जंगलों में बसे हैं और जिसका इस्तेमाल आदिवासी समुदाय अपनी निस्तार जरूरतों के लिए करते हैं।
एक नवंबर, 1956 में मध्यप्रदेश के पुनर्गठन के समय राज्य की भौगोलिक क्षेत्रफल 442.841 लाख हैक्टेयर था, जिसमें से 172.460 लाख हैक्टेयर वनभूमि और 94.781 लाख हैक्टेयर सामुदायिक वनभूमि दर्ज थी।
साभार: डाउन टू अर्थ