इंदौर। पंचायत चुनावों को लेकर ग्रामीण इलाकों में खासी गहमा-गहमी बनी हुई है। कुछ दिनों पहले तक जहां गांवों में माहौल ठंडा था तो अब वहीं उम्मीदवार सक्रिय हो चुके हैं और वोट के लिए घर-घर घूमते नजर आ रहे हैं। वहीं कुछ इलाकों में प्रत्याशियों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी है ऐसे में वहां मज़बूत प्रत्याशियों के लिए भी चुनाव कठिन साबित हो रहा है और यही वजह है कि यहां रात-दिन प्रचार हो रहा है। कई इलाकों में तो लोग ही इस प्रचार से परेशान हो गए हैं।
तहसील के सबसे बड़े गांवों में शामिल दतौदा में सुबह आठ बजे से ही सरपंच प्रत्याशियों वोट मांगने के लिए लोगों के घरों में पहुंच रहे हैं। ग्रामीणों के मुताबिक सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक केवल चुनाव की ही चर्चा हो रही है। करीब आठ हजार की आबादी वाले इस गांव में सरपंच पद के लिए पंद्रह प्रत्याशी हैं। यहां एक प्रत्याशी ने तो जेल से अपना नामांकन भरा है।
यहां के एक प्रतिष्ठित नागरिक ने बताया कि सरपंच बनने की चाह रखने वाले ज्यादातर प्रत्याशी उनकी जानपहचान वाले हैं और सभी चाहते हैं वे उन्हें वोट दें और इसलिए दिन में सभी का तांता लगा रहता है। ये सज्जन कहते हैं कि जब सरपंच उम्मीदवार नहीं आते तब सरपंच प्रतिनिधि बनने की चाह रखने वाले उनके सर्मथक आ जाते हैं।
इसी गांव में ऐसे ही परेशान एक सज्जन बताते हैं कि सरपंच चुनावों में नेताओं की विधानसभा चुनावों से भी ज्यादा सक्रियता दिखाई दे रही है और यह सक्रियता लोगों पर भारी पड़ रही है। ये सज्जन हंसते हुए बताते हैं कि दिन भर में कम से कम दस से पंद्रह बार चाय बनानी पड़ती है। ऐसे में शक्कर, चाय पत्ती और दूध का खर्च बढ़ गया है। गांव के नेताओं में सरपंची के इस ख़ुमार से घर की महिलाएं परेशान हैं जिन्हें उमस भरी गर्मी में रसोई से बाहर आने की फुर्सत भी नहीं है।
पिछले दिनों दतौदा में एक जातिगत झगड़े के बाद चुनावों की स्थिति कुछ बदली है। ऐसे में यहां जातिगत वोटों के लिए कड़ा मुकाबला होना है। कुछ ऐसा ही हाल सांतेर पंचायत में भी बताया जाता है यहां भाजपा के सर्मथन का दावा करने वाले कई प्रत्याशी हैं। यहां कुल 11 प्रत्याशियों ने फार्म भरा है। इस बीच पुराने सरपंच की पत्नी भी मैदान में हैं। मानपुर और सिमरोल क्षेत्र की पंचायतों में भी ऐसी स्थिति देखी जा रही है। जनपद क्षेत्र की सिलोटिया पंचायत में सबसे कम केवल दो लोगों को सरपंच बनने की ख़्वाहिश है।
जनपद क्षेत्र की बात करें तो पंचायत चुनावों के लिए सरपंच पद के लिए कुल 435 दावेदार मैदान में हैं। इनमें 222 पुरुष तथा 213 महिला उम्मीदवार हैं। 10 जून को नाम वापसी के अंतिम तारीख है सरपंच पद के लिए हरनियाखेड़ी पंचायत में सबसे ज्यादा 22 दावेदारों ने अपने आवेदन जमा कराए हैं।
ग्रामीण क्षेत्र की राजनीति पंचायत चुनाव को लेकर तेज हो गई है हालांकि इन चुनावों में किसी भी राजनीतिक पार्टी का चुनाव चिन्ह उम्मीदवारों को नहीं मिलेगा। इसके बावजूद नेताओं ने अपने-अपने समर्थकों को मैदान में उतार दिया है। जानकारी के अनुसार 78 पंचायतों में से 76 पंचायतों में चुनाव होना है। इसके लिए तहसील कार्यालय में प्रत्याशियों और उनके सर्मथकों की भीड़ लगी हुई है।
इन पंचायतों में दस से अधिक प्रत्याशीः हरनियाखेड़ी में 10, सांतेर में 11, हरसोला और टीही में 10-10, दतौदा में 15 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनके अलावा ज्यादातर पंचायतों में तीन और आठ के बीच में सरपंच प्रत्याशी हैं।
जनपद महू की बड़ी आबाजी वाली पंचायतों में पिगडंबर में 4385 मतदाता, गवलीपलासिया में 6207 मतदाता, कोदरिया में 12621 मतदाता, गूजरखेड़ा में 6141 मतदाता, हरसोला में 6357 मतदाता, दतौदा में 8504, सिमरोल 6387 मतदाता हैं वहीं सबसे कम मतदाताओं के मामले में चोरड़िया में 686 मतदाता, गोकल्याकुंड में 1083 मतदाता हैं।
शहरी जनता भले ही सरपंच पद को अपने सांसदों, विधायकों या पार्षदों से कमतर जानती हो लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में कहानी ऐसी नहीं होती। महू की ही बात करें तो कम ही पंचायतें ऐसी हैं जहां के पूर्व हो चुके सरपंच दोबारा प्रधान बनने की इच्छा न पाल रहे हों। ज्यादातर पूर्व सरपंचों ने खुद या अपनी पत्नी के माध्यम से नामांकन न जमा किया हो।
सरपंच पद का नामांकन भर चुके एक उम्मीदवार कहते हैं कि यह पद ही ऐसा है कि बार आप सरपंच बन गए तो इसके बिना रहना मुश्किल होता है और वोट भले ही हाथ जोड़कर मांगना पड़े लेकिन इसके बाद का जीवन बदला हुआ होता है। एक प्रत्याशी की यही बात पंचायत चुनाव का सार समझ आती है।