नरसिंहपुर। जिले में मधुमक्खी पालन से अतिरिक्त आय की अच्छी संभावना है। अगर क्षेत्र के युवक और किसान मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दें तो यह उनके लिए बेहतर होगा।
यह बात कृषि वैज्ञानिकों ने विश्व मधुमक्खी दिवस पर ऑनलाइन प्रशिक्षण के दौरान कही। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा विश्व मधुमक्खी दिवस पर बीते दिवस मधुमक्खी पालन प्रबंधन एवं फसल उत्पादन में मधुमक्खियों की उपयोगिता के विषय पर ऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया गया।
प्रशिक्षण के शुरू में केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉक्टर केवी सहारे ने कोविड-19 के वर्तमान दौर में मास्क, दो गज दूरी, हाथ को बार-बार साबुन से धोना तथा सैनिटाइजर का उपयोग कर बचाव के बारे में बताया।
मधुमक्खी पालन एवं मधुमक्खियों की फसल उत्पादन में उपयोगिता विषय पर केंद्र के पादप संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. एसआर शर्मा द्वारा बताया गया कि भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश है जिसकी 60 से 70 फीसदी आबादी कृषि कार्य में संलिप्त रहती है।
विश्व की आबादी का 17.3% जनसंख्या एवं 2.4% क्षेत्रफल ही भारत का है। आबादी की दर 1.58% प्रतिवर्ष बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक मुख को भोजन एवं प्रत्येक हाथ को काम देना एक चुनौती बनती जा रही है।
इस स्थिति से निपटने के लिए मधुमक्खी पालन एक कड़ी साबित हो सकती है। हमारे देश में विभिन्न प्रकार की फसलें, फल, सब्जियां लगाई जाती हैं जिसमें 95% परपरागण की फसलें हैं।
परपरागण हवा, पानी एवं कीटों के द्वारा होता है जिसमें मधुमक्खी एक अहम रोल अदा करती हैं। मधुमक्खी उत्पाद से तो आय प्राप्त होती ही है, साथ ही 60 से 70% ज्यादा उत्पादन फसलों, फलों एवं सब्जियों से प्राप्त होता है। मधुमक्खी द्वारा किए गए परपरागित फसलों की गुणवत्ता अच्छी होती है।
सर्वप्रथम देश की स्वतंत्रता के उपरांत सन 1954 में खादी एवं विलेज इंडस्ट्री बोर्ड की स्थापना की गई जिसके अंतर्गत 1962 में मधुमक्खी पालन एक इकाई के रूप में सम्मिलित किया गया।
समय-समय पर मधुमक्खी पालन से फसल में उत्पादन में वृद्धि जैसी योजनाएं भी शामिल की गईं। आठवीं पंचवर्षीय योजना में मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों को सहायता राशि उपलब्ध कराने के साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा मधुमक्खी पालन से फसलों के उत्पादन में वृद्धि पर एक परियोजना का संचालन शुरू किया गया।
हमारे देश में सुचारू रूप से फसलों में परपरागण हेतु 200 लाख मधुमक्खी कॉलोनियों की आवश्यकता है। वर्तमान में हमारे देश में शहद का उत्पादन 50 हजार टन है जबकि चीन का उत्पादन 20 लाख टन है। साथ ही फसलों का उत्पादन भी हमारे देश में चीन से कम है।
इस खाई को कम करने के लिए मधुमक्खी पालन महत्वपूर्ण है। मधुमक्खी से हमें केवल शहद ही प्राप्त नहीं होता बल्कि मोम, पराग, रॉयल जेली एवं डंकविष भी प्राप्त होता है जिससे दवाइया एवं अन्य बहुमूल्य उपयोगी सामान बनाये जाते हैं।
मधुमक्खी की चार प्रजातियों में एपीस मेलीफेरा जिसे इटालियन मक्खी भी कहते हैं का पालन 1981 से देश में किया जा रहा है। इसके पूर्व भारतीय मक्खी (एपिस सिराना इंडिका) का पालन किया जाता था जिसकी कॉलोनियां सेक ब्रूड वायरस रोग के कारण ज्यादा नष्ट हो गईं।
इनके स्थान पर एपिस मेलीफेरा को पालना शुरू किया गया। मधुमक्खी पालन हेतु ज्यादा धनराशि की आवश्यकता नहीं पड़ती है। दस बॉक्स कॉलोनी हाइव का पालन एक लाख में शुरू किया जा सकता है।
मधुमक्खी के कॉलोनीयुक्त बॉक्स को खेत की मेड़ों, बगीचों एवं अन्य छायादार स्थानों पर आसानी से रखा जा सकता है। यह ध्यान रखना है कि जहां भी बॉक्स को रखा जाए, वहां पानी का भराव ना हो, साफ-सफाई हो और साथ ही क्षेत्र में कीटनाशक का कम से कम प्रयोग किया जाता हो और प्रयोग का समय मालूम हो जिससे उस समय मधुमक्खियों को चारे हेतु बाहर न छोड़ा जाये।
ऐसा इसलिए क्योंकि मधुमक्खियां अन्य समान कीटों के तुलना में कीटनाशकों से जल्दी मर जाती हैं। मधुमक्खी के 10 बॉक्स के पालन हेतु एक एकड़ फूल की फसलों की आवश्यकता पड़ती है।
क्षेत्र के प्राकृतिक वनस्पतियों तथा उगाई जाने वाली फसलों एवं फल-सब्जियों के फूलों की उपलब्धता पर ही मधुमक्खियों के विकास, शहद का उत्पादन, शहद की गुणवत्ता निर्भर करता है।
सामान्य तौर से मधुमक्खियां मक्का, तोरिया, सरसो, सूरजमुखी, खैर, लीची, गाजर, प्याज, नाशपाती, सेव, नीबू, अंगूर, पपीता, संतरा, चेरी, स्ट्रॉबेरी, मूंग, उड़द, अरहर आदि फसलों से मकरंद व पराग भोजन हेतु इकट्ठा करती हैं।
औषधि के लिए शहद उपयोगी –
जैसा हम लोगों को अपने प्राचीन ग्रंथों से अवगत हुआ है कि शहद का उपयोग अनिद्रा, कब्ज, गैस, मधुमेह, शरीर के दर्द, मानसिक तनाव, दमा दूर करने में प्रयोग दवा के रूप में होता है।
खून में हीमोग्लोबिन, आंख की रोशनी को बढ़ाने, त्वचा के रूखापन को दूर करने, चेहरे के धब्बों को दूर करने आदि में प्रयोग किया जाता है। आधुनिक युग में शहद, पराग मकरंद और जेली से कॉस्मेटिक पदार्थ, साबुन एवं दवाइयां बनाई जा रही हैं।
अतः किसान मधुमक्खी पालन करके रोजगार सृजन के साथ ही अपनी फसलों की पैदावार भी बढ़ा सकते हैं। अपनी क्षमता के अनुसार कम से कम 10 मधुमक्खी कॉलोनी पालन करना सुनिश्चित करें।
इस कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. आशुतोष शर्मा, डॉ. ऋचा सिंह, डॉ. नीरजा पटेल, डॉ. निधि वर्मा, डॉ. विजय सिंह सूर्यवंशी के साथ ही नरसिंहपुर जिले के 50 से अधिक कृषकों ने भाग लिया।