World Water Day: बारिश का पानी और कान्ह नदी बुझा सकती है पूरे इंदौर की प्यास


करीब तीस लाख़ की जनसंख्या वाले इस शहर के लिए पीने के पानी का सबसे बड़ा ज़रिया नर्मदा पाईप लाइन है। आबादी और विस्तार के साथ शहर में पानी की ज़रूरत बढ़ती जा रही है। यह शहर अब तक नर्मदा पाइप लाइन के तीसरे चरण तक पहुंच चुका है। 


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हवा-पानी Published On :

इंदौर ज़िले में ज़मीनी पानी की स्थिति पहले ही ख़राब बताई जा चुकी है। इस बीच यहां नदियों का ख़्याल रखना और पानी के लिए बेहतर व्यवस्थाएं बनाना सबसे बड़ा लक्ष्य है लेकिन फिलहाल इंदौर अपने इस लक्ष्य से काफ़ी दूर नज़र आता है। इसके लिए कान्ह नदी भी एक उम्मीद नज़र आती है। जिस पर एक कदम आगे बढ़कर काम करने की ज़रूरत है।

करीब तीस लाख़ की जनसंख्या वाले इस शहर के लिए पीने के पानी का सबसे बड़ा ज़रिया नर्मदा पाईप लाइन है। आबादी और विस्तार के साथ शहर में पानी की ज़रूरत बढ़ती जा रही है। यह शहर अब तक नर्मदा पाइप लाइन के तीसरे चरण तक पहुंच चुका है।

नर्मदा की लहरों से शहर के घरों तक पानी लाना एक जिम्मेदारीभरा और कठिन काम है। जिस पर हर महीने 25 लाख रुपये से ज्यादा खर्च होते हैं। इंदौर शहर को रोज़ाना करीब 700 एमएलडी पानी लगता है यह खपत गर्मियों के मौसम में करीब 900 एमएलडी तक पहुंच जाती है जबकि नर्मदा से आने वाला पानी केवल 450 एमएलडी पानी मिलता है।

ज़ाहिर है नर्मदा जल की उपलब्धता के बाद पानी की यह ज़रूरत अपने आसपास के तालाब और बोरिंग से पूरी करता है। लेकिन बड़ी परेशानी यह है कि जल स्तर भी लगातार नीचे जा रहा है और कुछेक जगहों पर तो  पानी आठ सौ फुट तक नीचे जा चुका है। इसके बावजूद बोरवेल लगातार हो रहे हैं।  एक संगठन के सर्वे  के अनुसार यहाँ एक लाख से ज्यादा बोरवेल हैं।

दो साल पहले जब इंदौर में जलशक्ति मिशन अंतर्गत नगर निगम ने एक नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट के साथ मिलकर जब रेन वाटर हार्वेस्टिंग का बीड़ा उठाया  था तब करीब 16000 घरों और दूसरे भवनों में बारिश के पानी को संचित करने के लिए  रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए थे।

बहुत से भवनों में इसका असर अब नज़र आ रहा है। ये भवन अपनी छतों पर जमा हुआ पानी अपनी ही जमीनों में उतार चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक अब तक पांच अरब लीटर पानी जमीन में संजोया जा चुका है। इसका असर यह हुआ कि पिछले साल गर्मियों में शहर को टैंकरों से पानी सप्लाई करने की ज़रूरत पहले के मुकाबले काफी कम पड़ी। ज़ाहिर है इससे हर साल खर्च होने वाली एक बड़ी रकम बचाई जा सकी है।

शहर में पानी की समस्या का एक उपाय ज्यादा से ज्यादा बारिश का पानी सहेजा जाना है। अगर इसे एक बड़े अभियान के तौर पर चलाया जाए तो इंदौर में पानी की कमी काफी हद तक दूर की जा सकती है।

नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट के सुरेश एमजी के मुताबिक रेन वॉटर हार्वेस्टिंग एक कारगर उपाय है लेकिन शहर की भीतरी नदियों को बचाया जाना चाहिए जो शहर के जल स्तर को सहेजने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

एमजी के मुताबिक  शहर के बीच से निकलकर उज्जैन तक बहने वाली खान नदी जिसे अब कान्ह पुकारा जाता है। इस नदी में फिलहाल 5 एसटीपी बनाए जा रहे हैं। इस काम में करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं।  जबकि इस काम में एक कदम आगे बढ़ने की ज़रूरत है।  इसके कैचमेंट के नजदीक बसे गांव  जैसे मोरोद,  मचला, देवगुराड़िया, रालामंडल आदि क्षेत्रों में काम किया जाना चाहिए। यहां पानी का उपचार कर नदी में स्टॉप डेम बनाने चाहिए और पौधारोपण किया जाना चाहिए। ऐसे में इस नदी का कैचमेंट बेहतर होता जाएगा और नदी में पानी बना रहेगा जो इंदौर शहर तक पहुंचेगा और भूजल स्तर बढ़ेगा।


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