इंदौर। विधानसभा चुनाव कुछ ही दूरी पर है और पिछले काफी समय से महू शहर में खामोश चल रही भाजपा की अंदरूनी राजनीति अचानक एक बार फिर सक्रिय होती नजर आ रही है। इसकी वजह यहां के पूर्व विधायक और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के महू के दौरों को बताया जा रहा है।
पिछले कुछ दिनों में विजयवर्गीय कई बार महू आ चुके हैं। हालांकि उनके यह दौरे पूरी तरह निजी रहे लेकिन उनके पुराने समर्थक और दूसरे भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।
कैलाश विजयवर्गीय सोमवार शाम महू पहुंचे। यहां भी अपने समर्थक के घर शोक संवेदना प्रकट करने के लिए पहुंचे थे। उनके दौरे की खबर उनके समर्थकों को जैसे ही लगी वे बड़ी संख्या में एकत्रित होना शुरू हो गए।
शाम को इंदौर के लिए वापस लौटते हुए उन्होंने शहर के एक कार्यक्रम में भाग भी लिया। हालांकि यह कोई औपचारिक कार्यक्रम नहीं था, लेकिन विजयवर्गीय के समर्थकों ने उन्हें मान-मनौव्वल करते रोक लिया और वे भी फिर कार्यक्रम में शामिल हुए।
कैलाश विजयवर्गीय ने यहां महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की जयंती के मौके पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके बाद पत्रकारों ने उनसे कई सवाल किए, लेकिन वे उन्हें टालने वाले अंदाज में नजर आए।
जब उनसे पूछा गया कि उनके कार्यकाल में बेहद सक्रिय रहने वाली महू भाजपा इन दिनों इतनी ठंडी क्यों नजर आ रही है तो वे मुस्कुराकर इस सवाल को टाल गए। हालांकि, विजयवर्गीय का यह अंदाज काफी कुछ कह गया।
विजयवर्गीय के महू दौरे के दौरान काफी संख्या में उनके समर्थक इकट्ठा हो गए और सभी में उनसे मिलने की होड़ लगी हुई थी। कोई उनसे शिष्टाचार भेंट करता नजर आ रहा था तो कोई उन्हें अपनी परेशानियां बता रहा था। कुछेक ने महू से फिर चुनाव लड़ने की भी मनुहार की। हालांकि विजयवर्गीय यहां भी मुस्कुराकर आगे बढ़ गए।
इस भीड़ में आने वाले नेता भी खास थे। यहां छावनी परिषद के पूर्व पार्षद पहुंचे थे तो मानपुर और सिमरोल के भी नेता उनसे मिलने आए। इनमें कैलाश के कार्यकाल के दौरान महू में पार्टी के नगर अध्यक्ष रहे करण सिंह ठाकुर, मानपुर में नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष रवि यादव, पिछले दिनों पार्टी के स्थानीय नेताओं से नाराज होकर पार्टी छोड़ने की धमकी देने वाले गवली पलासिया के पूर्व सरपंच गणेश सहगल भी थे। हालांकि, कई भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय के महू दौरे से दूरी बनाकर ही रखी।
भाजपा नेताओं से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, बहुत से भाजपा नेताओं का मानना है कि शायद कई मौजूदा नेताओं को विजयवर्गीय की महू में यह सामान्य सक्रियता भी ज्यादा पसंद नहीं आ रही है। हालांकि विजयवर्गीय के ये दौरे उन नेताओं को काफी रास आ रहे हैं जो उनके महू से जाने के बाद से सार्वजनिक राजनीति से दूर हो गए हैं।
विजयवर्गीय के दौरे भले ही निजी रहे हों लेकिन इससे लोग कई तरह के कयास लगा रहे हैं और विजयवर्गीय के लगातार बढ़ रहे राजनीतिक कद और प्रदेश भाजपा में बदल रहे राजनीतिक परिदृश्य के मुताबिक यह कोई बहुत असामान्य बात नहीं कही जानी चाहिए।
फ्लैश बैक…
महू विधायक रहते हुए विजयवर्गीय क्षेत्र में काफी सक्रिय थे और उनके अपने कार्यकर्ताओं से बेहद नजदीकी संबंध होते थे जो आज भी हैं। ऐसे में उनके इर्द-गिर्द बड़ी भीड़ जुटना कोई बहुत नई बात नहीं लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में महू से जाने के बाद वे बहुत ही कम बार महू आए। इसकी वजह स्थानीय विधायक को बताया जाता है।
दरअसल विजयवर्गीय ने पिछले चुनावों में अपने बेटे आकाश विजयवर्गीय के लिए इंदौर की उसी सीट से टिकट मांगा था जहां से उषा ठाकुर विधायक थीं। ठाकुर अपनी सीट छोड़ना नहीं चाहती थीं लेकिन उन्हें ऐसा करना पड़ा।
इसके बाद जब वे महू आईं तो शुरुआत में उन्हें परिस्थितियां अनुकूल नहीं लगीं और उन्होंने विजयवर्गीय को लेकर एक बयान दिया जिसका वीडियो वायरल हो गया। इस वीडियो में उषा ठाकुर ने विजयवर्गीय पर कुछ आरोप लगाए थे जिसके बाद दोनों के संबंधों में आई खटास सार्वजनिक हो गई और फिर दोनों नेता एक-दूसरे से लगभग दूर ही रहे।
नहीं दिया विकास का श्रेय!
कैलाश विजयवर्गीय के कार्यकाल में महू क्षेत्र में काफी विकास कार्य हुए जिसके कारण उन्हें यहां काफी पसंद भी किया जाता है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के कुछ स्थानीय नेताओं के ही मुताबिक विजयवर्गीय को महू से दूर रखने का भी प्रयास किया गया।
पिछले दिनों जब प्रदेश सरकार ने आदिवासी अस्मिता के नायक टंट्या भील की जयंती पर पातालपानी में बड़ा कार्यक्रम किया था तो विजयवर्गीय को ख़ास तवज्जो नहीं दी गई थी जबकि विजयवर्गीय ने ही पातालपानी में सबसे अधिक विकास कार्य करवाए थे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उस समय मंच से लंबा भाषण दिया लेकिन उसमें कैलाश का नाम कहीं नहीं था।
पुराने भाजपाई नेताओं के मुताबिक यह हो सकता है कि ऐसा जानबूझकर न किया गया हो लेकिन पातालपानी की दशा सुधारने के लिए विजयवर्गीय को श्रेय दिया जाना जरूरी था और ऐसा करना पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की नैतिक ईमानदारी भी दर्शाता।