ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान दोनों की कंडीशन अलग-अलग हैं। चुनाव के बाद अगर सिंधिया के अधिकतम लोग नहीं जीतते हैं तो समीकरण बदल जाएंगे।
वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 3 नवंबर को हो रहे मतदान से पहले देशगाँव के साथ मध्य प्रदेश और इसकी सियासत पर लम्बी बातचीत की। उनका कहना है कि सिंधिया को बीजेपी में गये 8-9 महीने हो रहे हैं, लेकिन उनको अब केंद्र में कुछ नहीं मिला। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी उनको संगठन में कुछ नहीं दिया। इससे समझा जा सकता है कि मध्य प्रदेश के चुनाव में उनकी अहमियत क्या होगी।
भारतीय जनता पार्टी के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि देश में आदिवासियों-दलितों-पिछड़ों का जो भी प्रतिशत हो, लेकिन बीजेपी को पीएम बनाने और सत्ता में रहने के लिए केवल यूपी, बिहार, राजस्थान, उत्तराखंड, गुजरात आदि राज्यों की सीटें ही चाहिए। सत्ता में रहने के लिए उनको दूसरों की सहमति चाहिए ही नहीं। मसलन, बीजेपी को साउथ की सहमति चाहिए ही नहीं।
कांग्रेस इस मामले में बीजेपी से कुछ अलग है। साउथ में कांग्रेस बीजेपी से ज्यादा है। बीजेपी को आज हाथ उठाने वाले चाहिए। यही उनका हिन्दू विज़न है। सत्ता के लिए पैसा बहाने में भी नैतिकता का प्रश्न नहीं खड़ा होता है। गुजरात बीजेपी के विजय रुपाणी ने तो कहा ही था कि गुजरात कांग्रेस की कुल कीमत 25 करोड़ रुपये है।
इसकी वजह यह है कि बीजेपी इलेक्टोरल कॉलेज, अमेरिकी पैटर्न पर सोचती है। वे कहते हैं, ‘’जो बीजेपी को गालियां दे रहे थे, वे बीजेपी के साथ हैं। मायावती का अभी हाल में आया बयान भी देखिए। वे समाजवादी पार्टी के खिलाफ बीजेपी को समर्थन देने की बात कह रही हैं। अब नैतिकता की कोई बात नहीं रही। बीजेपी को राज्यसभा की अधिक से अधिक सीटें चाहिए। एनडीए के अलायंस पार्टनर एक-एक करके निकल गए हैं। अब कुछ बचे हैं, जैसे नीतीश बचे हैं, अठावले बचे हैं। बीजेपी के लिए चुनौतियां ज्यादा हैं।‘’
श्रवण गर्ग इस बात पर ज़ोर देते हैं कि मध्य प्रदेश में 28 जगह इतने महत्वपूर्ण चुनाव हैं, लेकिन बीजेपी के स्टार कैम्पेनर पीएम नहीं आए। इससे भी संकेत निकलता है कि ज्योतिरादित्य और शिवराज का समीकरण चुनाव के बाद नहीं चलेगा।