हवा में घुलते ज़हर का कोख पर कहर: पीथमपुर की बेऔलाद औरतों का दर्द


देश-दुनिया में हुए शोध कहते हैं कि वायु प्रदूषण के इलाकों में लोगों में इन्फर्टिलिटि या प्रजनन क्षमता कम होने की समस्या बढ़ी है, पीथमपुर का जमीनी हाल भी इससे अलग नहीं है।


आदित्य सिंह
हवा-पानी Updated On :
Private hospital in Pithampur (Dhar) near Indore Madhya Pradesh. Photo Deshgaon Media
पीथमपुर में डॉक्टर के क्लिनिक संतानहीनता का इलाज कराने पहुंची महिलाएं

Private hospital in Pithampur near Indore Madhya Pradesh. Photo Deshgaon Media


इंदौर। वायु प्रदूषण को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया की 99 प्रतिशत आबादी को साफ़ हवा नहीं मिलती और World Air Quality Report 2021कहती है कि दुनिया के सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण वाले कई शहर भारत में हैं। ऐसे में बात केवल ज़मीनी साफ-सफाई तक सीमित कैसे रह सकती है! भारत का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर है और अब लोग इस शहर की हवा की चिंता भी कर रहे हैं।

हवा का प्रदूषण अब केवल खांसी, अस्थमा जैसी सांस की बीमारियों तक सीमित नहीं है। इससे लोगों को कैंसर और इन्फर्टिलिटी जैसी समस्याएं भी हो रहीं हैं। इनमें इन्फर्टिलिटी यानी प्रजनन क्षमता में कमी आना सबसे कम सुना जाना वाला विषय है लेकिन डॉक्टर कहते हैं कि इसके मरीज़ इन दिनों इंदौर और इसके आसपास के इलाकों में काफ़ी तादाद में बढ़ रहे हैं। इन्फर्टिलिटी के कारण संतान न होना एक ऐसी समस्या है जो इससे पीड़ित लोगों के लिए सामाजिक तौर पर शर्म बन गई है और इसका सबसे पहला शिकार हो रहीं हैं महिलाएं। जिन्हें कई बार बिना किसी दोष के भी इसके इल्ज़ाम में परिवार से निकाले जाने तक की नौबत आ जाती है।

इंदौर शहर से करीब तीस किमी दूर प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर बसा है। कभी एक छोटा सा गांव आज तीन लाख की आबादी के साथ राज्य का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। जहां  करीब सात सौ छोटे-बड़े कारखाने हैं। प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक यहां भी वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और पीथमपुर में डॉक्टर विशेषकर स्त्रीरोग विशेषज्ञ दावा करते हैं कि इसकी वजह से ही यहां इन्फर्टिलिटी के मामले भी बढ़ रहे हैं।

इस  इलाके में बीते करीब बीस वर्ष से काम कर रहीं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. आशा पवैया हैं। वे कहती हैं कि पिछले कुछ वर्षों में उनके अस्पताल में  गर्भवती महिलाओं के अलावा उनके अस्पताल में संतानहीनता से परेशान सबसे ज्यादा मरीज़ आते हैं। वे आगे बताती हैं कि महिलाएं इन हालातों में महिलाओं की स्थिति बेहद खराब होती है वे शारिरिक रूप से तो चुनौती का सामना कर ही रहीं होती हैं साथ ही सामाजिक और पारिवारिक रुप से भी वे लगातार प्रताड़ित होती हैं। डॉ. पवैया कहती हैं कि ऐसी स्थिति में सबसे पहला दोष महिला का माना जाता है और उसे हर बार पारिवारिक तौर पर और सामाजिक तौर पर प्रताड़ित किया जाता है और साथ ही छोड़ देने की धमकी दी जाती है।

पीथमपुर के नज़दीक सागौर कभी एक छोटा सा गांव हुआ करता था, लेकिन आज यहां यहां करीब सौ से अधिक छोटे-बड़े कारखाने हैं और इनमें काम करने वाले लोग भी आसपास बनी बस्तियों में ही रहते हैं। सागौर में भी कई संतानहीन दंपत्ति हैं जो लगातार अपनी इस समस्या का इलाज करा रहे हैं। इनमें से कई लोग अब इस बारे में बात भी नहीं करना चाहते।

