भोपाल से इंदौर तक चल रहे प्रतिशोध के सरकारी बुलडोज़र लिखेंगे प्रदेश का सियासी भविष्य


राजनीतिक गलियारों से आने वाली खबरें बताती हैं कि अब इस तरह की और भी कार्रवाईयां होने को हैं


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भोपाल। मध्य प्रदेश के उपचुनाव ऐतिहासिक रहे, हालांकि ऐतिहासिक वह भी था जब कांग्रेस की सरकार को उसी के विधायकों ने छोड़ दिया और भाजपा को समर्थन देकर सरकार गिरा दी। इसके बाद हुए उपचुनावों के परिणाम अब आने वाले हैं। यह परिणाम मध्य प्रदेश की राजनीतिक दिशा को तय करने वाले होंगे, जिसकी छवि हमें पिछले दिनों विधायक आरिफ़ मसूद और कंप्यूटर बाबा जैसे कांग्रेस के करीबी लोगों पर हो रही कार्रवाईयों में नजर भी आ रही हैं।

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इस नई राजनीतिक दिशा की ओर प्रदेश करीब साल भर पहले ही चल पड़ा था, जब कमलनाथ सरकार ने उन अपराधियों पर कार्रवाई शुरू की थी जो अब तक चैन से जी रहे थे। कमलनाथ सरकार के तौर-तरीकों से न केवल भाजपाई नाराज हुए बल्कि कांग्रेसी नेताओं को भी ये कुछ खास रास नहीं आए। रही-सही कसर कांग्रेसी मंत्रियों ने पूरी कर दी, जिनसे कार्यकर्ताओं को काफी उम्मीदें थीं।

आज से आठ महीने पीछे जाएं और सरकार गिराए जाने से पहले और अब के घटनाक्रम को देखें तो इस नई तरह की राजनीति के उदय को समझना आसान हो जाएगा। संभव है यह दौर देश के सबसे शांत प्रदेशों में गिने जाने वाले मध्यप्रदेश में बदले की राजनीति की शुरुआत हो।

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कमलनाथ सरकार गिराए जाने की सुगबुगाहट फरवरी के आखिरी दिनों में शुरू हो चुकी थी। मार्च की शुरुआत में लगभग तय हो चुका था कि सरकार ज्यादा दिन की नहीं बची है। अपने आखिरी दिनों में इसी सरकार ने कटनी जिले से विधायक संजय पाठक के बांधवगढ़ के रिसोर्ट के एक हिस्से को बुलडोजर से गिरा दिया था। पाठक पर आरोप था कि उन्होंने 2 एकड़ की जमीन पर अतिक्रमण कर रखा है।

इससे पहले पाठक की आयरन की खदानें सील कर दी गई थीं, हालांकि इन सब से ज्यादा बड़ा आरोप उन पर यह था कि वे भाजपा की उस टीम में शामिल थे जिन्होंने ऑपरेशन लोटस यानि कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने में सफलता हासिल की थी।

कमलनाथ सरकार ने जाते-जाते उन्हें सबसे बड़ा आघात देने वाले ज्योतिराज सिंधिया पर भी कार्रवाई की थी और उनके खिलाफ बरसों से दबे सरकारी जमीनों पर कब्जे के मामले थाने तक पहुंच गए थे। उस दौरान ऑपरेशन लोटस के सूत्रधार बताए गए नरोत्तम मिश्रा पर भी सरकार ने कार्रवाई करने की कोशिश की और उनकी खरीदी गई जमीनों पर दोबारा जांच शुरू कर दी गई। इसके साथ ही पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह की संपत्तियों की भी जांच की गई और भोपाल से विधायक विश्वास सारंग भी निशाने पर रहे।

अपने शुरुआती कार्यकाल में कमलनाथ सरकार ने जनता से किए अपने कई पुराने वादे नहीं निभाए। इन वादों में सबसे अहम था भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में हुई अनियमितताओं पर कार्रवाई करना। इनमें व्यापम घोटाला, ई-टेंडर घोटाला और तमाम छोटी बड़ी अनियमितताएं शामिल थीं। बताया जाता है कि कांग्रेस की इसी देरी ने उसके कार्यकर्ताओं को निराश किया तो भारतीय जनता पार्टी को यह सब कर गुजरने का मौका दे दिया।

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अब बारी भारतीय जनता पार्टी की है, जिन्होंने सबसे पहले कांग्रेस के करीबी संत कंप्यूटर बाबा का बेशकीमती अतिक्रमण तोड़ दिया है और जमीन अपने कब्जे में ले ली है। इससे कुछ ही घंटों पहले प्रशासन ने इंदौर के राऊ से विधायक जीतू पटवारी के भाइयों पर कार्रवाई की है।

राजनीतिक गलियारों से आने वाली खबरें बताती हैं कि अब इस तरह की और भी कार्रवाईयां होने को हैं।


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