
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार होने के बावजूद उज्जैन, आलोट विधायक चिंतामणि मालवीय का अपनी ही सरकार पर सवाल उठाना उन्हें भारी पड़ गया। विधानसभा के बजट सत्र के दौरान उज्जैन सिंहस्थ क्षेत्र में किसानों की जमीन के स्थायी अधिग्रहण का मुद्दा उठाने के बाद भाजपा नेतृत्व ने मालवीय को कारण बताओ (शो-कॉज) नोटिस जारी कर दिया है। पार्टी ने उनसे 7 दिन के भीतर जवाब देने को कहा है, अन्यथा उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।
मालवीय का बयान जिसने बढ़ाया विवाद
विधानसभा में बजट सत्र के दौरान विधायक चिंतामणि मालवीय ने उज्जैन सिंहस्थ-2028 की तैयारियों के तहत किसानों की भूमि के स्थायी अधिग्रहण को लेकर सरकार पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था,
“मुख्यमंत्री जी, मैं आपको धन्यवाद देता हूं कि आपने सिंहस्थ के लिए 2 हजार करोड़ रुपए की राशि दी है। उज्जैन को गर्व है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री यहीं से हैं। लेकिन उज्जैन के किसान डरे हुए हैं। सिंहस्थ के नाम पर पहले किसानों की जमीन 3 से 6 महीने के लिए ली जाती थी, लेकिन अब उन्हें स्थायी अधिग्रहण का नोटिस दिया गया है।”
मालवीय ने सवाल उठाते हुए कहा कि “पता नहीं किस अधिकारी ने यह विचार रखा कि हम उज्जैन को ‘स्प्रिचुअल सिटी’ (आध्यात्मिक नगरी) बनाएंगे। आध्यात्मिकता किसी शहर से नहीं, बल्कि त्याग और साधना से आती है। सिर्फ कांक्रीट के भवन बना देने से कोई जगह आध्यात्मिक नहीं बन जाती।”
विधायक का यह बयान सीधे प्रदेश सरकार और प्रशासन की मंशा पर सवाल उठाने वाला था, जिससे भाजपा संगठन नाराज हो गया।
सरकार और पार्टी को बैकफुट पर धकेला
मालवीय के बयान के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई। सिंहस्थ-2028 को लेकर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पहले से ही विवादों में थी। विधायक के इस बयान ने आग में घी डालने का काम किया और किसानों के बीच असंतोष और बढ़ गया।
इस मुद्दे को विपक्ष ने भी लपक लिया और भाजपा सरकार को किसान विरोधी करार दिया। कांग्रेस नेता महेश परमार ने कहा,
“मालवीय जी ने सही मुद्दा उठाया है। भाजपा सरकार उज्जैन के किसानों की अनदेखी कर रही है। लेकिन अब खुद भाजपा के विधायक भी सरकार के फैसलों का विरोध कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि भाजपा में अंदरूनी कलह बढ़ रही है।”
दिल्ली तक पहुंची गूंज, केंद्रीय नेतृत्व की सख्ती
विधायक के इस बयान की गूंज भोपाल से दिल्ली तक पहुंच गई। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने इसे गंभीरता से लिया और पार्टी अनुशासन के उल्लंघन के रूप में देखा। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के शीर्ष नेताओं को लगा कि इससे सरकार की छवि और पार्टी की एकता पर असर पड़ सकता है।
इसके बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के निर्देश पर मालवीय को कारण बताओ नोटिस भेजा गया।
नोटिस में क्या?
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा द्वारा जारी नोटिस में लिखा गया है कि,
“आपके हालिया बयान और कार्यों से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा है। यह संगठन के अनुशासन के खिलाफ है। आपको 7 दिन के भीतर इस पर स्पष्टीकरण देना होगा। संतोषजनक जवाब न मिलने पर आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।”
मालवीय का पक्ष – “मैंने किसानों की आवाज उठाई”
भाजपा के इस नोटिस के बाद विधायक चिंतामणि मालवीय ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उन्होंने किसानों के हित की बात की है, न कि सरकार के खिलाफ कोई षड्यंत्र रचा।
उन्होंने कहा,
“मैं पार्टी का वफादार सिपाही हूं, लेकिन मेरी प्राथमिकता मेरे क्षेत्र के लोग हैं। अगर मेरी सरकार किसानों के खिलाफ कोई गलत फैसला लेगी, तो मैं चुप नहीं बैठूंगा। सिंहस्थ के लिए पहले जमीन अस्थायी तौर पर ली जाती थी, लेकिन अब स्थायी अधिग्रहण का नोटिस दिया जा रहा है, जिससे किसान डरे हुए हैं।”
पहले भी विवादों में रहे हैं चिंतामणि मालवीय
यह पहला मौका नहीं है जब चिंतामणि मालवीय अपनी ही पार्टी के लिए परेशानी का सबब बने हैं। 2018 में दीपावली के पटाखों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर उन्होंने विवादित बयान दिया था। तब उन्होंने कहा था,
“मैं अपनी दीवाली परंपरागत तरीके से मनाऊंगा और रात 10 बजे के बाद भी पटाखे जलाऊंगा।”
यह बयान भी पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा कर चुका था। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, मालवीय का स्वभाव बेबाक और विद्रोही रहा है, जिससे कई वरिष्ठ नेता नाराज रहते हैं।
भाजपा संगठन की रणनीति – आगे क्या होगा?
भाजपा के लिए यह मामला आंतरिक असंतोष और अनुशासन से जुड़ा हुआ है। पार्टी के वरिष्ठ नेता नहीं चाहते कि कोई विधायक सरकार के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बोले।
अगर मालवीय संतोषजनक जवाब नहीं देते, तो पार्टी उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकती है। इसमें
1. निलंबन या निष्कासन
2. टिकट काटने की चेतावनी
3. भविष्य में किसी पद से दूर रखने का फैसला शामिल हो सकता है।
विपक्ष ने कसा तंज – “भाजपा में घमासान”
कांग्रेस ने इस पूरे मामले पर भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि “यह भाजपा के अंदर बढ़ते असंतोष का संकेत है।”
कांग्रेस विधायक महेश परमार ने कहा,
“अगर भाजपा अपने ही विधायकों की बात सुनने को तैयार नहीं है, तो किसानों की क्या सुनेगी? मालवीय जी ने हिम्मत दिखाई, लेकिन उनकी पार्टी अब उन्हें चुप कराना चाहती है।”
आगे क्या!
इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि भाजपा अपने ही विधायकों के बयानों से असहज महसूस कर रही है। एक तरफ सरकार सिंहस्थ को भव्य बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण पर जोर दे रही है, तो दूसरी तरफ स्थानीय विधायक किसानों की परेशानी उठा रहे हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मालवीय इस नोटिस का क्या जवाब देते हैं और भाजपा संगठन इस पर क्या कदम उठाता है।
क्या भाजपा उन्हें अनुशासित कर पाएगी, या यह विवाद पार्टी के लिए और सिरदर्द बनेगा? यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।