 

पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र

इंदौर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमवाय के  टीबी चेस्ट विभाग के प्रमुख डॉ. सलिल भार्गव कहते हैं कि विशेषज्ञ कहते हैं कि सालों तक लगातार प्रदूषण के बीच रहने वाले लोगों में वायु प्रदूषण के परिणाम बेहद परेशान करने वाले हो सकते हैं और उन्हें इसके गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है ठीक ऐसा ही पीथमपुर के इन कारखानों के बीच रहने वाले सैकड़ों लोग इसी तरह के परिणामों का सामना कर रहे हैं।

डॉ. भार्गव यह बात कई शोध के आधार पर कहते हैं हालांकि इस तरह के शोध इंदौर या पीथमपुर जैसे इलाकों में नहीं किए गए हैं। दरअसल विश्व भर में हुए कई शोध में पाया गया है कि वायु प्रदूषण से संतानहीनता, तनाव, गर्भपात, महिलाओं की माहवारी में रुकावट जैसी समस्याएं भी होती हैं। वहीं पुरुषों में भी भी प्रजनन क्षमता पर इसका असर पड़ता है। इस तरह का एक प्रयोग साल 2018 में चेन्नई में हुआ था और पुरुषों को होने वाली परेशानियों को लेकर प्रयोग चीन में ऐसा प्रयोग हुआ था जिसमें 30 हजार पुरुषों पर इसके प्रभावों को परखा गया था। यह शोध  JAMA Networksपर प्रकाशित हुआ था। 

पीथमपुर में इस परेशानी से पीड़ित महिलाओं की परेशानियां भी कुछ अलग नहीं हैं। इन्हें माहवारी में अनियमितता, तनाव, बांझपन जैसी समस्याएं हो जाती हैं। वहीं कई पुरुषों में शुक्राणुओं की कमी भी एक बड़ी समस्या है।

डॉ. आशा पवैया कहती हैं कि पिछले कुछ वर्षों में इलाके में संतानहीन दंपत्तियों की संख्या काफ़ी बढ़ी है। वे कहती हैं कि पीथमपुर और आसपास के इलाके जैसे धार, देपालपुर, सागौर, बेटमा  से उनके पास कई ऐसे दंपत्ति आते हैं जिनकी शादी के वर्षों बाद भी संतान नहीं है। इनमें से कुछ लोगों ने इसके लिए डॉक्टरों पीथमपुर और इंदौर के डॉक्टरों से सलाह भी ली और हार्मोनल टेस्ट, अल्ट्रासाउंड स्कैन तथा खून की जांच जैसी जरूरी जांचें भी करवाईं। डॉक्टर बताती हैं कि इनमें से उनके कई मरीज़ों की जांच में पुरुषों में शुक्राणु कम होने या बांझपन जैसी वजहें भी सामने आईं।

डॉ. आशा पवैया अपने अस्पताल में संतानहीनता से जूझ रही अपनी मरीज के साथ बात करती हुईं।

रोज़ाना कई मरीज़ आते हैं…

जब हम डॉ. पवैया से मिलने उनके अस्पताल पहुंचे तो भी उनके पास तीन महिला मरीज़ इसी समस्या का इलाज कराने पहुंचीं थीं। डॉ. पवैया कहती हैं कि रोजना उनके पास करीब 50-60 मरीज़ आते हैं और इनमें से 8-10 मरीज़ बांझपन की शिकायत वाले होते हैं। उनके मुताबिक काम के हर दिन में करीब 4-5 नए मरीज़ अपनी यह समस्या लेकर आती हैं।

डॉ. पवैया के मुताबिक बांझपन बेहद तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसकी एक अहम वजह इलाके में वायु प्रदूषण है। वे बताती हैं कि वायु प्रदूषण से महिलाएं कई तरह की स्वास्थ्य और सामाजिक परेशानियों का सामना कर रहीं हैं। उनके मुताबिक पिछले कुछ समय में गर्भपात के मामले भी बढ़ रहे हैं। इसके अलावा, महिलाओं में अनियमित माहवारी को भी वे इसी वायु प्रदूषण से जोड़कर देखती हैं।

