प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री तब हो रही है जब हार्दिक जाने को हैं और कन्हैया चुप


प्रशांत इस बार कोई सेलिब्रेटेड पीआर मैनेजर के तौर पर नहीं बल्कि नेता की तौर पर कांग्रेस में आ रहे हैं, एक बिना जनाधार वाले नेता, उनके भविष्य पर कांग्रेस के ओल्ड गार्ड फैसला अहम होगा


आदित्य सिंह
अपनी बात Updated On :
प्रशांत किशोर


इंदौर। प्रशांत किशोर (पीके) के कांग्रेस में आने की ख़बर है। कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर की मध्यप्रदेश में भूमिका अहम होगी और वे विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति तैयार करेंगे। हालांकि उनके यहां खुलकर काम करने को लेकर आख़िरी फैसला प्रदेश के वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता यानी ओल्ड गार्ड  ही लेंगे।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने पीके की एंट्री  को लेकर कहा है कि मध्यप्रदेश में फिलहाल प्रशांत किशोर की भूमिका तय नहीं है और हम किसी पर निर्भर नहीं रहते। कमलनाथ के बयान से साफ है कि पीके को भले ही कांग्रेस अध्यक्ष से फ्री हैंड मिल जाए लेकिन उन्हें कामकाज मप्र में पार्टी के बड़े नेताओं की निगरानी में ही करना होगा। प्रशांत किशोर का आना पार्टी में युवा नेताओं के भविष्य को भी तय करेगा क्योंकि अब तक कांग्रेस में युवा नेता, बूढ़े नेताओं के आगे कुछ खास नहीं कर सके हैं।

कांग्रेस के अंदरूनी ढ़ांचे में भारतीय जनता पार्टी की तरह अनुशाषित नहीं है। यह बात कई बार बाहर आती रहती है और अपने इस स्वभाव से बंधे ज़िद्दी कांग्रेसी नेता  प्रशांत किशोर के प्रोफ़ेशनल रवैये के साथ कितना कदमताल कर पाएंगे यह कहना मुश्किल है।

मप्र की राजनीति को बेहद करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी प्रशांत किशोर की एंट्री को लेकर सकारात्मक नज़र आते हैं। उनके मुताबिक पीके की भूमिका एमपी में अहम होगी और उन्हें वरिष्ठ नेताओं का साथ भी मिलेगा। तिवारी के मुताबिक कांग्रेस फिलहाल जिस स्थिति में नजर आ रही है वह किसी भी आने वाले को दरकिनार नहीं कर सकती और प्रशांत किशोर को तो बिल्कुल भी नहीं। हालांकि खुद प्रशांत किशोर को इस पुरानी पार्टी के कल्चर को समझने की ज़रूरत होगी।

हालांकि यह भी जानना ज़रूरी है कि प्रशांत किशोर अब तक जेडीयू को छोड़कर जिस भी दल से मिलकर चुनावी रणनीति के काम में लगे हैं उस दौरान वे कभी भी एक राजनेता की भूमिका में नहीं रहे लेकिन इस बार वे कांग्रेस के साथ एक प्रोफेशनल नहीं बल्कि एक नेता की भूमिका में होंगे। वे भले ही एक जनाधार वाले नेता की तरह न  हों लेकिन चुनाव जिताने का उनका रिकार्ड मौजूदा प्रदेश कांग्रेस के किसी भी नेता से ज़्यादा है।

हालांकि प्रशांत किशोर के आलोचक इसे सही नहीं मानते। उनके काम का विश्लेषण करते आ रहे वरिष्ठ पत्रकार व्यालोक पाठक कहते हैं कि प्रशांत किशोर एक पीआर मैनेजर के अलावा कुछ नहीं और वे केवल इसलिए चर्चाओं में बने रहे हैं क्योंकि वे देश के उस नेता के करीबी रहे हैं जो तब से अब तक के समय में देश का  प्रमुख चेहरा हैं। इसके अलावा प्रशांत किशोर जहां भी गए वहां भी नेताओं की भूमिका ही अहम रही है। उनके रहते हुए बंगाल में ममता को जीत ज़रूर मिली लेकिन भाजपा ने भी ऐतिहासिक बढ़ोत्तरी दर्ज की।

पाठक के मुताबिक इससे पहले वे उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के साथ थे लेकिन बड़े तौर पर असफल रहे। उन्होंने जेडीयू में पीआर मैनेजर से नेता बनने का प्रयास किया लेकिन वे छह महीने भी खुद को नहीं बचा पाए। यहां वे कांग्रेस के साथ नेता के रूप में आ रहे हैं लेकिन इस पार्टी में राहुल गांधी जैसे नेता खुद ही चुनाव हार चुके है।

प्रशांत किशोर उस समय पार्टी में आ रहे हैं जब युवा नेता कांग्रेस छोड़ रहे हैं। विपक्ष में रहकर राजनीतिक तौर पर प्रतिष्ठा हासिल करने के पर्याप्त अवसरों के बावजूद कांग्रेसी युवा नेताओं को मंच देने में पार्टी नाकाम साबित हुई है। मध्यप्रदेश के मामले में ज्योतिरादित्य सिंधिया को नहीं भूला जा सकता। जिनकी नाराजगी की वजह दिग्विजय सिंह और कमलनाथ बताए गए थे।

हालांकि अभी भी प्रदेश कांग्रेस में दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह, कांतिलाल भूरिया के बेट विक्रांत भूरिया जैसे युवा नेता अपने पिता की छांव में सक्रिय हैं। वहीं कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ छिंदवाड़ा से अपने पिता के स्थान पर सांसद बन चुके हैं और उनकी सक्रियता केवल अपने संसदीय क्षेत्र में ही है।

पार्टी में युवा नेता कम हो रहे हैं और जैसे पार्टी ही उन्हें खत्म कर रही है। हालांकि कांग्रेस के इतिहास को देखें तो पार्टी में युवा नेताओं को अंदरूनी स्तर पर हमेशा ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।

प्रशांत किशोर का कांग्रेस पार्टी में आना उस समय हो रहा है जब गुजरात के पाटीदार आंदोलन के फेम रहे हार्दिक पटेल की अब कांग्रेस से भाजपा में जाने की ख़बरें चल रहीं हैं।

हार्दिक पटेल

इससे पहले 2021 में जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार भी कांग्रेस में आए थे और उम्मीद थी कि इससे पार्टी में कोई धार आएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस में न रहते हुए लगभग हर मुद्दे पर बेबाकी बोलने वाले कन्हैया कुमार अब काफी समय से कुछ खास नहीं बोल रहे हैं।

कन्हैया कुमार

साल 2022 में देश में कई बड़े मुद्दे रहे हैं लेकिन टीवी पर कन्हैया कुमार कम ही बार इन पर बोलते नजर आए हैं वहीं उनकी ट्विटर टाइमलाइन पर भी इस साल में करीब 30-35 ट्वीट ही किये गए हैं।

हार्दिक पटेल की तरह कन्हैया ने सार्वजनिक तौर पर पार्टी नेतृत्व से कोई नाराज़गी तो व्यक्त नहीं की लेकिन इस समय में उनकी चुप्पी कभी उनसे प्रभावित रहने वाले लोगों को खल रही है।


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