संगठन की कार्यसमिति न हुई, राजनीतिक रेवड़ी का भंडारा हो गया, जहां सब को कुछ न कुछ टिकाना जरूरी है। कुल मिलाकर ‘एजडस्टमेंट’ की यह आजमाई हुई ‘वैक्सीन’ है, जिसे हर पार्टी को…
समय बीतने के साथ ऐसा हो रहा है कि प्रधानमंत्री के मंच और जनता के बैठने के बीच की दूरी लगातार बढ़ती जा रही है। दोनों ही एक-दूसरे के चेहरे के ‘भावों’ को…
जो बहस का मुद्दा बन रहा है, वो ये कि लूडो कौशल का खेल या किस्मत का? किस्मत का खेल मानने वालों का तर्क यह है कि लूडो का खेल गिरने वाले पांसे…
मीडिया को अपनी छवि पर विचार करने की जरुरत है। सब पर सवाल उठाने वाले माध्यम ही जब सवालों के घेरे में हों तो हमें सोचना होगा कि रास्ता सरल नहीं है। इन…
चंद अपवादों को छोड़ दें तो मुख्य धारा के प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस समय सरकारी बंदरगाह (गोदी) पर लंगर डालकर विश्राम कर रहा है।
जो हालात हैं, उसे देखते हुए यही उपलब्धि मानें कि पार्टी ने कम से कम हार का विश्लेषण करने का साहस और इच्छाशक्ति तो दिखाई, वरना जो समस्या है, उसका निदान अभी भी…
ट्रम्प आज भी अपनी हार को स्वीकार नहीं करते हैं। उनका आरोप हैं कि उनसे जीत चुरा ली गई। ट्रम्प फिर से 2024 के चुनावों की तैयारी में ताक़त से जुटे हैं।
हमारी मौजूदा स्थिति को लेकर अगर पश्चिम के सम्पन्न राष्ट्रों में बेचैनी है और वे सिहर रहे हैं तो उसके कारणों की तलाश हम अपने आसपास के चौराहों पर भी कर सकते हैं।…
सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म ट्विटर पर किसी आलोचक ने ट्वीट किया था: “2014 में जिसके पास हर समस्या का हल था वही आदमी आज देश की सबसे बड़ी समस्या बन गया है।“ इस ट्वीट…
मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया अब हमारे बीच नहीं रहे। उनसे संबंधित एक महत्वपूर्ण संस्मरण का उल्लेख करना चाहूंगा। उनकी साहसपूर्ण एवं सार्थक पत्रकारिता को सलाम।
इस समय वह सम्मोहन दरक रहा है। आज उनकी उसी जनता को हिंदू-मुस्लिम भेदभाव के बगैर अपनी जानें देना पड़ रही है।
दुनिया के प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘लांसेट’ ने अगस्त महीने तक भारत में कोई दस लाख लोगों की मौत होने की आंशका जताई है।
प्रधानमंत्री को उनकी वर्तमान जिम्मेदारियों में लगाए रखना इस तथ्य के बावजूद ज़रूरी है कि उनकी सरकार कथित तौर पर एक ‘जीते जा चुके’ युद्ध को हार के दांव पर लगा देने की…
बंगाल के चुनाव परिणामों के सिलसिले में ममता बनर्जी को भी एक सावधानी बरतनी होगी। वह यह कि उन्हें इस जीत को अपनी या पार्टी की विजय मानने की गलती नहीं करनी चाहिए।
किसी भी ऐसे राष्ट्राध्यक्ष का, जो प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं के पालन में ‘राष्ट्रधर्म’ जैसा यक़ीन रखता हो, मज़बूत रहना निश्चित ही ज़रूरी भी है। जितना बड़ा राष्ट्र, मज़बूती की ज़रूरत भी उतनी ही बड़ी।…
आपातकाल के दौरान मीडिया की भूमिका को लेकर लालकृष्ण आडवाणी ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि तब मीडिया से सिर्फ़ झुकने के लिए कहा गया था पर वह घुटनों…
विकल्प जब सीमित होते जाते हैं तब स्थितियाँ भी वैसी ही बनती जाती है। टीकों की सीमित उपलब्धता को लेकर भी ऐसा ही हुआ था कि अभियान ‘पहले किसे लगाया जाए’ से प्रारम्भ…
यह वबा है। वबा हवा की मानिंद अपने साथ बहुत कुछ लेकर चलती है। संदेह भी यकीन भी। गुस्सा भी, लालच भी, अवसर भी और आश्चर्य भी। ज़रूरत इन सभी को एक साथ…
इंसान की तरह ही लोकतंत्र भी कमजोर होता है, बीमार हो जाता है। लोकतंत्र की गठरी पर चोर की निगाह हमेशा लगी रहती है। नागरिक मुसाफिर को जाग कर अपनी गठरी को बचाना…
नाराज़गी ममता और मोदी दोनों से है पर दूसरे के प्रति ज़्यादा है जो पहले के लिए सहानुभूति पैदा रही है। इसका कारण मुख्यमंत्री का ‘एक अकेली महिला’ होना भी हो सकता है।