इसी क्षेत्र में कविता (बदला हुआ नाम) रहती हैं। उन्हें शादी के छह साल बाद तक संतान नहीं हई। वे बताती हैं कि उन्हें इस दौरान अपने पति और परिवार की प्रताड़ना और समाज का भारी दबाव सहना पड़ा। मां न बन पाने को पूरी तरह उनका ही दोष मान लिया गया। यह सब काफी समय तक चलता रहा। इसके बाद इलाज के लिए प्रयास शुरू हुए। इस दौरान तमाम मेडिकल जांचें करवाईं गईं।

वे बताती हैं कि शुरुआत मे जांचें केवल उनकी ही होती थीं लेकिन इनमें सबकुछ ठीक था, लेकिन बाद में डॉक्टर के कहने पर उन्होंने अपने पति से भी जांच के लिए कहा जिसके लिए वे तैयार नहीं हुए और जब बाद में पति जांच के लिए तैयार हुए तो पता चला कि उनका स्पर्म काउंट केवल पांच प्रतिशत है और उसकी क्वालिटी भी कमज़ोर है। ज़ाहिर है, डॉक्टर ने संतानहीनता के लिए फैक्ट्री में काम करने वाले उनके पति की सेहत को ही वजह बताया है। वे बताती हैं कि उनके पति पास की ही एक फैक्ट्री में काम करते हैं।

रुआंसी होकर कविता बताती हैं कि इस दौरान उन्होंने परिवार और समाज का जो दबाव सहा, उसे बता पाना मुश्किल है। वे कहती हैं कि उनके पति और परिवार लगभग हर रोज़ दूसरी शादी की धमकी देते थे।

 

डॉ. आशा पवैया इस मामले पर रोशनी डालती हैं और कहती हैं कि इस तरह की परेशानियां कई वजहों से होती हैं लेकिन उन्हें पीथमपुर इलाके में इसकी वजह वायु प्रदूषण ज्यादा लगती है हालांकि वे बताती हैं कि उन्होंने इस बारे में कोई शोध नहीं किया है लेकिन मौजूदा स्थितियां इसी ओर इशारा करती हैं।

अमर (बदला हुआ नाम) चार साल पहले पीथमपुर छोड़ चुके हैं और अब गुजरात के अहमदाबाद में रहते हैं। वे यहां एक फैक्ट्री में काम करते थे और कुछ समय के लिए एक निजी स्कूल में पढ़ाते थे।

स्कूल संचालक के माध्यम से उन्होंने फोन पर हमें बताया कि यहां रहते हुए उनकी संतान नहीं थी और इसके लिए उन्होंने कई तरह का इलाज लिया। उस समय उन्हें मेडिकल टेस्ट से पता चला कि परेशानी उनकी पत्नी में नहीं, बल्कि उनमें हैं। उनके मुताबिक उन्हें बताया गया कि उनकी इस परेशानी का कारण वायु प्रदूषण हो सकता है। इसके बाद उन्होंने पीथमपुर छोड़ दिया। अमर, हमसे भी इस इस बारे में ज्यादा बात करना नहीं चाहते थे।

डॉ. आशा पवैया इसी इलाके में बीते करीब बीस साल तक एक सरकारी डॉक्टर के तौर पर काम कर चुकी हैं। वे अपने अनुभव के आधार पर बताती हैं कि इस इलाके में इन्फर्टिलिटी या बांझपन की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है क्योंकि इतनी संख्या में इस तरह की परेशानियों वाले मरीज़ पहले कभी उनके पास नहीं आते थे।

लोग हमें अशुभ समझते हैं…

इसी दौरान डॉ. पवैया हमें पीथमपुर के नजदीक के एक गांव से आए एक युवा दंपत्ति से मिलवाती हैं। इनमें पत्नी की उम्र 28 साल है और पति 31 वर्ष का है। स्वाति (बदला हुआ नाम) हमें बताती हैं कि उनकी शादी को साढ़े चार साल हो चुके हैं और वे धार और इंदौर जिले के करीब पांच डॉक्टरों से इसे लेकर मिल चुकी हैं लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। स्वाति से जब हम पूछते हैं कि इसे लेकर उन्हें कोई पारिवारिक या सामाजिक परेशानी होती है तो वे हिचकिचाते हुए इससे इंकार कर देती हैं।

