उपचुनाव के नतीजों के बाद दमोह में मेडिकल कॉलेज के जल्द बनने पर संशय!


मेडिकल कॉलेज का वादा भले ही चुनावी समय में किया गया हो लेकिन यह मुख्यमंत्री ने जनता से सीधे किया था। ऐसे में अब जनता विधायक की ओर नहीं बल्कि सीधे मुख्यमंत्री की ओर देख रही है…


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राजनीति Published On :

भोपाल। मेडिकल कॉलेज को लेकर प्रदेश सरकार की कार्ययोजनाओं की आलोचना हमेशा से ही होती रही है। प्रदेश में बन रहे ज्यादातर मेडिकल कॉलेजों में या तो इलाज का कोई खास स्तर नहीं है या प्रस्तावित मेडिकल कॉलेजों का काम बेहद धीमी गति से चल रहा है। ऐसे में सरकार ने एक नए मेडिकल कॉलेज की घोषणा की और इसका भूमिपूजन किया। इस मेडिकल कॉलेज के लिए बजट में प्रस्ताव भी किया गया था। लेकिन अब इस मेडिकल कॉलेज को लेकर भी कुछ संशय नज़र आ रहा है।

कांग्रेस पार्टी से टूटने वाले आख़िरी विधायक दमोह के राहुल सिंह लोधी का दावा है कि उन्होंने मेडिकल कॉलेज के लिए अपनी पुरानी पार्टी छोड़ दी और नई पार्टी में आ गए, ऐसे में कहा जाना चाहिए कि दमोह उपचुनाव की नींव मेडिकल कॉलेज  के वादे पर रखी गई है।

ज़ाहिर है ये वादा चुनावी है। अब चुनावी वादा पूरा होगा या नहीं इस सवाल का जवाब ठीक तरह से फिलहाल कोई नहीं जानता।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस छोड़कर आए राहुल सिंह लोधी की मांग पर यह घोषणा की थी। सीएम शिवराज ने जनता से राहुल को ऐतिहासिक वोटों से जिताने की अपील की थी, इतनी ज़्यादा वोटों से जितने से कांग्रेस छोड़कर आने वाले अन्य नेताओं में से कोई नहीं जीता हो, लेकिन राहुल चुनाव हार गए हैं और वे सबसे ज़्यादा वोट से हारे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री की जनता से नाराज़गी बनती है।

चुनाव परिणामों के बाद दमोह जिले की जनता के मन में एक ही सवाल है कि अब यहां मेडिकल कॉलेज बनेगा या नहीं। इसकी वजह है मेडिकल कॉलेज को लेकर अब की गईं तैयारियां। दरअसल मुख्यमंत्री ने आचार संहिता से पहले तहसील ग्राउंड यानी एक सरकारी मैदान में ही मेडिकल कॉलेज का भूमिपूजन कर दिया था। अब इसके लिए ज़मीन कितनी जल्दी मिलती है यह देखने वाली बात है।

मेडिकल कॉलेज को लेकर बुंदेलखंड क्षेत्र की हालत ठीक नहीं है। सागर के मेडिकल कॉलेज का हाल जग जाहिर है वहीं छतरपुर जिले के मेडिकल कॉलेज की घोषणा 2018 में की गई थी। 16 अप्रैल 2021 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर घोषणा की थी कि मेडिकल कॉलेज जल्द शुरु होगा।

दमोह मेडिकल कॉलेज की बात करें तो यहां की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं पहले से ही चरमराई हुई हैं। बेहतर इलाज के लिए लोगों को जबलपुर और नागपुर जैसे शहरों का ही सहारा है। ऐसे में यहां के लिए मेडिकल कॉलेज बेहद जरुरी है और लोग उम्मीद कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री का वादा चुनावी जुमला साबित न हो।

हालांकि राजनीतिक नफ़े-नुकसान को देखें तो मेडिकल क़ॉलेज का काम आगे न बढ़ाना भाजपा के लिए एक बार फिर नुकसानदेह साबित हो सकता है क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव महज़ दो साल बाद ही हैं और उस समय मुख्यमंत्री को एक बार फिर जनता के सामने जवाब देना होगा।

मेडिकल कॉलेज लाने में एक अहम भूमिका दोनों दलों के नेताओं की भी होगी। नए विधायक अजय टंडन जहां इसके लिए पुरजोर ताकत लगाने की बात कह रहे हैं तो वहीं राहुल सिंह कह चुके हैं कि मेडिकल कॉलेज आएगा ही।

टंडन के मुताबिक अब मुख्यमंत्री को दमोह में मेडिकल कॉलेज का अपना वादा जल्दी ही पूरा करना चाहिए। उन्होंने जनता से सीधे वादा किया है भले ही यह वादा चुनावी वक्त में किया गया हो लेकिन यह एक मुख्यमंत्री का वादा है, उन्हें इसे निभाना ही चाहिए।

ज़ाहिर है अगर मेडिकल कॉलेज नहीं बनता है तो अगले चुनावों में कांग्रेस को इसका ज्यादा लाभ मिलेगा और बन जाता है तो  भारतीय जनता पार्टी के लिए परिस्थितियां बदल सकती हैं।

 


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