IIT पास यह इंजीनियर जलने से बचा रहा पराली, कटलरी व थर्माकोल बना कर रहा लाखों की कमाई


मशरुम के माध्यम से बनने वाला यह उत्पाद थर्माकोल की ही तरह होता है, लेकिन पूरी तरह से बायोडीग्रेडबल होता है।


DeshGaon
हवा-पानी Published On :
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नई दिल्ली। दिल्ली में रहनेवाले आईआईटी पासआउट इंजीनियर अर्पित धूपर (30 वर्ष) को उनके भतीजे के बनाए एक ड्रॉइंग ने सोचने पर मजबूर कर दिया था क्योंकि उसने आसमान का रंग नीला नहीं बल्कि ग्रे रखा था।

उसने ऐसा किया था क्योंकि आमतौर पर दिल्ली के आसपास के इलाके में पराली जलाने के बाद आकाश का रंग नीला नहीं ग्रे हो जाता है और इसके बाद से ही साल 2019 में अर्पित ने पंजाब और दिल्ली के पास के किसानों से मिलकर पराली जलाने की समस्या को करीब से समझना शुरू किया।

अर्पित को कई किसानों से बात करने के बाद पता चला कि ये किसान अपने खेतों से जल्द से जल्द पराली को हटाना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उन्हें कोई फायदा नहीं होता इसलिए वे उसे जला देते हैं।

ऐसे में उन्होंने फिर किसानों से पराली जलाने की बजाय इसे इकट्ठा कर उन्हें बेचने के लिए प्ररित किया जिससे किसानों को एक अतिरिक्त आय का साधन तो मिला ही और साथ ही उनके स्टार्ट-अप को सस्ते दाम पर पराली भी मिलने लगी।

इसके बाद ही अर्पित ने एक ऐसा समाधान निकालने का सोचा जिसके ज़रिये इस बायोडिग्रेडेबल सामग्री से कोई और प्रोडक्ट बनाया जा सके। न्होंने अपने वेंचर धारक्षा इकोसिस्टम्स के माध्यम से इस इनोवेशन को नया आयाम दिया।

अर्पित धूपर ने पंजाब और हरियाणा के किसानों की पराली जलाने की समस्या को काफी हद तक सुलझाने के साथ ही इससे कटलरी व थर्माकोल बनाना शुरू कर दिया है जिससे वह आज सलाना लाखों रुपये कमा रहे हैं।

अर्पित ने 2019 में पंजाब और हरियाणा राज्य के किसानों से बात कर वहां से पराली इकट्ठा करना शुरू किया और इससे बायोडिग्रेडेबल सामान जैसे कि कप-प्लेट और थालियां बनाने का काम शुरू किया।

इनके इस कदम से पर्यावरण में फैलने वाला प्रदूषण काफी हद तक कम तो हुआ ही साथ ही साथ लोगों को सस्ते दामों पर कटलरी भी मुहैया होने लगा।

अर्पित बताते हैं कि उन्होंने पंजाब और हरियाणा के गांवों में जाकर वहां के किसानों से बातचीत की तो पराली जलाने का वास्तविक कारण पता चला और उन्होंने यहां से इकट्ठा की गई पराली अपने फैक्टरी में मशरुम के माध्यम से सड़ाकर कटलरी बनाने का काम शुरू किया।

मशरुम के माध्यम से बनने वाला यह उत्पाद थर्माकोल की ही तरह होता है, लेकिन पूरी तरह से बायोडीग्रेडबल होता है। उन्होंने बताया कि पराली को फैक्टरी में लाने के बाद इसे पूरी तरह से रोगाणु मुक्त किया जाता है और उसके बाद मशरुम कल्चर कर थर्माकोल तैयार किया जाता है।

यह कटलरी उच्च नमी को भी सहन कर सकती हैं। मशरुम कल्चर से पराली में एक प्रकार की इंटरलॉक संरचना बनती है जो कटलरी को मजबूत आकार देती है और फिर मिश्रण से बने इस ढांचे को ओवन में डाल दिया जाता है, जहां मशरूम बेअसर हो जाते हैं और कटलरी तैयार हो जाती है।

इस स्टार्टअप ने पंजाब और हरियाणा के गांवों से 100 एकड़ खेत से 250 टन से अधिक धान की पराली खरीदी है और पिछले वर्ष लगभग 25 लाख रुपये का कारोबार किया है।


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