कुछ ही देर में उनके पति गोपाल (बदला हुआ नाम) इस बातचीत के बीच आते हैं और कहते हैं कि लोग हमारा मुंह देखना भी पसंद नहीं करते। किसी सामाजिक कार्यक्रम में जाते हैं तो लोग बस यही पूछते हैं कि अब तक बच्चा क्यों नहीं हुआ। इतनी देर में स्वाति की आखें भी भर आती हैं वे कहती हैं कि समाज के शुभ कार्यों में उन्हें बुलाया नहीं जाता सब उन्हें अशुभ समझते हैं।

बांझपन के शिकार परिवारों में सबसे अधिक औद्योगिक क्षेत्र के आसपास के ही होते हैं वहीं इनमें भी उनकी संख्या ज्यादा होती है जो फैक्ट्रियों के बेहद नज़दीक बनी बस्तियों में रहते हैं। डॉ. पवैया बताती हैं कि वायु प्रदूषण भी इसकी एक वजह हो सकता है क्योंकि इस तरह के शोध हो चुके हैं जिनमें वायु प्रदूषण को प्रजनन क्षमता पर असर डालने वाला माना गया है।

वे यहां कहती हैं महिलाओं को सामाजिक तौर पर सबसे ज्यादा मुश्किलें झेलनी होती हैं। वे बताती हैं कि वायु प्रदूषण से महिला और पुरुष दोनों ही बांझपन का शिकार हो सकते हैं,  हालांकि इसके बावजूद एक महिला को बांझपन की शुरुआती लड़ाई अकेले ही लड़नी होती है, क्योंकि पुरुष संतानोत्पत्ति की क्षमता न होने को अपना अपमान समझते हैं और इसे सामाजिक तौर पर महिलाओं का ही दोष माना जाता है।

पीथमपुर सेक्टर तीन में ही रहने वाले एक दंपत्ति ने हमसे यह बात कही। गोपनियता की शर्त पर विनोद कुमार (बदला हुआ नाम) ने हमें बताया कि उनके भाई के यहां संतान नहीं हो रही थी लेकिन शुरुआती तीन साल तक केवल परिवार ने पत्नी कीं जांचें करवाईं लेकिन बाद में जब डॉक्टर के बार-बार कहने पर पति की जांच की गई तो परेशानी उनमें निकली। इस तरह उनकी पत्नी तीन साल तक परिवार के ताने उस दोष के लिए सुनती रहीं जो उनका नहीं था।

डॉ. पवैया के अस्पताल में हमारी बातचीत बांझपान की शिकार कुछेक महिलाओं से हुई, जो बताती हैं कि उन्हें नहीं पता कि उन्हें संतान क्यों नहीं हो रही जबकि उन्हें अपना शरीर पूरी-तरह स्वस्थ लगता है। महिलाएं बताती हैं कि उन्हें डॉक्टर से पता चला है कि वायु प्रदूषण भी इसकी वजह हो सकती है। इनमें से भी कुछ महिलाओं के पति की जांच की गई थी जिनका स्पर्म काउंट बेहद कम और कम गुणवत्ता का पाया गया।

लेकिन कविता की तरह शुरुआत में इन महिलाओं को भी दोष दिया गया। उषा (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि कैसे बांझ कहकर उन्हें एक बार लगभग घर से निकाल दिया गया था और पति ने दूसरी शादी करने की धमकी दी थी। एक अन्य महिला सरिता (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि वे आज भी इसी तरह का अपमान झेल रहीं हैं। उन्हें आज भी इसी तरह की घरेलू प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।

ये दोनों ही महिलाएं पीथमपुर के सेक्टर नंबर तीन की एक घनी बस्ती में रहती हैं। इस इलाके के नजदीक बहुत से स्टील और सरिया बनाने वाले कारखाने हैं। इन कारखानों से बड़े पैमाने पर धुआं निकलता है। इनके आसपास रहने वाले लोग बताते हैं कि जब धुआं निकलता है तो अक्सर दिन में भी रोशनी कम हो जाती है। वे बताते हैं कि अलग-अलग स्तर पर स्टील गलाने की प्रक्रिया में कई रंगों का धुआं निकलता है।

सरिता पीथमपुर के नजदीक ही एक गांव में रहती हैं। वे बताती हैं कि उनके गांव की आबोहवा साफ है ऐसे में उन्हें नहीं पता कि उनकी परेशानी का कारण हवा कैसे हो सकती है। सरिता से और ज्यादा बात करने पर पता चला कि उनके घर में वायु प्रदूषण के नाम पर केवल चूल्हा है जिस पर वे अक्सर खाना पकाती हैं।

प्रदूषण के कारण छोड़ कर जा रहे पीथमपुर!

