भोपाल। कोरोना संक्रमण के कारण राज्य के माध्यमिक शिक्षा मंडल (माशिम) की दसवीं व बारहवीं की परीक्षाएं पहले ही रद्द कर दी गई हैं और विद्यार्थियों को तय मापदंड के आधार पर जनरल प्रमोशन दिया जा रहा है। इस बीच बिना परीक्षा के लिये गए परीक्षा शुल्क का मुद्दा उठ रहा है।
विद्यार्थियों ने भले ही शुल्क देकर भी परीक्षाएं न दी हों लेकिन मंडल द्वारा परीक्षाएं न लेकर भी शुल्क लिया और इससे मोटी कमाई की है। यह कमाई तब हुई है जब निजी स्कूलों की माली हालत खराब है।
प्रदेश में फिलहाल दसवीं के विद्यार्थियों के रिजल्ट तैयार करने की तैयारी चल रही है, लेकिन अब तक बारहवीं के रिजल्ट के लिए मापदंड अब तक तय नहीं हो सके हैं।
बहुत से विद्यार्थियों को जहां इस जनरल प्रमोशन से खुशी हो रही है तो वहीं माध्यमिक शिक्षा मंडल भी इसे लेकर कुछ खास परेशान नहीं है क्योंकि परिक्षाएं न करवाने से उनकी सालभर में करीब 160 करोड़ रुपये से अधिक की बचत हुई है। यह बचत विद्यार्थियों से ली गई परीक्षा फीस से ही हुई है।
नईदुनिया की खबर के अनुसार दसवीं व बारहवीं की परीक्षा के फार्म भरने में हरेक विद्यार्थी से लगभग 925 रुपये शुल्क लिया गया है। इस साल दसवीं में करीब साढ़े 10 लाख और बारहवीं में करीब साढ़े सात लाख विद्यार्थी शामिल होने वाले थे।
इससे करीब 18 लाख विद्यार्थियों से माशिमं को 180 करोड़ रुपये सिर्फ परीक्षा फार्म सामान्य शुल्क के साथ भरने से आमदनी हुई है। माशिमं ने प्रश्नपत्र व उत्तरपुस्तिकाओं को तैयार करने में करीब 20 करोड़ रुपये खर्च कर भी दिए तो फिर भी माशिमं को 160 करोड़ स्र्पये की बचत होगी।
इसके अलावा करीब एक लाख विद्यार्थियों से विलंब शुल्क यानी लेट फीस भी ली गई है। यह फीस दो हजार और पांच हजार रुपये तक ली गई है।
शासन को जहां एक ओर पैसों की बचत हो रही है तो वहीं निजी स्कूलों की हालत पतली है। विशेषकर एमपी बोर्ड से संबंधित स्कूल संचालकों को बीते काफी समय से पूरी फीस भी नहीं मिल पाई है। ऐसे में प्रदेश के बहुत से निजी स्कूल संचालक परेशान हैं।
इन संचालकों के मुताबिक उन्हें स्कूल लगाने की अनुमति नहीं मिली है और ऐसे में पूरी फीस भी नहीं मिल रही है लेकिन उनके खर्चे लगातार जारी हैं। इनमें भवन शुल्क, बिजली बिल, ट्रांसपोर्ट शुल्क, बैंक किश्ते तमाम किस्म के खर्च शामिल हैं।
ऐसे में परीक्षा प्रायवेट स्कूल एसोसिएशन ने माशिमं को पत्र लिखकर विद्यार्थियों को परीक्षा शुल्क लौटाने की मांग की है। स्कूल संचालकों के मुताबिक परीक्षा न होने की सूरत में अभिभावक उनसे फीस वापसी की मांग कर रहे हैं।
इस पूरे मामले में माशिमं के अधिकारियों का कहना है कि दसवीं की परीक्षा की पूरी तैयारी कर ली गई थी। दसवीं व बारहवीं के प्रश्नपत्र तैयार करने में करीब तीन करोड़ रुपये, कॉपियों को तैयार करने में करीब दस करोड़, ओएमआर शीट में दो करोड़ और प्रैक्टिकल में करीब पांच करोड़ रुपये खर्च हुए। इसके अलावा करीब एक लाख विद्यार्थियों से लेट फीस लेकर भी परीक्षा फार्म भरवाया गया।
तैयारियों में खर्च हो चुकी 80 फीसदी राशि –
माशिमं ने परीक्षा की पूरी तैयारी कर ली थी। प्रश्नपत्र व कॉपियां तैयार करने से लेकर सबकुछ तैयारी हो चुकी थी। बस मूल्यांकन कार्य बाकी था, तो 80 फीसदी फीस की राशि खर्च हो चुकी है। ऐसे में विद्यार्थियों को परीक्षा शुल्क लौटाना संभव नहीं है।
माशिमं ने करीब 18 लाख बच्चों से परीक्षा फार्म भरवाया। अब परीक्षा नहीं हुई तो माशिमं को बच्चों की फीस लौटानी चाहिए। करीब एक लाख विद्यार्थियों ने विलंब शुल्क देकर भी फार्म भरे हैं। ऐसे में मंडल को अच्छी आमदनी हुई है।
– अजीत सिंह, अध्यक्ष, प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन