भोपाल। राज्य में विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिए काफी मुश्किलें भी दिखाई दे रहीं हैं। कांग्रेस इसे एक मौके की तरह देख रही है और दावा कर रही है कि विधानसभा चुनावों में उनका प्रदर्शन विरोधी से कहीं बेहतर होगा। हालांकि इस दावे पर कई सवाल भी हैं जो सीधे संगठन से जुड़ते हैं। पार्टी जिस तरह भाजपा के संगठन से भिड़ने का दावा कर रही है वह बेबुनियाद नजर आता है क्योंकि कांग्रेस का जमीनी संगठन पूरी तरह से ध्वस्त नज़र आता है। इनमें सबसे अहम है NSUI।
साल 1971 में कांग्रेस की सबसे मज़बूत लीडर और उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का बनाया हुआ देश का यह सबसे पुराना छात्र संगठन अब जैसे खत्म हो रहा है। कांग्रेस के लगभग सभी अहम नेता कभी न कभी NSUI से जुड़े रहे हैं और इस संगठन ने कांग्रेस की नौजवानों तक पहुंच बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है। एक ज़माने में ये संगठन कांग्रेस की नेतागीरी करने की पहली सीढ़ी माना जाता था लेकिन अब एनएसयूआई बदहाल है।
संगठन में बीते कई सालों से नियुक्तियां नहीं हुई हैं। कांग्रेस विचारधारा से इत्तेफ़ाक रखने वाली विद्यार्थियों की एक पीढ़ी इस दौरान जवान होकर उम्र के अगले पढ़ाव में पहुंच गई लेकिन उसे राजानीति सीखने का कोई मंच नहीं मिला। इसी दौर में दूसरी कमजोर पार्टियों ने विद्यार्थियों पर ध्यान दिया और अब वे सबसे शक्तिशाली बन चुकी हैं।
युवा देश की सबसे पुरानी पार्टी अपने ही युवाओं का ध्यान नहीं रख पाई। राजीव गांधी जैसे सबसे नौजवान प्रधानमंत्री देने वाली पार्टी में नौजवानों को बूढ़े हो रहे नेताओं के आगे मैदान में ही राजनीति करनी पड़ रही है उन्हें छात्र राजनीति का मौका ही नहीं मिला। ज़ाहिर है ऐसी परिस्थितियों ने कांग्रेस को कमजोर किया है और अचरज नहीं कि कांग्रेस के पास अगली पीढ़ी के नेताओं की कमी भी इसीलिए दिखाई दे रही है।
मध्यप्रदेश NSUI का हाल खराब है। पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने इस परेशानी पर कोई ध्यान नहीं दिया और अब हाल ये है कि राजनीतिक मुद्दों को नौजवानों के बीच पहुंचाने वाली कांग्रेस की पहली पाठशाला ही खत्म होने की कगार पर है।
NSUI में प्रदेशाध्यक्ष तो हैं लेकिन प्रदेश में न तो इनके पास कोई टीम है और न ही जिलों में कोई सदस्य। ऐसे में कांग्रेस का यह विद्यार्थी संगठन केवल नाम का ही बचा है। भारतीय जनता पार्टी के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आगे फिलहाल NSUI कहीं नहीं ठहरती।
फिलहाल NSUI में होशंगाबाद के आशुतोष चौकसे प्रदेशाध्यक्ष हैं। वे पहले अपनी पढ़ाई के दौरान भोपाल के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इससे पहले साल 2021-22 तक मंजूल त्रिपाठी प्रदेशाध्यक्ष थे और उनसे पहले विपिन वानखेड़े प्रदेशाध्यक्ष थे। जो अब विधायक बन चुके हैं। अपने कार्यकाल के दौरान केवल वानखेड़े ही ऐसे प्रदेशाध्यक्ष रहे जिन्होंने प्रदेश में कार्यकारिणी बनाई लेकिन इसके बाद से अब तक कार्यकारिणी नहीं बनी है।
आलम ये रहा कि NSUI में पिछले कुछ सालों में दो बार सदस्यता अभियान चलाया गया लेकिन इसका कोई परिणाम अब तक नहीं बताया गया है। दरअसल सदस्यता अभियान में सफल रहने वाले नेताओं को ही जिलाध्यक्ष के तौर आगे लाया जाता है। युवा अपनी ओर से सदस्यता अभियान की कवायद कर चुके हैं लेकिन इसका परिणाम घोषित ही नहीं किया जा रहा है।
बेनतीजा सदस्यता अभियान !