संजय सिंह, इसी इलाके में रहते हैं और गुजरात में ऐसी ही एक फैक्ट्री में काम करते हैं, वे कहते हैं कि जो फैक्ट्री चालू होती है तो ऐसा लगता है जैसे नया बादल बन गया हूं अलग-अलग रंगों की दुआएं वाला। समझाते हैं कि अलग-अलग रंगों का धुआं यानी अलग-अलग रसायनों का हवा में आना। इसका सीधा मतलब है कि लोगों में हवा के माध्यम से यह ज़हर फैल रहा है। अनिल सिंह, अब पीथमपुर छोड़कर इंदौर में रहना चाहते हैं, क्योंकि उनके मुताबिक वहां रहने के लिए बेहतर जगह है और प्रदूषण भी कम है। संजय कहते हैं कि औद्योगिक क्षेत्रों में कर्मचारियों और जनता के लिए रहने के लिए बेहतर कॉलोनियां होनी चाहिए वर्ना प्रदूषण से बच पाना मुश्किल होगा। पीथमपुर में कॉलोनियां औद्योगिक क्षेत्रों के बेहद नजदीक हैं। यहां व्यवस्थित मजदूर कॉलोनियों के लिए मांग वर्षों से की जा रही है।

 

 क्लीन एयर कैटेलिस्ट इंदौर कार्यक्रम की जेंडर लीड अज़रा ख़ान  बताती हैं…

वायु प्रदूषण से महिलाओं का स्वास्थ्य प्रभावित होता है और इससे प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ता है। अज़रा कहती हैं कि इसके बारे कई तरह की रिसर्च दुनियाभर में हो चुकी है, तथा भारत में हैदराबाद और चेन्नई में भी इसे लेकर शोध हुए हैं और उनमें यह पाया गया है कि वायु प्रदूषण महिलाओं में तनाव का कारण हो सकता है इसके अलावा उन्हें ब्लडप्रेशर और प्रजनन क्षमता पर भी असर डालता है। ऐसे में कहना गलत नहीं है कि भारतीय महिलाएं भी वायु प्रदूषण के चलते श्वास रोगों से ज्यादा बड़ी परेशानी का भी सामना कर रहीं हैं।

पीथमपुर में सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में पिछले करीब तीन साल से पदस्थ युवा चिकित्सक डॉ. रौनक चंदेल भी इस बात से इंकार नहीं करते कि पीथमपुर में संतानहीनता की समस्या है। वे बताते हैं कि उनके पास रोज़ाना ऐसी समस्याओं वाले कई मरीज़ आते हैं। हालांकि वे इसका ठोस कारण नहीं बताते। डॉ. चंदेल के मुताबिक इसकी वजह केवल वायु प्रदूषण को ही नहीं बताया जा सकता।

यह आंकड़े मप्र के प्रदूषण नियंत्रण विभाग के द्वारा संचालित मोबाइल एप ईनवी एलर्ट के द्वारा मिले हैं।

यह स्थिति तब है जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में वायु प्रदूषण कोई बहुत ज्यादा खतरनाक स्तर पर नहीं है। हालांकि नवंबर से 7 दिसंबर तक यहां AQI का न्यूनतम स्तर 114 और अधिकतम स्तर 296 रहा है। यानी यहां हवा की गुणवत्ता ज्यादातर बार सांस लेने लायक नहीं थी। 7 दिसंबर को जब हम इस बारे में लिख रहे हैं उस समय भी पीथमपुर में वायु की गुणवत्ता का स्तर 236 AQI है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग की ENV Alert के मुताबिक यहां वायु की गुणवत्ता खराब है।

