राहुल गांधी ने देर से ही सही शुरुआत कर दी है। चुनौती बड़ी है और मुक़ाबला भी आसान नहीं है। सारे संसाधनों और मीडिया का एकछत्र स्वामी इस समय सत्तारूढ़ दल ही है।…
देश को गाँधी और गोडसे के बीच चुनाव करना है और किसी भी संवेदनशील भारतीय के लिए इसमें कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए कि उसे नफ़रत चाहिए या प्रेम!
इस समय केवल बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में पटना के जून 1974 जैसा माहौल है। कमी सिर्फ़ एक है और वह काफ़ी बड़ी है। देश के पास जेपी के क़द का…
प्रेस भी चाहेगा कि प्रधानमंत्री मोदी इन सवालों का जवाब दें, लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने नौ साल से कोई प्रेस कान्फ्रेंस नहीं की है तो वहाँ किसी को जवाब देंगे, इसकी कोई…
प्रधानमंत्री ने विपक्ष के बहिष्कार के बीच अपने सपनों की नई संसद में प्रवेश कर लिया है! प्रधानमंत्री अगर उचित समझें तो पुरानी संसद और पुराने इतिहास की हिफ़ाज़त का काम विपक्ष को…
क्या आंदोलन कर रहे खिलाड़ियों से भी सरकार वैसे ही निपटेगी जैसे किसानों और शाहीन बाग के आंदोलनकारियों से निपटा गया? या हिंडनबर्ग और ईडी के दुरुपयोग के आरोप की तरह इसे भी…
संसद को देश की ‘सबसे पड़ी पंचायत’ तो कहा जा सकता है, लेकिन इसे ‘मंदिर’ कहना इसके मूलभाव से खिलवाड़ करना है। ख़ासतौर पर सरकार की असफलताओं को ‘दिव्यता’ से ढंकने का प्रयास…
प्रधानमंत्री के नौ साल के कार्यकाल को लेकर इस वक्त बड़े-बड़े रिपोर्ट कार्ड जारी किए जा रहे हैं। ये कार्ड अगले साल तक और भारी-भरकम हो जाएँगे। इसलिए कि चुनाव जीतने का असली…
पत्रकारिता में राजनीतिक प्रतिबद्धता परिलक्षित होना वैचारिक गुलामी ही कही जाएगी। स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया जहाँ लोकतंत्र को मजबूत करता है वहीं कमजोर मीडिया लोकतंत्र को कुपोषित करता है।
सरयूसुत मिश्रा लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक अवसर नई संसद का लोकार्पण लोकतंत्र के मूल्यों पर वैचारिक आपातकाल के अवसर के रूप में बदलता दिखाई पड़ रहा है। जिस संसद के मंदिर में सजदा…
कांग्रेस आलाकमान की ओर से राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भोपाल में पत्रकारों के सामने यह ऐलान करके कि राज्य में चुनाव चेहरे पर नहीं बल्कि मुद्दों पर लड़ा जाएगा, फिर एक बार…
यशपाल बेनाम की बेटी न पहली है और न आख़िरी जिसने प्रेम-पथ पर चलना चुना है। नफ़रत प्यार से हमेशा हारा है। इस बार भी हारेगा।
यह जो ‘नौजवान’ अपने सपनों को पूरा करने के लिए निकला है उसे पाउलो कोएल्हो भी सच साबित कर रहे हैं।
सरयूसुत मिश्रा राजनीति में जीत-हार के बीच बदलती सियासी धारा हिंदुत्व पर टिक गई है। कर्नाटक में कांग्रेस ने भी बजरंगबली के मंदिर बनाने का वायदा करके हिंदुत्व की धारा में बड़ी छलांग…
सीएम और डिप्टी सीएम तथा ढाई-ढाई साल सीएम का फॉर्मूला सियासत के सत्ता मोह को ही दिखाता है। संविधान से ऊपर सियासत को महत्व देना लोकतंत्र की भावनाओं का सम्मान नहीं कहा जाएगा।
लोकतंत्र में बहुमत पाने के लिए यह तरीके भले ही देर से सही लेकिन आत्मघाती ही साबित होंगे। भूल होना प्रकृति है मान लेना संस्कृति है और सुधार लेना ही प्रगति है।
अमेरिका के गृह विभाग ने सोमवार को धार्मिक आजादी की स्थिति पर भारत समेत कई देशों को लेकर रिपोर्ट जारी की थी। भारत सरकार ने उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया। पत्रकार पंकज…
गवर्नेंस का आधार स्तंभ आईएएस अफसर कहे जाते हैं। अगर इनके साथ ही सही काम करने की स्वतंत्रता नहीं बचेगी तो फिर सिस्टम के सामान्य हालात कैसे सुधारे जा सकते हैं?
ये हार सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी के चेहरे की हार है। आम जनता के पैसों से 42 रैलियां और 28 रोड शो के बावजूद वे 50% सीटें भी नहीं निकाल पाए।
2024 के इक्वेशंस अभी यथावत् हैं। स्टेटस-को डगमगाया नहीं है। बीजेपी अभी भी लोकसभा चुनावों में लीड कर रही है और हैट्ट्रिक के लिए तैयार है।