नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस, जानिए क्यों मनाया जाता है


आइये इस दिवस के साथ ही जानते हैं भारत और दुनियाभर की नदी प्रणालियों, उनके संभावित खतरों और साथ ही उनके लिए किए जा रहे संरक्षण प्रयासों के बारे में।


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नई दिल्ली। पूरी दुनिया में नदियों की सुरक्षा और उनके महत्व को प्रदर्शित करने के लिए आज 14 मार्च को नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस मनाया जा रहा है।

आइये इस दिवस के साथ ही जानते हैं भारत और दुनियाभर की नदी प्रणालियों, उनके संभावित खतरों और साथ ही उनके लिए किए जा रहे संरक्षण प्रयासों के बारे में।

नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस की उत्पत्ति का इतिहास दिलचस्प है। सितंबर 1995 में इंटरनेशनल रिवर नेटवर्क यानी आईआरएन, इंडियाज सेव द नर्मदा मूवमेंट (एनबीए), चिली के बायो बायो एक्शन ग्रुप (जीएबीबी), और यूरोपियन रिवर नेटवर्क (ईआरएन) सहित कई संगठन एक साथ आए और ब्राजील में एक प्रारंभिक बैठक आयोजित की गई।

नतीजतन उन्होंने बड़े बांधों से प्रभावित लोगों के ब्राजील के आंदोलन की अध्यक्षता में एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया। मार्च 1997 में ब्राजील के कूर्टिबा में, बांधों से प्रभावित लोगों की पहली अंतर्राष्ट्रीय बैठक के प्रतिभागियों ने बांधों और नदियों, जल और जीवन के खिलाफ कार्रवाई के अंतर्राष्ट्रीय दिवस को अपनाया।

इसके अलावा, उन्होंने फैसला किया कि नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस 14 मार्च को होगा जिसके बाद से ही 14 मार्च को नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

यह दिवस क्यों आवश्यक –

अंतर्राष्ट्रीय नदियों के संगठन के अनुसार नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस एकजुटता के लिए समर्पित है। इस दिन ‘ दुनिया भर के विविध समुदाय एक स्वर में एक साथ आकर कहते हैं कि नदियां मायने रखती हैं।’

इस दिवस के माध्यम से नदियों के महत्व और उनकी सुरक्षा के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करना है। ताकि सभी लोगों तक साफ पानी की उपलब्धता बढ़े और मीठे पानी के पारिस्थितिकीय तंत्र को बहाल करने के लिए ध्यान केंद्रीत किया जा सके।

इस बार क्या है दिवस की थीम –

हर साल नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई दिवस एक थीम के साथ मनाया जाता है। इस साल इस दिवस को “नदियों का अधिकार” थीम के साथ मनाया जा रहा है। नदियों के अधिकार में उनकी सुरक्षा और स्वच्छता शामिल है।

भारत की नदी प्रणालियां –

नदियों का भारत के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिंधु तथा गंगा नदी की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं – सिंधु घाटी तथा आर्य सभ्यता का आर्विभाव हुआ। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का संकेंद्रण नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है।

नदियों के देश कहे जाने वाले भारत में मुख्यतः चार नदी प्रणालियाँ है (अपवाह तंत्र) हैं। उत्तर-पश्चिमी भारत में सिंधु, उत्तर भारत में गंगा, उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली है। प्रायद्वीपीय भारत में नर्मदा कावेरी महानदी आदी नदियाँ विस्तृत नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं।

भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे –

हिमालय से निकलने वाली नदियां
दक्षिण से निकलने वाली नदियां
तटवर्ती नदियां
अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियां

दुनियाभर में नदियों की स्थिति –

पृथ्वी पर जीवन सुरक्षित रखने के लिए पानी अत्यन्त आवश्यक है और नदियाँ इसका प्रमुख स्रोत हैं। वर्षों से बढ़ती मानव गतिविधियों और 80 के दशक तक उद्योगों के अनियमित विकास के कारण भारत और दुनिया में नदियों पर अधिक दबाव पड़ा और वे प्रदूषित हो गईं।

यह समस्या इस बात से और भी बढ़ गई है कि एक तो पृथ्वी पर पानी समय और स्थान दोनों ही दृष्टियों से निरन्तर उपलब्ध नहीं है और दूसरे, नदियों के ऊपरी भागों से सिंचाई हेतु बहुत-सा जल पहले ही निकाल लिया जाता है। विकासशील देशों में हर साल 80 फीसदी सीवेज नदियों और अन्य जल स्रोतों में बहा दिया जाता है।

भारत में नदियों के संरक्षण के प्रयास –

भारत का संविधान, केंद्र और राज्य सरकारों को इसके नागरिकों के लिये स्वच्छ तथा स्वस्थ वातावरण एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का प्रावधान करता है। (अनुच्छेद 48A, अनुच्छेद 51 (A) (g), अनुच्छेद 21)। साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की है कि स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।

नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम’ के रूप में अनुमोदित किया गया था ताकि प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण एवं कायाकल्प जैसे दोहरे उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।

पिछले कुछ समय से भारत ने नदियों के संरक्षण अभियान में उल्लेखनीय वृद्धि की है। दूसरी ओर सरकार की ओर से किये जा रहे नदी संरक्षण के कार्य अब वृहद् स्तर पर किये जा रहे हैं।

नमामि गंगे अभियान, नदी जोड़ो परियोजना और देश भर में नदियों के संरक्षण के लिए कई सारी कार्य योजनायें बनाई जा रही हैं जिसका असर दिखने भी लगा है।

नदियां प्रकृति की ओर से मनुष्य को दिया गया एक अमूल्य उपहार है। मानव जीवन का सम्पूर्ण इतिहास इसके आस-पास फला फ़ूला है। ये हमारे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन का बेहद अमूल्य अंग है जिसका संरक्षण करना न केवल हमारी नैतिक जिम्मेदारी है बल्कि ये सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व के लिए भी अति-आवश्यक है।



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