करीब 10 किलोमीटर के दायरे में फैले इस औद्योगिक क्षेत्र में एक अत्याधुनिक एयर क्वालिटी मॉनीटर भी लगाया गया है। यह मशीन केंद्रीय और राज्य स्तर पर पीथमपुर में प्रदूषण नियंत्रण के आंकड़े जारी करती है। दोनों कार्यालयों की मोबाइल एप पर इसी मशीन से आंकड़े अपडेट होते हैं।

इंदौर में प्रदूषण नियंत्रण विभाग की प्रयोगशाला के पूर्व प्रमुख डॉ. दिलीप वाघेला के मुताबिक यह मशीन एकदम सटीक आंकड़े देती है और आसपास के करीब दस किमी के इलाके की हवा हालांकि अब पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र इससे कहीं बड़े इलाके में फैल चुका है। ऐसे में संभव है कि कई इलाके इसकी पहुंच में न हों। डॉ. वाघेला इससे इंकार नहीं करते।

इंदौर के टीबी अस्पताल के अधीक्षक और श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. सलिल भार्गव वायु प्रदूषण से संतानोत्पत्ति में आने वाली परेशानियों को तथ्यात्मक बताते हैं। वे कहते हैं कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले लोगों को श्वास, दमा जैसी परेशानियों के अलावा बांझपन भी हो सकता है। हालांकि पीथमपुर के मामले में वे कहते हैं कि अगर कहीं इस तरह के मरीज़ ज्यादा संख्या में मिल रहे हैं तो चिंताजनक है। उनके मुताबिक यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इसकी वजह वायु प्रदूषण ही है, लेकिन इससे इंकार भी नहीं कर सकते हैं।

डॉ. सलिल भार्गव कहते हैं इंदौर जैसे लगातार फैल रहे महानगर में खासकर कारखाना क्षेत्रों के नज़दीक इस तरह की स्टडी होना बेहद जरुरी है, जो बता सके कि वायु प्रदूषण इंसानों और उनके समाज पर किस-किस तरह से असर डाल रहा है।

 

पीथमपुर इलाके में पिछले करीब तीन दशकों से रह रहे पत्रकार अनवर खान बताते हैं कि संतानहीनता की समस्या इलाके में अब काफी बढ़ चुकी है। वे बताते हैं कि उनके जानने वाले ही कई परिवार संतानहीनता का इलाज करवा रहे हैं।

खान के मुताबिक वे अक्सर इस बारे में सुनते हैं, लेकिन लोग कभी भी इस पर खुलकर बात नहीं करना चाहते, वे बताते हैं कि सागौर और एक नजदीकी गांव खेड़ा में संतानहीनता से कई लोग परेशान हैं और इनकी संख्या दर्जनों में है, लेकिन फिर भी इसे लेकर खुलकर बात नहीं की जाती, क्योंकि दुर्भाग्य से किसी भी स्तर पर वायु प्रदूषण को अब भी यहां गंभीर परेशानी नहीं माना जाता है।

पीथमपुर क्षेत्र में सागौर के नजदीक खेड़ा गांव

हम उनके साथ सागौर से करीब तीन किमी दूर खेड़ा गांव भी गए, जहां लोग इस बारे में खुलकर बात करने से कतराते हैं। हालांकि वे बाद में बताते हैं कि संतान न होने के कारण कई महिलाएं अपना इलाज करा रहीं हैं। गांव में लोगों ने बात करते हुए हमें केवल इंदौर के कई बड़े डॉक्टरों के अस्पतालों में महिलाओं के इलाज के बारे में भी बात की जब उनसे पुरुषों के इलाज के बारे में पूछा गया तो कोई ख़ास जानकारी नहीं मिली। यहां के  लोग बताते हैं कि प्रदूषण इलाके में बड़ी समस्या है।

पीथमपुर के सेक्टर 3 में रिहायशी इलाकों के नजदीक एक फैक्ट्री निकलता धुआं

फैक्ट्रियों से गंदा पानी ज़मीनों में छोड़ा जाता है जिसके चलते पानी का स्वाद खत्म हो चुका है ऐसे में अब सभी के घरों में पानी साफ करने वाला आरओ सिस्टम लगा हुआ है लेकिन फैक्ट्रियों की चिमनियां हवा में धुआं भी छोड़ती हैं और प्रदूषित हवा से बचना संभव नहीं है, क्योंकि सभी इसी में सांस लेते हैं।

 


Related





Exit mobile version