धार। स्कूल खुलते ही कॉपी-किताबों की दुकानों पर नौनिहालों की किताबें खरीदने के लिए अभिभावकों की भीड़ लग रही है। यह नजारा इन दिनों यहां की अमूमन हर बड़ी और ठेका प्राप्त दुकानों में आम है।
हर साल की भांति इस बार भी जिले में सरकारी आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। पालक निजी विद्यालयों, प्रकाशकों और दुकानदारों की तिकड़ी के बीच पिस रहे हैं। तीनों मिलकर पालकों की जेब पर डाका डाल रहे हैं।
सरकार चाहे कितने भी नियम बना ले, मगर यह फैसला महज कागजी कार्रवाई और अगले दिन अखबारों की सुर्खियों तक ही सीमित रह जाता है। निजी विद्यालयों की मनमानी और किताबों का धंधा इन दिनों जोरों पर चल रहा है।
किताबें ही नहीं, रबर, कटर, पेंसिल, कॉपी कवर और जूते व ड्रेस तक की खरीदारी में स्कूली फरमान ही चल रहा है। जिले के 675 निजी स्कूल पूरी तरह से अपनी मनमानी पर उतर आए हैं।
मनमाने ढंग से फीस निर्धारित करने वाले निजी स्कूल संचालक नया सत्र प्रारंभ होते ही ड्रेस, जूता, मोजा के साथ ही किताबें और पाठ्यक्रम के नाम पर कमीशनखोरी का खेल खेल रहे हैं। बेहतर शिक्षा के नाम पर अभिभावकों को लूटा जा रहा है।
स्कूल संचालकों ने कहीं कॉपी-किताबों और ड्रेस के लिए दुकानों से सेटिंग कर रखी है तो कहीं खुद स्कूल से बांट रहे हैं। शिक्षण शुल्क के नाम पर मोटी रकम के साथ कॉपी-किताब और ड्रेस से भी मोटी कमाई की जा रही है।
इन स्कूल संचालकों पर जिला प्रशासन का किसी तरह का कोई अंकुश नहीं है। निजी स्कूलों में अच्छी शिक्षा और व्यवस्था का लालीपॉप देकर अभिभावकों को ठगा जा रहा है।
फीस निर्धारण में मनमानी करने वाले स्कूल संचालकों ने चालू शिक्षा सत्र में फीस में इजाफा कर दिया है। स्कूलों में फीस के साथ किताबों के दामों में बढ़ोत्तरी से अभिभावक परेशान हैं।
दुकान बन गए हैं स्कूल –
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि कभी समाजसेवा का जरिया माना जाने वाला शिक्षादान आज केवल व्यवसाय बनकर रह गया है। ज्ञान का मंदिर समझे जाने वाले विद्यालय आज दुकान और विद्यार्थी एवं उनके अभिभावक महज ग्राहक बन गए हैं।
धार प्रदेश का आदिवासी क्षेत्र माना जाता है। यहां के प्रतिभावान बच्चों ने न केवल राज्य व देश, बल्कि विदेशों में भी अपनी कामयाबी का परचम लहराया है, किंतु सरकार की गलत शिक्षा नीति और सरकारी स्कूलों की दुर्दशा का नतीजा यह है कि यहां शिक्षा के नाम की लूट मची है जिसे मौका मिल रहा, लूट रहा है।
निजी विद्यालयों की मनमानी से धार जिले में इन दिनों पालक खासे परेशान चल रहे हैं, क्योंकि वर्तमान में स्कूलों की लूटपाट का मौसम चल रहा है।
दूसरी जगह नहीं मिलती –
किताब बिक्री के धंधे में प्रकाशक विशेष के साथ स्कूल और दुकानदार की सांठ-गांठ होती है। कमीशन का खेल ऐसा कि पहले से तय विक्रेताओं के यहां ही कोर्स की किताबें उपलब्ध है। निजी स्कूल जो दाखिला फीस में मोटी कमाई कर रहे हैं, वहीं किताबों के नाम पर इस तरह का मोटा कमीशन भी डकार रहे हैं।
कुछ वर्ष पहले तक सीधे चाहे कहीं से किताबें खरीद लेते थे, लेकिन अब सिस्टम बदल गया है। स्कूल अपने कमीशन वाली दुकान बताते हैं और मोटी रकम लेते हैं। इतने में भी जी नहीं भरा तो कई स्कूल अपने यहां दुकान खोल कर बैठ गए हैं। केवल कमीशनखोरी के चक्कर में हर साल किताबों को बदला जाता है।
तो डील रद्द समझो –
अमूमन जरूरी किताबों पर कभी 15 प्रतिशत तो कभी 20-25 प्रतिशत कमीशन लिया जाता है। ये महंगे दाम वाली पुस्तकें हर वर्ष बदल दी जाती हैं, जिसने नहीं बदला और मनचाहा कमीशन नहीं दिया, अगले साल उस दुकानदार के साथ डील रद्द कर दी जाती है। ऐसे में पिछले साल खरीदी किताब रद्दी हो जाती है।
