येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन और सीवोटर इंटरनेशनल की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में एक बड़ी संख्या में जनता ग्लोबल वार्मिंग के बारे में चिंतित है।
‘ग्लोबल वार्मिंग्स फ़ोर इंडियाज़, 2022′ के शीर्षक की यह रिपोर्ट चार विशिष्ठ तरह के जन समूहों के बारे में जानकारी देती है। यह समूह विभिन्न प्रकार से क्लाइमेट चेंज पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं: इनमे सचेत, फिक्रमंद, सावधान और वह जो इसमें शामिल नहीं होना चाहते, शामिल हैं।
भारतीय जनसँख्या के अधिकांश लोग सतर्क समूह (54%) से है। यह वह समूह है जो ग्लोबल वार्मिंग की वास्तविकता और खतरों से सबसे अधिक अवगत है। चिंतित समूह (29%) भी अवगत हैं कि ग्लोबल वार्मिंग हो रही है और एक गंभीर खतरा है, इसके बारे में ये कम जानते हैं और इसे सतर्क समूह की तुलना में कम तात्कालिक खतरे के रूप में देखते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के बारे में सबसे ज़्यादा राजनीतिक और राष्ट्रीय कार्रवाई के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रेरित करने वाला समूह सतर्क (अलार्मड) लोगों का है।
दो छोटे सेगमेंट जिनमे सावधान (11%) और इससे कटे हुए (7%) हैं। सावधान वाले समूह का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, लेकिन वह व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करने वाले इनके कारणों के बारे में कम जानकार होने के चलते तत्काल खतरों को लेकर कम गंभीर हैं। वे क्लाइमेट और पावर पॉलिसीज़ का समर्थन करते हैं लेकिन सतर्क और अवगत लोगों की तुलना में राष्ट्रीय कार्रवाई के प्रति इनका समर्थन कम है। जो लोग शामिल नहीं हैं वह ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बहुत कम जानते हैं, ये लोग इन मुद्दों से कटे रहते हैं या बहुत कम जुड़ते हैं, और अक्सर कहते हैं कि वे इस सम्बन्ध में कुछ नहीं जानते हैं या इसके बारे में सवालों का कोई जवाब नहीं देते हैं।
“संचार के प्रभावी शुरूआती नियमों में से एक अपने दर्शकों को जानना’ है,” ये कहना है येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन प्रोजेक्ट के सह-प्रमुख डॉ. एंथोनी लेसेरोविट्ज़ का। “इस विश्लेषण से सरकारों, पत्रकारों, कंपनियों और अधिवक्ताओं को जलवायु परिवर्तन और इसके समाधानों के मुद्दे पर अपने प्रमुख दर्शकों को बेहतर ढंग से समझाने और शामिल करने में मदद करनी चाहिए।”
चार तरह के भारतियों के बीच ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जोखिम का नजरिया काफी भिन्न है। मसलन 93% सचेत और 59% फिक्रमंद हैं, जबकि केवल 24% सावधान और केवल 1% इससे बिलकुल कटे हुए हैं, जिनके मुताबिक़ ग्लोबल वार्मिंग से उन्हें या उनके परिवार को “बहुत बड़ा” या “एक मध्यम मात्रा” का नुकसान पहुंचा सकता है। ” इससे कटे हुए लोगो का ये कहना है कि वे इस बारे में नहीं जानते या उनकी कोई राय नहीं है।
“सभी चार खंडों में अधिकांश लोगों ने वर्षा सहित स्थानीय मौसम पैटर्न में बदलाव देखा है।” यह कहना है क्वींसलैंड विश्वविद्यालय में प्रोजेक्ट के सह-प्रमुख डॉ. जगदीश ठाकर का। “रिपोर्ट यह भी बताती है कि कैसे सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ विविध भारतीय आबादी के बीच जलवायु भेद्यता को बढ़ाती हैं।”
इन तीन खंडों में सबसे पसंदीदा नीतियों में से भारतीयों को ग्लोबल वार्मिंग के बारे में सिखाने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम विकसित करना (क्रमशः 91%, 88% और 74%), लोगों को रिन्यूएबल एनर्जी नौकरियों के बारे में प्रशिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम विकसित करना (90%, 88% और 75%), और स्थानीय समुदायों को लोकल वाटर सप्लाइज बढ़ाने हेतु चेक डैम बनाने के लिए प्रोत्साहित करना (89%, 89%, और 75%) है। शामिल न होने वालों में से कुछ लोग इन क्लाइमेट और एनर्जी पॉलिसीज़ का समर्थन करते हैं (तमाम पॉलिसीज़ में 8% से 12% तक)।
सीवोटर इंटरनेशनल के संस्थापक और निदेशक यशवंत देशमुख कहते हैं- “भारतीय जनता का संदेश स्पष्ट है। सभी प्रकार के भारतीय क्लाइमेट चेंज के बारे में चिंतित हैं, क्लाइमेट पॉलिसीज़ का समर्थन करते हैं और अपनी सरकारों से नेतृत्व चाहते हैं।”
येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन और सीवोटर इंटरनेशनल द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वेक्षण से ये सभी महत्वपूर्ण निष्कर्ष लिए गए है। अक्टूबर 2021 से जनवरी 2022 तक 4,619 भारतीय वयस्कों (18+) के टेलीफोन सर्वेक्षण पर आधारित।
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