संगठन से लंबे समय तक जुड़े रहे एक विद्यार्थी नेता ने बताया कि कई बार इसे लेकर संगठन स्तर पर बात की जा चुकी है लेकिन कांग्रेस के नेता NSUI को गंभीरता से नहीं लेते। जबकि वे युवाओं को राजनीति में लाने के लिए लगातार कहते हैं पर संगठन के लिए कोई पहल नहीं करते। कई युवाओं ने बताया कि उन्होंने दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के सामने भी यह मुद्दा उठाया लेकिन इसे सुनकर अनसुना कर दिया गया।
इसे लेकर प्रदेशाध्यक्ष आशुतोष चौकसे से बात करने का प्रयास किया लेकिन यह सफल नहीं हुआ। इसके अलावा संगठन के प्रदेश प्रभारी नीतिश गौर ने बताया “संगठन पूरी मुस्तैदी के साथ काम कर रहा है और सदस्यता अभियान के बाद जिला अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया जारी है।”
इस प्रक्रिया को लेकर लगातार हो रही देरी पर सवाल करने पर गौर कुछ नाराज सुनाई दिए उन्होंने कहा कि यह संगठन का अंदरूनी मामला है और इसमें किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
वे कहते हैं कि वैसे कई कार्यक्रम बिना सकते हैं जहां प्रदर्शनों में एनएसयूआई की भूमिका अहम रही है।
NSUI से ABVP के हो गए
इंदौर में संगठन से जुड़े एक युवा बताते हैं कि NSUI की अब केवल कहानियां ही रह गईं हैं इसके अलावा अब जमीन पर इसका कोई अस्तित्व नहीं है।
कुछ युवा अपनी विचारधारा के प्रति अपनी ईमानदारी से इस संगठन को बचाए हुए हैं लेकिन नेताओं ने इसे खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ये युवा बताते हैं कि अब संगठन से जुड़े युवाओं का भी यहां की व्यवस्थाओं से मोहभंग हो चुका है। कई युवाओं ने संघ-भाजपा के एबीवीपी की सदस्यता तक ले ली है।
ज्यादातर जिलों में शून्य
कांग्रेसी विचारधार में विश्वास रखने वाले कुछ युवा NSUI का अस्तित्व बचाए हुए हैं। भोपाल और इंदौर के अलावा रीवा से भी संगठन के द्वार होने वाले प्रदर्शनों को लेकर खबरें आती रहतीं हैं इसके अलावा बाकी पूरे प्रदेश में संगठन की सक्रियता लगभग शून्य ही मानी जाती है।
संगठन की इस दुर्दशा को लेकर पार्टी के विधायक बोलने को तैयार नहीं है। उनके मुताबिक चुनाव के समय ऐसा कहना पार्टी के नेताओं की रेड लिस्ट में आना है। ऐसे में विधायकी बचाना भी मुश्किल होगा। संगठन से जुड़े छात्र नेता इस व्यवस्था से खुश नहीं है लेकिन वे अपने दल के प्रति ईमानदार दिखाई देते हैं। इंदौर में रहने वाले प्रदेश महासचिव रजत पटेल बताते हैं कि कार्यकारिणी होती है तो व्यवस्था बेहतर होती है और हमारे प्रदर्शन दिखाई देते हैं। वे उम्मीद जताते हैं कि कार्यकारिणी जल्द घोषित होगी।
हालांकि कमलनाथ के बेहद प्रोफेशनल कामकाज से कुछ कांग्रेसियों ने खुशी जताई लेकिन उन्होंने कहा कि कमलनाथ जैसे बड़े नेता इसे छोटा मुद्दा समझते हैं इसलिए इस पर उर्जा खर्च नहीं करते। भोपाल में एक युवा नेता समझाते हैं कि हो सकता है कि NSUI को मजबूत करने का फौरी असर न दिखाई दे लेकिन इसके अच्छे परिणाम कांग्रेस को ही मिलेंगे।