एक समय था जब किताबें आधी कीमत पर लेकर कई विद्यार्थी पढ़ाई पूरी करते थे। निजी स्कूलों की धांधली ने अब माहौल ही बिगाड़कर रख दिया है। एनसीईआरटी की किताबों की अधिकतम कीमत जहां 100-150 रुपये है, वहीं अन्य किताबों की कीमत 400-500 रुपये तक है। यही वजह है कि निजी स्कूल अपनी दुकानदारी चलाने लगे हैं। हर साल किताबों की कीमतों में 30-35 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो रही है।
सरकार की अनदेखी, प्रशासन उदासीन –
निजी स्कूलों की मनमानी सरकार की अनदेखी के कारण बढ़ी है, यह कहना कोई गलत नहीं होगा। जानकार बताते हैं कि स्कूलों की मान्यता से संबंधित नियम-कायदे में सरकारी पुस्तकों को चलाने की बात है।
ऐसा नहीं होने पर मान्यता तक रद्द किए जाने का प्रावधान है, लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों की कमीशनखोरी के कारण इनकी दुकानें हर साल चमकती जा रही हैं और खूब फल-फूल रही हैं।
नाममात्र के लिए प्रशासनिक कार्रवाई होती है। जांच समिति बनती है, शिक्षाधिकार अधिनियम अनुपालन के ठोस निर्देश भी दिए जाते हैं, लेकिन नतीजा फिर वही कागजों में बंद होकर रह जाता है।
हर साल होता है करोड़ों का खेल –
शहर व जिले में किताबों के कारोबार से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे हो रहे हैं। जिले में 675 स्कूल है तो धार शहर में कुल 68 स्कूल संचालित हो रहे हैं और इन स्कूलों के वारे न्यारे हो रहे हैं।
बच्चों की गिनती की जाए तो लगभग लाखो बच्चे इन स्कूलों में पढ़ते हैं। प्रति छात्र अगर 1500 रुपये का सेट माना जाए तो यह आंकड़ा करोड़ों में पहुंच जाता है। अधिक दामों में निश्चित दुकानों से पालकों को सेट खरीदना मजबूरी हो गई है।
नियमों में कई पेंच –
जिला शिक्षा अधिकारी यानी डीईओ को सीबीएसई संबद्ध निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए म.प्र. निजी विद्यालय फीस अधिनियम 2017 के तहत अधिकार दिया गया है।
इस एक्ट की धारा-6 में बुक और स्टेशनरी से संबंधित दिशा-निर्देश तो दिए हैं, लेकिन एनसीईआरटी शब्द का कहीं कोई उपयोग नहीं किया गया।
मतलब एक्ट ये तो कहता है कि बुक और स्टेशनरी जैसी अन्य सामग्री सार्वजनिक प्रदर्शित की जाए, लेकिन स्कूल में एनसीईआरटी की बुक चलाना अनिवार्य है या किसी कक्षा में कम से कम इतनी बुक एनसीईआरटी की होना जरूरी है। ऐसा कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है। वही दूसरी ओर आदेश पर आदेश निकले पर, पालन एक का भी नहीं होता है।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन यानी सीबीएसई ने 12 अप्रैल 2016 और 19 अप्रैल 2017 को स्कूलों से ही या चयनित दुकानों से पुस्तकें, स्टेशनरी, यूनिफॉर्म, स्कूल बैग खरीदने के संबंध में आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया कि बच्चों और उनके पालकों पर चयनित दुकान या किसी चयनित निजी प्रकाशक की पुस्तकों को खरीदने का दबाव नहीं बनाया जा सकता।
इन्हीं आदेशों का हवाला लेकर 31 मार्च 2018 को स्कूल शिक्षा विभाग, मध्यप्रदेश ने भी सभी जिलों के कलेक्टर्स को पत्र लिखकर आदेशित किया कि म.प्र. निजी विद्यालय फीस अधिनियम 2017 के अंतर्गत ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई की जाए जो लाभ कमाने के लिए पालकों पर महंगी पुस्तकें, स्कूल ड्रेस और एक चयनित दुकान से ही खरीदने का दबाव बना रहे हैं, पर इन आदेशों का कभी पालन नहीं हुआ।
कार्रवाई करेंगे –
इसको लेकर टीम बनाई गई है। जल्द ही कार्रवाई करेंगे। अगर कोई पालक शिकायत करें तो हम तुरंत कार्रवाई करेंगे। – महेंद्र शर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी, धार
नियम विरुद्ध कुछ हो रहा है तो कार्रवाई करेंगे –
स्कूलों व दुकानदारों पर जल्द ही कार्रवाई करेंगे। एक स्कूल की किताबें 3 दुकानों पर रखने का नियम है। अगर नियम के विरुद्ध कुछ हो रहा है तो कार्रवाई करेंगे। – भरतराज राठौर, बीआरसी, धार