मोहन यादव सरकार ने दिए पशु संजीवनी योजना पर जांच के आदेश, शिवराज सरकार के फैसलों पर उठे हैं सवाल


मध्य प्रदेश की पशु संजीवनी योजना अब जांच के घेरे में है। शिवराज सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना में एंबुलेंस खरीद और मॉडिफिकेशन को लेकर अनियमितताओं के आरोप लगे हैं। जानिए पूरी खबर।


DeshGaon
राजनीति Published On :

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, 12 मई 2023 को तत्कालीन शिवराज सरकार ने पशु संजीवनी योजना शुरू की थी। इस योजना का उद्देश्य राज्यभर में पशुओं के लिए डोर-टू-डोर इमरजेंसी स्वास्थ्य सेवाएं देना था। इसके तहत 65 करोड़ रुपये की लागत से 406 मोबाइल वेटरिनरी यूनिट (पशु एंबुलेंस) खरीदी गई थीं। अब, भाजपा की ही मोहन यादव सरकार इस योजना की जांच कराने जा रही है, क्योंकि इसमें भारी अनियमितताओं के आरोप सामने आ रहे हैं।

महंगे मॉडिफिकेशन और फिर बदलाव का फैसला

शिवराज सरकार ने इस योजना में महिंद्रा बोलेरो कैंपर गोल्ड पिकअप को मॉडिफाई कर पशु चिकित्सा एंबुलेंस में बदला था। इसमें दवा कैबिनेट, वॉशबेसिन और फ्रिज जैसी सुविधाएं जोड़ी गई थीं। जहां एक बोलेरो वाहन की कीमत 10 लाख रुपये थी, वहीं इन सुविधाओं को जोड़ने के बाद हर एंबुलेंस की कीमत 16 लाख रुपये हो गई।

लेकिन कुछ ही महीनों में यह सामने आया कि इन भारी उपकरणों की वजह से एंबुलेंस का संतुलन बिगड़ रहा था, जिससे दुर्घटनाएं हो रही थीं। कई जगहों से शिकायतें आईं कि गाड़ियां पलट रही हैं, जिससे जान-माल का नुकसान हो रहा है। इसके बाद सरकार को इन एंबुलेंस से कैबिनेट, वॉशबेसिन और फ्रिज हटाने का फैसला लेना पड़ा। यानी पहले भारी लागत से इन्हें खरीदा गया और फिर इन्हें साधारण वाहन में बदलने के आदेश जारी कर दिए गए।

सेवा देने से पहले ही खराब हो गईं एंबुलेंस

पशु संजीवनी योजना के तहत, इन मोबाइल वेटरिनरी यूनिट्स को 1962 टोल-फ्री नंबर के जरिए पशुपालकों को सेवा देने के लिए तैनात किया गया था। हर विकासखंड में कम से कम एक एंबुलेंस और बड़े ब्लॉकों में दो एंबुलेंस भेजी गईं। वहीं, 55 जिलों के मुख्यालयों में भी एक-एक एंबुलेंस तैनात की गई थी।

लेकिन मौजूदा हालात ये हैं कि राज्य के कई जिलों में ये एंबुलेंस अब बेकार खड़ी हैं या खराब हो चुकी हैं। इसके चलते पशुपालकों को योजना का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है।

सरकार ने दिए जांच के आदेश

राज्य के पशुपालन मंत्री लखन पटेल ने इस पूरे मामले पर कहा कि इस योजना के तहत इन एंबुलेंस को खरीदने की जरूरत ही नहीं थी। अब सरकार मामले की जांच कराएगी और तय करेगी कि इन वाहनों का भविष्य क्या होगा।

क्या होगी जांच में कार्रवाई?

मोहन यादव सरकार के इस फैसले से स्पष्ट है कि शिवराज सरकार के फैसलों पर अब सवाल उठ रहे हैं। अगर जांच में कोई गड़बड़ी सामने आती है, तो जिम्मेदार अधिकारियों या ठेकेदारों पर कार्रवाई हो सकती है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस योजना में खर्च हुए 65 करोड़ रुपये का कोई उपयोग होगा या यह पूरी योजना असफल हो जाएगी?

अब देखने वाली बात होगी कि जांच के नतीजे क्या आते हैं और सरकार इस मामले में क्या एक्शन लेती है।



Related