दमोह उपचुनावः भाजपा और सरकार की ये नीतियां बनीं कांग्रेस की सफलता की वजह


कोरोना को लेकर जनता की चिंता नहीं खुद राज्य सरकार ही नहीं क रही थी। ज़ाहिर है इससे जनता में सरकार की नीतियों के प्रति नाराजगी थी। 



दमोह। उपचुनाव की गणना जारी है और अब तक कांग्रेस को काफी बड़ी लीड मिल चुकी है जो दमोह विधानसभा का भविष्य काफी हद तक तय भी कर चुकी है। हालांकि आख़िरी परिणाम आने तक कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी।

कांग्रेस को अब तक मिली बढ़त काफ़ी कुछ कहती है। ये पार्टी की एकजुटता और जनता की ताकत की कहानी भी कहती है। राहुल सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद से ही यह चुनाव जनता पर थोपा गया था, यह विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस के लिए बेहद कठिन माना जा रहा था लेकिन पार्टी सफल हुई। इस सफलता में ज्यादा बड़ा हाथ भाजपा की नीतियों का ही मानना चाहिए।

कोरोना वायरस के कारण जन्मे हालात पर जब पूरे प्रदेश में जब कर्फ्यू लागू किया गया था तब दमोह को इससे अलग रखा गया। यह निर्णय पूरे प्रदेश के लिए हतप्रभ करने वाला था। एक ओर से लोगों को जान का खतरा बताकर घर के अंदर रखा गया और दूसरी ओर खुद मुख्यमंत्री चुनाव प्रचार में मजमा लगाते नज़र आए। चुनावों की ये तस्वीरें पूरे प्रदेश में छायी रहीं जिनका ख़ूब मज़ाक उड़ाया गया।

इसके अलावा चुनाव में पूरी प्रदेश सरकार के मंत्री और भाजपा से जुड़े ताकतवर लोग राहुल सिंह लोधी के पक्ष में आ गए। उस समय कई रैलियां और चुनाव प्रचार जारी रहे। कोरोना के कारण जहां प्रदेशभर से डराने वाली खबरें आ रहीं थीं तो वहीं दमोह में हालात सामान्य बताए जाते रहे।

इसका सीधा सा मतलब था कि कोरोना को लेकर जनता की चिंता नहीं खुद राज्य सरकार ही नहीं क रही थी। ज़ाहिर है इससे जनता में सरकार की नीतियों के प्रति नाराजगी थी।

मतदान से ठीक एक दिन पहले दमोह के श्याम नगर में एक बड़ा ड्रामा हुआ। जहां कांग्रेसियों ने एक गाड़ी में बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की शिकायत की। इस दौरान प्रशासन और पुलिस के अधिकारी आए भी लेकिन कार्रवाई नहीं की बल्कि वह संदिग्ध गाड़ी मौके से निकाल दी गई।

यह गाड़ी मंत्री भूपेंद्र सिंह के अहम सहयोगी की थी। इस बारे में विरोध करने पर कांग्रेसियों के खिलाफ़ पुलिस ने केस दर्ज कर लिया। इस मामले में शहर कांग्रेस के अध्यक्ष अब तक जेल में हैं और कांग्रेस के कई नेता फरार हैं।

इन दो मामलों ने जनता के मन पर भाजपा के नेताओं और नीतियों को लेकर एक बड़ी नाराज़गी चस्पा कर दी। यह नाराज़गी नुकसानदेह साबित हुई।

अब कांग्रेस की उपलब्धियों की बात करें तो इस बार कांग्रेस ने चुनाव कई मुद्दों पर लड़ा। इनमें सबसे अहम था दल-बदल का मुद्दा। राहुल सिंह लोधी जब कांग्रेस में थे तो एक साक्षात्कार में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए अपनी प्रतिबद्धता साबित करने की कोशिश में काफ़ी बयानबाज़ी कर बैठे थे।

इसके बाद जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी तो यही बयानबाज़ी उनके खिलाफ़ जाती रही। कांग्रेस ने उन्हें गद्दार कहकर पुकारा और उनके पुराने वीडियो जनता में खूब वायरल किये। लिहाज़ा कांग्रेस पार्टी राहुल सिंह की दल-बदलू की छवि बनाने में कामयाब रही।

इस चुनाव में प्रदेश कांग्रेस के सभी नेताओं ने ध्यान दिया। कांग्रेसी नेता लगातार यहां बने रहे। कमलनाथ ने भी सभाएं कीं। हालांकि उनकी सभाएं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से काफ़ी कम थीं।

इसके अलावा स्थानीय कांग्रेसी भी पूरी एकजुटता के साथ मैदान में थे। पहली बार ऐसा हुआ था कि कांग्रेस में आपसी टूट नज़र नहीं आ रही थी। प्रत्याशी के चयन से लेकर घोषणा और बाद में चुनाव प्रचार इस बार कांग्रेसियों ने सब मिलकर किया।

कांग्रेसी प्रत्याशी को इस बार पूर्व मंत्री जयंत मलैया की नाराज़गी का भी लाभ मिला है। हालांकि बाद में मलैया मान गए थे लेकिन उनके सर्मथकों ने शायद राहुल सिंह को अपना नेता नहीं माना और यही वजह रही कि राहुल सिंह लोधी इतनी बड़ी संख्या में पिछड़ते नज़र आ रहे हैं।

दरअसल इस पूरे टिकिट वितरण कार्यक्रम में मलैया परिवार की पूरी तरह अनदेखी की गई। जयंत मलैया को बिना बताए ही उनके सामने मुख्यमंत्री ने राहुल सिंह को प्रत्याशी घोषित कर दिया। इसके बाद मलैया और उनके पुत्र सिद्धार्थ नाराज़ रहे, हालांकि दोनों बाद में मान गए और प्रचार में जुट भी गए।

बताया जाता है कि दमोह में राहुल सिंह लोधी को दोबारा लाना मलैया परिवार का वर्चस्व खत्म करने की एक साज़िश थी। बताया जाता है कि इसके सूत्रधार भाजपा से जुड़े नेता ही थे। यह बात भी मतदाताओं पर असर कर गई और भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ा।



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