पिछड़ों पर सियासी लड़ाई, दोनों ही दल OBC के पक्ष में तो खिलाफ़ कौन?


मुख्यमंत्री शिवराज इसे कांग्रेस द्वारा किया गया पाप बता रहे हैं और कांग्रेस ओबीसी को लेकर प्रदेश सरकार की मंशा पर सवाल कर रही है…


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राजनीति Published On :

भोपाल। अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी, जिसे नाराज़ करने का जोख़िम फिलहाल कोई मोल लेना नहीं चाहता। यह जाति प्रदेश राजनीति में कई बड़े सियासी उलटफेर कर सकती है और यह बात प्रदेश के दोनों मुख्य दल जानते हैं। यही वजह है कि अब ओबीसी पर सियासत सबसे निर्णायक दौर में आ पहुंची है।

सुप्रीम कोर्ट ने बिना आरक्षण के ही चुनाव कराने के लिए कहा है वहीं भाजपा ओबीसी से वादा कर चुकी है कि वे 27 प्रश आरक्षण देंगे। हालांकि यही वादा कांग्रेस ने भी किया था लेकिन फिलहाल वह विपक्ष में हैं और आरक्षण लागू न हो पाने की वजह प्रदेश सरकार की कमज़ोर न्यायिक लड़ाई को बता रहे हैं।

इधर मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह आरक्षण देने में आई इस रुकावट के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार बता रहे हैं। उन्होंने इसे कांग्रेस द्वारा किया गया पाप बताया है।

मुख्यमंत्री चौहान बुधवार शाम को दिल्ली में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से मुलाकात की। इस दौरान उनके साथ कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र सिंह और नरोत्तम मिश्रा भी मौजूद थे। मुख्यमंत्री की कोशिश है कि प्रदेश में चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ ही हों। इसके लिए तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार किया जा रहा है।

सरकार जहां पशोपेश में है तो वहीं कांग्रेस ने अपना नया दांव खेला है। उन्होंने पंचायत चुनावों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा कर दिया है। कांग्रेस के पास फिलहाल यही है और यह करके वे दिखाना चाहते हैं कि वे अपने अंदरूनी मामलों में भी ओबीसी हितों का पूरा ख्याल रख रहे हैं। पार्टी के इस फैसले की घोषणा प्रदेश प्रमुख कमलनाथ ने बुधवार को ही की है।

बताया जाता है कि यह सुझाव एडवोकेट और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा का ही था। जिसे कांग्रेस पार्टी ने अपना लिया है और अपने अधिकारों के तहत ओबीसी आरक्षण देने की शुरुआत दिखाकर जनता तक एक संदेश पहुंचाया है।

 

इस बीच भाजपा के प्रदेश प्रमुख वीडी शर्मा ने भी इससे एक कदम बढ़कर ऐलान कर दिया है कि वे चुनावों में ओबीसी उम्मीदवारों को 27 प्रतिशत से भी अधिक तरजीह देंगे। शर्मा ने कहा कि भाजपा ने विधानसभा में ओबीसी से 27 प्रतिशत आरक्षण देने का संकल्प पारित किया था। शर्मा के मुताबिक आरक्षण के साथ चुनाव हो रहे थे लेकिन कांग्रेस के एक वकील और नेता ने इस मामले को महाराष्ट्र से जोड़ दिया और मामला बिगड़ गया। शर्मा का इशारा राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा की ओर था।

शर्मा ने इस दौरान अपने मुख्यमंत्री की जमकर तारीफ़ की और कांग्रेसी नेताओं को काफी कोसा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज ने अपने सारे दूसरे राजनीतिक कार्यक्रम रद्द कर दिये हैं और केवल ओबीसी आरक्षण को इस मामले को सुलझाने में लगे हैं।

इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ  ने ट्वीट किया कि “शिवराज जी, जब आपके पास सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त समय था, तब तो आपकी सरकार ने कुछ किया नहीं। आधी- अधूरी रिपोर्ट व आधे-अधूरे आँकड़े पेश किए, जिसके कारण ओबीसी वर्ग का हक़ मारा गया और प्रदेश में बग़ैर ओबीसी आरक्षण के पंचायत चुनाव का निर्णय सामने आया।

अब आप भले अपनी विदेश यात्रा निरस्त करें या कुछ भी कहें, लेकिन आपकी सरकार के नाकारापन का ख़ामियाज़ा तो ओबीसी वर्ग के नुक़सान के रूप में सामने आ ही चुका है। आपने जो ज़ख़्म दिये है, अब वो किसी भी दवा से ठीक होने वाले नहीं है। प्रदेश का ओबीसी वर्ग इस सच्चाई को जान चुका है, अब वो आपके किसी भी गुमराह करने वाले झाँसे में आने वाला नहीं है।

इस बीच सरकार पर राजनीतिक दबाव भी काफी बढ़ता जा रहा है। सरकार पर ओबीसी आरक्षण के पक्ष में मजबूत पैरवी न करने का आरोप लग रहा है। बहुजन समाज पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजी गौतम ने ओबीसी आरक्षण प्रक्रिया में सरकार की गलती बताई।

हालांकि यह भी एक तथ्य है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस बारे में ट्रिपल टेस्ट करने और रिपोर्ट सबमिट करने को कहा था लेकिन सरकार की ओर से जो रिपोर्ट सौंपी गई वह निकाय के अनुसार नहीं थी और कोर्ट ने इसे अर्थहीन बताया था। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि ओबीसी के पदों का आरक्षण निकायवार तय किया जाना चाहिए था लेकिन पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने ऐसा नहीं किया। ऐसे में साफ है कि आयोग ने तीन महीने की तय सीमा में लक्ष्य अनुसार काम नहीं किया है।

इसके अलग चुनाव आयोग द्वारा चुनाव करवाने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। प्रदेश के चुनाव आयुक्त बसंत प्रताप सिंह ने कहा है कि “हर हाल में नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव जून में ही कराए जाएंगे।  उन्होंने कहा कि “हम आज ही नगरीय निकाय चुनाव कराने के लिए तैयार हैं, 12 जून तक एक चुनाव कराया जाएगा। 30 जून तक दोनों चुनाव कराए जाएंगे। नगरीय निकाय चुनाव कराना आज की तारीख में आसान है।”

दरअसल ओबीसी को दरकिनार करना मध्यप्रदेश में आसान नहीं है। प्रदेश में करीब 48 प्रतिशत ओबीसी वोटर हैं। प्रदेश में पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक अगर कुल मतदाताओं में से अनुसूचित जाति-जनजाति को हटा दिया जाए तो यह प्रतिशत करीब 79 हो जाता है। ऐसे में ओबीसी वोटबैंक कितना महत्वपूर्ण है इसे समझना मुश्किल नहीं है। दोनों दल जानते हैं कि पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण दोनों दलों का शुरुआती टेस्ट होने वाला है। इसके बाद निकाय चुनाव और फिर विधानसभा और इसके बाद लोकसभा चुनाव।

 


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