भारतीय किसान संघ के आंदोलनों पर लगातार हो रहे दबाव और उनके अचानक वापसी के फैसले ने संगठन की छवि को कमजोर किया है। भले ही संघ की ओर से किसान संघ को ‘फ्री हैंड’ देने की बात कही जाती हो, लेकिन हकीकत में किसान आंदोलन को रोकने के निर्देश अक्सर सत्ता और संघ के दबाव में दिए जाते हैं। इससे किसानों में असंतोष बढ़ रहा है, और ये मुद्दा केरल में चल रही आरएसएस की अखिल भारतीय समन्वय बैठक में विशेष रूप से उठाया जा सकता है।
केरल में हो रही इस बैठक का महत्व इस साल और भी अधिक बढ़ गया है क्योंकि आरएसएस और भाजपा के बीच के रिश्ते चुनावी रणनीति के दृष्टिकोण से नए सिरे से परिभाषित हो रहे हैं। यह बैठक आरएसएस के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, जहां उसके शीर्ष नेता, जैसे कि सरसंघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले, और अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ संवाद करेंगे। भाजपा की ओर से पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष, और राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव (संगठन) शिव प्रकाश इस बैठक में भाग ले रहे हैं।
इस बैठक का उद्देश्य सिर्फ आपसी तालमेल को मजबूत करना नहीं है, बल्कि आगामी लोकसभा चुनावों के लिए एक मजबूत रणनीतिक ढांचा तैयार करना भी है। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया है और अब उसे सहयोगी दलों पर अधिक निर्भर रहना पड़ रहा है। इस बदलती राजनीतिक स्थिति में, संघ और भाजपा के बीच की समझ को और भी पुख्ता करने की जरूरत है। बैठक में किसानों के मुद्दों पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा, क्योंकि इनसे चुनावी समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं।
आरएसएस के सूत्रों के अनुसार, बैठक में कुछ नई नीतियों और प्रक्रियाओं पर विचार किया जा सकता है, ताकि संघ और भाजपा के बीच किसी भी प्रकार के तनाव या शीत युद्ध की स्थिति से बचा जा सके, जैसा कि लोकसभा चुनाव के पहले और बाद में देखा गया था। यह बैठक आने वाले समय में संघ और भाजपा के रिश्तों की दिशा को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।