इंदौर। बीते सालों में आई सेंट्रल ग्राउंड वॉटर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक इंदौर जिले में पानी का अतिदोहन होता है और इसके चलते यहां से ज़मीनी पानी खत्म होता जा रहा है।
देखा जाए तो इंदौर जिले के लोग अपने पानी के प्रति लापरवाह ही रहे हैं। हालांकि यहां जिला पंचायत के तहत नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट ने सुखड़ी और चोरल जैसी नदियों को पुनर्जीवित करने जैसे कुछ बेहतरीन काम किये हैं। लेकिन जिले के ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर स्थानों में नदियों और जलाशयों पर लोगों ने खास ध्यान नहीं दिया और उनका नुकसान ही किया है।
इनमें महू तहसील अहम है। जहां के जानापाव से साढ़े सात नदियां निकलती हैं। इनमें चोरल और गंभीर के अलावा चंबल जैसी बड़ी नदी भी है। लेकिन चोरल को छोड़कर बाकी सभी नदियां यहां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहीं हैं।
महू क्षेत्र में गंभीर नदी की हालत खराब है। इस नदी में पानी अब केवल बारिश के मौसम में नज़र आता है। बाकी दिनों में यह एक नाला है। जो शहरी कचरा ढ़ोती है।
हालांकि यह नदी सबसे ज्यादा तहसील में विकास और रोज़गार से परेशान है। महू के कोदरिया, नेऊ गुराड़िया जैसे गांवों में चलने वाले आलू चिप्स कारखानों से निकलने वाला बेहद प्रदूषित पानी इसी गंभीर नदी में बहाया जाता है।
आलू चिप्स उद्योगों से यहां के चिप्स व्यापारियों की एक बड़ी आर्थिकी चलती है और बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है। यही वजह है कि अधिकारी और नेता इस नदी को अपने हाल पर छोड़ चुके हैं। गंभीर नदी को पुर्नजीवित करने के लिए इंदौर प्रशासन के द्वारा कोई ठोस उपाय अब तक नहीं किये गए हैं। यही वजह है कि कभी एक जीती जागती नदी नाला बनकर खात्मे की ओर है।
हालांकि नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट के सुरेश एमपी के मुताबिक वे इस नदी के लिए योजना बना रहे हैं लेकिन इसके लिए बड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है क्योंकि गंभीर को बचाना जिले में किसी भी दूसरी नदी के लिए किये जाने वाले काम से ज्यादा कठिन है। गंभीर नदी में गंदगी बहाने की आदत छुड़वाना भी एक बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में इसे बिना पूरी और ठोस योजना के इसका समाधान मुश्किल है। जिसमें राजनीतिक और प्रशासनिक सहयोग भी मिले।