नरसिंहपुर। विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और माननीय अपने अपने क्षेत्र में योजनाएं और विकास को गिनाना शुरू कर चुके हैं वहीं जनता उन्हें ट्रोल कर रही है और पूछ रही है कि उठने-बैठने, सालगिरह मनाने, तीज-त्यौहारों की बधाई देने के अलावा आपने किया क्या है ?
जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में पूरे साढ़े चार साल गुजरने के बाद अब जनता मुखर दिखाई दे रही है। क्षेत्र में ऐसा कोई बड़ा काम नहीं जिसके आधार पर जनता अपने नेता को दस में दस नंबर दे सके, नंबर का आलम तो ये है कि कई मामलों में नेता सर्वोत्तम और संतोष जनक तो दूर पास भी नहीं हो सके हैं। अपने नेताओं का गुणगान, राष्ट्रवाद के भाषण, विकास की तमाम बातों और दावों से परे शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी जैसे मुद्दे अब तक हल नहीं हैं।
वोट के लिए नेता जमीन पर दिखाई देने से पहले सोशल मीडिया के माध्यम से स्क्रीन पर नजर आ रहे हैं। क्षेत्र की जनता अपनी रोज़ की समस्याओं से जूझते हुए अब नेताओं को सोशल मीडिया पर सवाल कर रही है और सवाल क्या उनकी खिल्ली उड़ा रही है।
हर विधानसभा क्षेत्र में जनता के हाल बुरे हैं। लोगों को कई वर्षों के बावजूद मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझना पड़ रहा है। सड़क ,बिजली, पानी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए लोगों को पटरी से उतरी व्यवस्थाओं से रोजाना लड़ना पड़ रहा है।
मुख्यमंत्री जल आवर्धन योजना हो या जल जीवन मिशन, जिले के कई गावों में घर-घर पाइप लाइन तो बिछा दी गई है पर साल , दो साल गुजर जाने के बावजूद पानी नहीं आया। पिपरहा, रातीकरारखुर्द, कला, समनापुर आदि गांव में योजनाओं की असलियत और अपनी बदहाली बताते हैं। पिपरहा के ग्रामीण तो कहते हैं कि उनकी पूरी जिंदगी चली गई लेकिन पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई। गांव में सिर्फ पाइपलाइन डाल दी गई और पाइप लकड़ी के सहारे टांग दिए गए हैं।
सड़कों की हालात भी खराब हैं या कहें बदलाव की उम्मीद में पहले से भी बदतर हैं। नगरीय क्षेत्रों के भी हाल यह हैं कि थोड़ी सी बारिश में सड़कें डबरे और तालाब बन जाती हैं। जिला मुख्यालय में ही स्टेशनगंज में स्टेशन से वन विभाग के दफ्तर तक बरसात में इतना पानी भर जाता है कि यहां से पैदल निकलना मुश्किल है जबकि स्टेशन गंज क्षेत्र में कई जनप्रतिनिधियों, नेताओं के निवास हैं।
स्टेशन गंज निवासी व्यापारी संजय नेमा कहते हैं कि यह विकास की बानगी है कि जो नेता अपने क्षेत्र में वर्षों से बरसात से बनीं दलदल को नहीं सुधरवा सकते, सड़क ठीक नहीं करा सकते उनमें नगर के विकास की क्या ललक होगी, बीते शुक्रवार को थोड़ी सी हुई पहली बारिश में स्टेशन गंज की सड़क डबरा में तब्दील हो गई।यह शहर का हाल है गांवों में तो हालत और भी खराब है जहां की सड़कें बरसात में चलने लायक भी नहीं होतीं।
शिक्षा की हाल…
शिक्षा व्यवस्था के हालात यह है कि महाविद्यालयों में 10 साल पहले प्राध्यापकों, सहायक प्राध्यापकों के जितने पद खाली थे अब उससे ज्यादा रिक्त हैं। जिले में 15 महाविद्यालय हैं। इनमें 7 शासकीय एवं एक अनुदान प्राप्त है। सरकारी महाविद्यालयों में स्वीकृत 115 पदों में से करीब 32% पद खाली हैं। इनमें प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर, ग्रंथपाल और अन्य संवर्ग के पद हैं।
अर्थशास्त्र ,राजनीति, शास्त्र गणित,मनोविज्ञान समेत कई विभागों के पद खाली पड़े हैं। एक छात्रा संध्या राजपूत ने टिप्पणी की कि अगर कोई पढ़ना भी चाहे तो यहां फैकल्टी नहीं है , मजबूरी में उन्हें जबलपुर जाना पड़ रहा है।
