पार्टी छोड़ने के महीनेभर बाद भी क्षेत्र में नहीं पहुंचे पूर्व विधायक, यहां भाजपा सर्मथक ही छेड़े हैं दलबदल का मुद्दा


दमोह विधानसभा के उपचुनाव स्थानीय राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। यहां जयंत मलैया विधायक रहे हैं और अब उनके सर्मथकों की पुरजोर कोशिश है कि मलैया एक बार फिर चुने जाएं। सर्मथकों के मुताबिक मलैया का विकल्प उनके पुत्र सिद्धार्थ ही हो सकते हैं।


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दमोह विधायक रहे राहुल सिंह लोधी ने भाजपा की सदस्यता ली।-- फाईल फोटो


भोपाल। उपचुनाव भले ही खत्म हो गए हों लेकिन प्रदेश से दलबदल का मुद्दा अब तक खत्म नहीं हुआ है। दमोह सीट पर अभी भी उपचुनाव होने हैं और यहां दलबदल का यह मुद्दा गर्म है। यहां दलबदल के मुद्दे को कांग्रेस से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी के सर्मथक हवा दे रहे हैं।

राहुल सिंह लोधी, पूर्व विधायक, दमोह

दमोह सीट पर राहुल सिंह लोधी कांग्रेस से जीते थे। उन्होंने उपचुनाव में वोटिंग से कुछ ही समय पहले अपना इस्तीफा दे दिया था। बताया जाता है कि राहुल सिंह लोधी अब तक दमोह लौटकर नहीं आए हैं और न ही किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल होते दिखाई दिये हैं।

दमोह विधानसभा सीट पर उपचुनाव की सुगबुगाहट फिर शुरु हो गई है। सिंधिया के साथ और इसके बाद विधायकी से इस्तीफा देने वाले सभी नेताओं के लिए भारतीय जनता पार्टी ने फिर टिकिट दिया था। राहुल सिंह लोधी के मामले में ऐसा होता है या नहीं, यह कहना फिलहाल मुश्किल नज़र आता है।

जयंत मलैया, पूर्व वित्त मंत्री

पूर्व मंत्री और दमोह से लंबे समय तक विधायक रहे जयंत मलैया के सर्मथक उन्हें या उनके बेटे सिद्धार्थ को दमोह के विधायक के रुप में देखना चाहते हैं। इसके लिए बाजारों से लेकर सोशल मीडिया पर सर्मथक अपने विचार रख रहे हैं। मलैया के सर्मथक साफ तौर पर राहुल सिंह लोधी को दलबदलू और गद्दार जैसी संज्ञा दे रहे हैं। ऐसे में राहुल सिंह के खिलाफ एक अच्छा खासा माहौल बन रहा है और अपने निर्णय के बारे में बताने के लिए, अपना पक्ष रखने के लिए राहुल लोगों के बीच मौजूद भी नहीं हैं।

सिद्धार्थ मलैया

यह माहौल जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ मलैया के पक्ष में भी जा सकता है। सिद्धार्थ एक उच्चशिक्षित युवा हैं। वे अपने पिता के साथ पिछले डेढ़ दो दशकों स्थानीय राजनीति में सक्रिय हैं। ऐसे में सिद्धार्थ को भी संगठन में अच्छा खासा अनुभव हो चुका है। वहीं राहुल के पक्ष में उनका भाजपा के साथ आना तो था ही इसके अलावा वे केंद्रीय मंत्री और दमोह से सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल के करीबी भी मानें जाते हैं। प्रह्लाद पटेल इन दिनों दमोह की राजनीति का केंद्र बने हुए हैं।

राहुल सिंह लोधी से पहले उनके चचेरे भाई और बड़ा मलहरा से विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी ने भी भाजपा के सर्मथन में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था और बाद में वे कांग्रेस की राम सिया भारती से चुनाव जीत भी गए। हालांकि इससे पहले ही उन्हें शिवराज सरकार में मंत्री का दर्जा भी मिल गया था।

इसलिए गर्माया है दलबदल मुद्दा…

उपचुनाव के बाद ज्यादातर पूर्व कांग्रेसी अब पूरी तरह भाजपा के भगवा रंग में रंगे नजर आ रहे हैं तो वहीं राहुल सिंह भाजपा में आकर भी पूरी तरह भाजपाई नहीं बन पा रहे हैं। शपथ लेने के बाद से अब तक वे भाजपा के किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए हैं। राहुल द्वारा इस्तीफा देकर भाजपा  में जाने  की अकटलें पहले भी थीं लेकिन फिर भी उनके जाने पर लोगों को काफी अचरज हुआ। इस अचरज की वजह राहुल सिंह  के वे दावे थे जो उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में किये थे। राहुल ने कहा था कि वे कांग्रेस कभी नहीं छोड़ेंगे क्योंकि कमलनाथ ने उन्हें चुना था और वे गद्दारी नहीं कर सकते। इसके बाद जब राहुल सिंह भाजपा में शामिल हुए तो उन्होंने कहा कि वे भाजपा की रीति-नीति से प्रभावित होकर  पार्टी में आए हैं।



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