सिनेमाई पर्दे पर एक शानदार कहानी आपके सामने आने को है। कहानी गंगूबाई काठियावाड़ी की। फिल्म संजय लीला भंसाली की है और गंगूबाई बनकर आ रही हैं आलिया भट्ट। बीते चार दिनों में ही इस फिल्म के ट्रेलर को करीब ढाई करोड़ लोग देख चुके हैं।
गंगू बाई जो एक वेश्यालय चलाती थीं और जिन्हें मुंबई की माफिया क्वीन्स की संज्ञा दी गई। पहले खोजी पत्रकार रहे और फिर बाद में लेखक हो गए एस हुसैन जैदी और उनके सहयोगी जेन बोर्गस ने गंगूबाई पर लिखी अपनी किताब का शीर्षक यही दिया था।
साल 2011 में आई यह किताब ‘माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई’ गंगूबाई की कहानी कहती है, जिसमें प्रेम और नादानी है, बेबसी है, साहस है और अक़्लमंदी और नेकनीयत भी।
आगे पढ़िये और जानिये कैसे इस महिला ने एक बार देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी कह दिया था साहब सलाह देना आसान है अमल करना मुश्किल।
गुजरात के काठियावाड़ की रहने वाली गंगूबाई। गंगूबाई का असली नाम गंगा हरजीवनदास काठियावाड़ी था। गंगा को बचपन में फिल्मों में अभिनेत्री बनने का शौक़ था। सोलह साल की उम्र में गंगा को अपने पिता के मुंशी से प्यार हो गया और उसके साथ शादी करके वह मुंबई भाग गईं। यह 1960 का दौर था।
यहां गंगा का सामना जिंदगी की सच्चाई से हुआ। जब उनके पति ने धोखा देकर महज 500 रुपये में कोठे पर बेच दिया। यहां से लौट पाना मुश्किल था और गंगा यह जानती थी कि अब घर बहुत पीछे छूट चुका है। लिहाज़ा गंगा ने यहीं रहने का फैसला किया। अब वह गंगूबाई बन चुकी थी। गंगूबाई काठियावाड़ी…
गंगूबाई कोठे पर थी। जल्दी ही उसका नाम बढने लगा और वे वेश्यालय चलाने लगीं। वे सेक्सवर्कर्स के लिये मां की तरह थी। कहा जाता है कि गंगूबाई ने किसी भी लड़की को बिना उसकी मर्जी के कोठे पर नहीं रखा।
उन्होंने कई महिलाओं को वापस उनके घर पहुंचाया। ये वे महिलाएं थीं जिन्हें धोखा देकर बेच दिया गया था। गंगूबाई ने इन महिलाओं को धोखा देने वाले लोगों के खिलाफ भी कदम उठाए।
गंगूबाई सेक्सवर्कर्स की भलाई के लिये काम करतीं। उनका रुतबा उस समाज में लगातार बढ़ रहा था। उन्होंने यहां स्थानीय चुनावों में भी जीत हासिल की। इस बीच कोठा भी चल रहा था और बेहतरी के ये काम भी।
वे अब कमाठीपुरा रेड लाईट एरिया की मुखिया बन गईं और अब उन्हें गंगूबाई काठेवाड़ी के नाम से जाना जाता था।
करीम लाला ने रखा गंगूबाई पर अपना हाथ –
कोठे पर तरह-तरह के लोग आते। इनमें एक गैंगस्टर पठान भी था। पठान गंगूबाई के साथ जबरदस्ती करता, उसे इस्तेमाल करता और बिना कुछ दिये चला जाता।
इससे गंगूबाई की हालत बिगड़ने लगी। यह सब लगातार होता रहा और गंगूबाई और उनका कोठा इससे परेशान हो चुका था। इसके बाद पठान का पता लगाया गया।
पता चला कि पठान का नाम शौकत खान था और वह उस समय मुंबई के डॉन करीम लाला का आदमी था। गंगूबाई करीम लाला के पास पहुंच गईं। उन्होंने अपनी सारी कहानी करीम लाला से कही।
लाला का दिल पिघल गया और उन्होंने गंगूबाई को उनकी हिफ़ाज़त करने की ज़बान दे दी। अगले दिन वो पठान शौकत खान फिर कोठे पर आया और यहां उसकी जमकर धुलाई की गई।
गंगूबाई पर करीम लाला का हाथ था लिहाज़ा ये दिन अब उनके लगातार बढ़ने वाले रुतबे की पहली सीढ़ी था।
गंगूबाई ने ही किया था सेक्सवर्कर्स के लिए अलग जगह का इंतजाम –
गंगूबाई का मानना था कि सेक्सवर्करों के लिये शहर में एक अलग स्थान होना चाहिये। वे महिला सशक्तिकरण पर भी खुलकर बोलती थीं। उन्होंने इस मुद्दे पर मुंबई के आजाद मैदान पर एक भाषण भी दिया था जो काफी चर्चित हुआ।
इस बीच एक स्कूल के लिये मुंबई के कमाठीपुरा वेश्यालय क्षेत्र को हटाने की मांग की जा रही थी। दरअसल शहर में एक सैंट एंथनी गर्ल्स हाई स्कूल के लिये यह योजना थी और स्कूल के नजदीक मौजूद वेश्यालय की खिलाफ़त होने लगी।
गंगूबाई ने इसे रोकने के लिए हर तरह की कोशिश की लेकिन वे सफल न हो सकीं। आख़िरकार उन्होंने अपने राजनीतिक परिचितों की मदद लेकर बड़ी मुश्किल से एक मुलाकात तय की।
यह मुलाकात थी देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से। मुलाकात औपचारिक रूप से कहीं दर्ज नहीं है लेकिन एस हुसैन ज़ैदी की किताब माफ़िया क्वीन्स ऑफ मुंबई में इसका जिक्र है।
किताब के मुताबिक…
गंगू बाई की सजगता और स्पष्ट विचारों से नेहरू भी हैरान रह गए, उन्होंने गंगूबाई से सवाल किया था कि वे इस धंधे में क्यों आईं? जबकि उन्हें अच्छी नौकरी या अच्छा पति मिल सकता था।
इस पर गंगूबाई ने तुरंत ही नेहरू के सामने प्रस्ताव रखा। उन्होंने नेहरू से कहा कि अगर वे उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने के लिये तैयार हैं तो वे ये धंधा हमेशा के लिये छोड़ देंगी। नेहरू को ऐसे जवाब की उम्मीद न रही होगी लिहाज़ा वे दंग रह गये। ज़ाहिर तौर पर उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
इसके बाद गंगूबाई ने कहा –
प्रधानमंत्री जी नाराज़ मत होईए। मैं तो अपनी बात साबित करना चाहती थी। सलाह देना आसान है लेकिन उसे खुद अपनाना मुश्किल है।
इसके बाद नेहरू ने गंगूबाई की मदद की। उन्होंने खुद इस मामले में हस्तक्षेप किया और फिर कमाठीपुरा क्षेत्र को हटाने का काम रोक दिया गया।
गंगूबाई के मरने के बाद भी उनका नाम अब तक कोठों में लिया जाता है। गंगूबाई की तस्वीरें कोठों में लगाई जाती हैं क्योंकि उन्होंने सेक्सवर्कर्स की बेहतरी के लिये आवाज़ उठाई और कईयों को इस पेशे में आने से बचाया भी।
इनपुटः एस हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई’ व बीबीसी हिन्दी