एक परिसर , एक शाला के हाल बदतर हैं। यहां भी स्टाफ की कमी है, युक्तियुक्तकरण में विसंगति है। कई क्षेत्रों में बिगड़े ट्रांसफार्मर और बिजली की समस्या से गर्मी में सूखती फसल से किसान परेशान हैं। कठौतिया निवासी निजाम साहू की शिकायत है कि पिछले 15 दिन से ट्रांसफार्मर बंद पड़ा है वह दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं, गन्ने की फसल सूख रही है अंधाधुंध बिजली चोरी के मामले बन रहे हैं और मनमाने बिल आ रहे हैं। साहू ने बताया कि लोगों की सुनवाई नहीं हो रही है यहां तक कि भाजपा के कार्यकर्ता भी अफसरशाही के आगे परेशान हैं। मुख्यमंत्री के समक्ष पिछले दिनों कोर समिति की बैठक में हुई शिकायतें इसी बारे में थीं।
क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाएं चरमरा रही हैं। अस्पतालों में एक दशक पहले जितने पद रिक्त थे उससे बुरी स्थिति अब है पर ऐसा लगता है कि माननीय इससे जानबूझकर बेखबर हैं। अकेले जिला अस्पताल में ही चिकित्सा विशेषज्ञ के स्वीकृत 36 में से 33 पद रिक्त हैं, जबकि चिकित्सा अधिकारी के स्वीकृत 54 में से 14 पद व नर्सिंग संवर्ग में स्वीकृत 103 में 40 पद खाली पड़े हैं, अन्य सामुदायिक एवं प्राथमिक चिकित्सा एव उप स्वास्थ्य केंद्रों का हाल बदतर हैं।
इन 4 सालों में सड़क ,बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को लेकर माननीयों ने लोगों से कोई बात नहीं की है। महंगाई और बेरोजगारी कई तरह की कही अनकही किल्लत पैदा कर रही हैं। रोजगार मुहैया कराने कोई भी उपलब्धि भी चारों विधानसभा क्षेत्र में नहीं है। स्थानीय रोजगार कार्यालय के पास तो बेरोजगारों का कोई डाटा नहीं है। इस विभाग में कार्यरत संविदा कर्मी का कहना है कि अब सब ऑनलाइन ही हैं।
इस मामले में आरटीआई एक्टिविस्ट और पत्रकार देवेंद्र पंडा खुलकर लिखते हैं कि जिले के माननीय यहां इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं खुलवा सके और ना ही मेडिकल कॉलेज और न ही कोई उद्योग जबकि कालेज एनटीपीसी के जरिए नरसिंहपुर जिले में खुलने थे परंतु जिले का हक दूसरे जिलों में चला गया।
नरसिंहपुर के ही नागरिक आशीष गुप्ता, मुलायम मेहरा, रजनी तिवारी और विद्या पटेल हमें मिले। ये कहते हैं कि जिले में चार, पांच वर्षों कोई विकास कार्य नहीं हुए जिससे कोई विधायक यह कह सकें कि उनके क्षेत्र में उन्होंने इस पंचवर्षीय योजना में यह खास खास कार्य कराए हैं।
अब चुनाव की आ रही घड़ी में विधायक निधि से कभी किसी संस्था को क्रिकेट किट बांटी जा रही है तो कुछ मंडलों ,संस्थाओं को छुटपुट राशि दी जा रही है। करोड़ों रुपए की लागत के निर्माण का झुनझुना दिखाने भूमि पूजन के पत्थर लगाना शुरू कर दिए गए हैं। माननीयों के इस उदासीन रवैए से ही पब्लिक उन पर सवाल पर सवाल दाग रही है कि माननीय आपने सिर्फ लोगों के घरों में उठने बैठने के अलावा क्षेत्रों को आखिर दिया क्या है ?
उधर पब्लिक की नाराजगी को भांप कर माननीय अपने समर्थकों के सहारे सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए हैं, कभी कोई नायक प्रधान फिल्मों के गाने पर अपने नेता को पब्लिक का खास मसीहा बता रहा है, तो कभी भी वह दो चार बन गई सड़कों और एक दो पुल गिना कर अपने नेता के लिए वाहवाही जुटाने की कोशिश कर रहा है।
इस टीम के लिए अपने आकाओं, माननीयों का क्षेत्र में लोगों के यहां उठने बैठने के सिलसिले और फिर उसकी फोटो, वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करने का उम्दा धर्म बन गया है ताकि जनता को लगे कि उनके क्षेत्र के नेता उनके यहां लगातार सक्रिय हैं।
वहीं जनता भी पीछे नहीं, जनता बराबरी से पूछ रही है कि ये सब तो ठीक है लेकिन उनके लिए क्या किया। इसका अंदाज़ा एक वॉट्सएप पोस्ट से लगाया जा सकता है। जिसमें नरसिंहपुर की जनता अपने क्षेत्र के नेताओं की उपलब्धियों को बता रही है।