World Water Day: पीने व खेती के काम आने वाली पुरानी कुएं-बावड़ियों की हालत दयनीय


कई बावरियों की हालत ऐसी है जो कि जर्जर हो चुकी हैं और कुछ की हालत ऐसी है कि उसे सरकार ठीक कराए तो वह पानी की आवश्यकता की पूर्ति कर सकती है, मगर जिम्मेदार द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता।


आशीष यादव
धार Updated On :
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धार। कुए-बावड़ी जो पुराने जमाने में लोगों को प्यास बुझाते थे आज वीरान हो चुके हैं।  प्रशासन व लोगों की उदासीनता के कारण आज बावड़ियां खत्म होती जा रही हैं जो पुराने जमाने मे पानी का मुख्य स्रोत हुआ करता था आज वह बावड़िया खाली व जर्जर हो गई हैं।

बता दें कि अधिकांश पुरानी जल स्रोत तो ठीक हैं मगर उन्हें जिम्मेदार प्रशासन द्वारा सही करा दिया जाए तो वह गर्मियों में पीने के पानी की उपयोगिता को बनाए रखने का कार्य करेंगी। आज भी यह बावड़िया हैं जो बारिश के दिनों में भर जाती हैं। गर्मी में उनका जलस्तर कम हो जाता है। वहीं कई बावड़ियां गर्मी आते-आते सूख जाती हैं।

कई बावरियों की हालत ऐसी है जो कि जर्जर हो चुकी हैं और कुछ की हालत ऐसी है कि उसे सरकार ठीक कराए तो वह पानी की आवश्यकता की पूर्ति कर सकती है, मगर जिम्मेदार द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता।

अगर जिम्मेदार इस ओर ध्यान दें तो पुराने जमाने में जो काम आने वालीं कुएं-बावड़ियां थीं, वे आज भी काम आ सकती हैं ओर लोगों को जलस्रोत के रूप में काम आ सकती हैं।

केस नंबर एक

गांव का नाम- उमरिया, मलगांव
जनसंख्या- उमरिया 1300 और मलगांव 550
जल स्त्रोत- स्वयं के बोरिंग पर निर्भर
बावड़ी- 2, कुआं- 1

गांव में पानी निजी स्रोत से लाते हैं। यहां पर पीएचई द्वारा किसी भी प्रकार की नल जल योजना नहीं है। ग्राम पंचायत उमरिया में आने वाला उमरिया और मलगांव स्वयं के बोरिंग या खेतों में लगे बोरिंग से पानी लाना पड़ता है। गर्मी में यहां पर पानी की काफी समस्या ग्रामीणों को उठाना पड़ती है। वहीं अधिकारी भी यहां पर नल जल योजना भी नहीं ला पा रहे हैं। गांव के पुराने कुएं व बावडिया ठीक हो जाए तो थोड़ी पानी की दिक्कत कम होगा।

केस नंबर दो

गांव का नाम- तोरनोद
आबादी- 2993
जलस्त्रोत- नलजल और निजी
कुआं- 1, बावड़ी 1

गांव में पानी की समस्या के लिए नल जल योजना है। मगर गर्मी के दिनों में पानी की समस्या आती है। नल जल योजना से यहां पर तीन से चार दिनों में लोगों के घरों में पानी आता है। वहीं कुछ लोग निजी टैंकर या फिर बोरिंग पर निर्भर रहते है। पानी की पर्याप्त सुविधा नहीं है। वही गर्मी आते-आते पानी की कमी हो जाती है। पुराने जमाने में बावड़िया गांव की प्यास बुझाती थी। आज वह पूरी तरह खत्म हो गई।

गांव उमरिया, मलगांव और तोरनोद देखा जाए तो 3 बावड़ी और दो कुआं है। उमरिया व मलगांव की बावड़ी की स्थिति काफी दयनीय हो चली है। यहां पर बावड़ी या तो तोड़ दी गई है या फिर उन पर अतिक्रमण हो चला है। इन बावड़ियों पर जिला प्रशासन ध्यान दे तो काफी मात्रा में जलसंकट से मुक्ति मिल सकती है। यदि प्रशासन इन्हें साफ-सफाई कर दे तो पानी का अच्छा स्रोत हो जाएगा। नल जल योजना से यहां पर तीन से चार दिनों में लोगों के घरों में पानी आता है। बोरिंग पर निर्भर रहते हैं।

761 पंचायत हैं जिले में, हर गांव में पुरानी बावड़ियों व कुएं –

शहरी क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए और ग्रमीण इलाको को देखा जाए तो हर एक पंचायत में एक बावड़ी या एक कुआं मिलेगा। प्रशासन इनकी देखरेख करवाए और इन्हें सही करवा दे तो गांव में पीने के पानी की समस्या गर्मियों में दूर हो जाएगी।

अगर बावड़ी व कुए व पुराने जलस्रोतों को साफ करा दिया जाए और तो बरसात में यह बावड़ियां अपना वाटर लेवल बना लेंगी। वह फरवरी-मार्च तक इन बावरियों में पानी रहेगा जिससे गांव में जल स्रोत की कमी नहीं रहेगी।

वहीं बाद में उसमें पानी डाला जाए और वही पानी टंकियों के माध्यम से जनता को दिया जाए तो गर्मियों में पानी की किल्लत नहीं होगी वह चालू स्रोत बना रहेगा।
प्रशासन को बारिश का पानी भवनों से जमीन में उतार कर वाटर हार्वेस्टिंग करना चाहिए जिससे जमीन का जलस्रोत बना रहे और गर्मियों में भी वाटर लेवल नीचे ना जाते हुए ऊपर ही रहे। मगर आज जिले में बस कागजों पर ही वाटर हार्वेस्टिंग का काम चलता है जमीनी स्तर पर कुछ नहीं होता।

सम्पर्क नहीं हुआ –

जब हमने खबर को लेकर जिला पंचायत सीओ से चर्चा करनी चाहिए तो जिला पंचायत सीईओ आशीष वशिष्ठ द्वारा फोन नहीं उठाया गया।


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