विकास की पींगे भरता भारतीय समाज भी पाश्चात्य संस्कृति का शिकार हो गया है. एक तरफ हम अपने बुर्जुगों का सम्मान करने की बात करते हैं और दूसरी तरफ उन्हें अपने से दूर कर वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं. समय के साथ भारतीय संस्कृति और परम्परा पर यह दाग है लेकिन मध्यप्रदेश इस बात पर गर्व कर सकता है कि इस दाग को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह श्रवण कुमार बनकर इन वृद्धजनों की सुध ले रहे हैं. यह बात तय है कि सरकार अपने स्तर पर वृद्धजनों को अपनों से दूर होने से कानूनन नहीं रोक सकती है लेकिन उनकी बेहतरी के लिए अनेक स्तर पर प्रयास कर रही है. इन्हीं में एक मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना का लाभ बहुत बड़े वर्ग को मिल रहा है. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान अपने इन्हीं नवाचार के माध्यम से समाज में आ रही कुरीतियों को दूर करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. इस बात को लेकर आप राहत महसूस कर सकते हैं कि मध्यप्रदेश में वृद्धाश्रम का चलन थम सा गया है. आज जब हम विश्व वृद्धजन दिवस की चर्चा करते हैं तो स्वाभाविक है कि मध्यप्रदेश में वृद्धजनों के हक में हो रहे प्रयासों की चर्चा करना लाजिमी हो जाता है.
वह दिन और दिन की तरह ही था. मुख्यमंत्री निवास में हमेशा की तरह हर धर्म और वर्ग के तीज-त्योहारों का आयोजन होता था, उस दिन भी एक ऐसे ही आयोजन-उत्सव मनाया जा रहा था. ऐसे खास मौकों पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह दम्पत्ति लोगों के बीच में आने के लिए अपने कमरे से बाहर आ रहे थे. आते-आते रास्ते में उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि मध्यप्रदेश में ऐसे हजारों माता-पिता हैं जिनके मन में तीर्थ जाने की अभिलाषा पल रही है. अनेक कारणों के बीच आर्थिक दिक्कतों के कारण उनकी अभिलाषा कभी पूरी नहीं हो पाती है. उन्होंने अपने मन में आये विचार को अपनी धर्मपत्नी साधना सिंह से साझा किया. विचार उत्तम था और एक तरह से यह विचार मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का सपना बन गया था. लगातार इस बारे में सोचते और विचारते रहे. अपने अफसरों से इस बारे में राय-मशविरा किया और लगा कि वह समय आ गया है कि जब सपने को संकल्प में बदला जाए. आखिरकार करीब एक दशक पहले साल 2012 के माह अगस्त में एक सपने का संकल्प के रूप में जमीन पर उतरा. तब इसे मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना का संबोधन दिया गया. 2022 में एक बार फिर मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना की आशीष-दुआ और मुस्कराहट की रेल अपनी यात्रा पर निकल पड़ी है.
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की संवेदनशीलता को पहचानने के लिए मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना एक अनुपम उदाहरण है. यह योजना लोकप्रियता के लिए नहीं है और ना ही किसी राजनीतिक लाभ के लिए अपितु यह उस पीड़ा को कम करने की उनकी एक विनम्र कोशिश है. बुजुर्गों के मन में जीवन में कम से कम एक बार तीर्थ स्थानों के दर्शन करने की पवित्र भावना होती है.
बुजुर्गों ने मुख्यमंत्री के सामने तीर्थ-दर्शन की चाह रखी तो मुख्यमंत्री ने जनभावनाओं को मूर्तरूप देने के लिए विचार-विमर्श किया और किसी भी राज्य की अलहदा योजना के रूप में स्थापित हो गयी.
मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना धार्मिक भावनाओं के संरक्षण और सम्मान का सर्वोत्तम उदाहरण है. भारतीय संस्कृति में धर्म तीर्थों की यात्रा की परम्परा पुरातनकाल से चली आ रही है.
मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना के एक दशक की यात्रा में कोविड आने-जाने के कारण कुछ बाधायें आयी. कोविड काल की पीड़ा को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने दिल से महसूस किया और वे जानते थे कि कितनों ने अपनों को खोया है. असमय दुनिया को अलविदा कहने वाले वृद्धजनों की तादाद भी कम नहीं रही है. एक मनुष्य के रूप में शिवराजसिंह चौहान को यह बात जख्मी करती रही कि वे असमय दुनिया से जाने वाले बुर्जुगों को तीर्थ दर्शन पर नहीं भेज पाये.
राज्य की जनकल्याणकारी नीतियों और योजनाओं को अमलीजामा पहनाते हुए उनके नौकरशाह मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना को शायद बिसरा दिया होगा लेकिन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान इस बात को नहीं भूले. मनुष्यता के भाव से भरे इस राजनेता को तब शायद दिलासा मिली होगी जब उन्होंने दुबारा मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना का श्रीगणेश किया.
यही नहीं, पहली खेप में झुर्रियां लटके, निराश चेहरे जब मुस्कराते, बतियाते और आशीष देते तीर्थ की ओर चल पड़े तो शिवराजसिंह के चेहरे पर भी संतोष का भाव था. आप राजनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का आंकलन कर सकते हैं लेकिन एक मनुष्य के तौर पर आपको उनके साथ खड़ा होना पड़ेगा.
मानवीय संवेदनाओं के पिटारे में धर्म और आस्था का भाव सदैव हिलोरें मारता है. मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना उनके लिए व्यक्तिगत संतोष की बात है तो समाज के समक्ष यह मिसाल भी है कि सम्पन्न और सुविधा में जीते जो बच्चे अपने माता-पिता के लिए श्रवण कुमार नहीं बन पाये, उनके लिए शिवराजसिंह चौहान एक सपूत बनकर खड़े हैं. शिवराजसिंह के लिए आशीर्वाद के हजारों हाथ जब उठते हैं तो यह एक किस्म की अनुभूति होती है.
राज-काज, राजनीति तब शायद शून्य में तिरोहित हो जाती है. यह इस बात को स्थापित करती है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह की यह अनुपम योजना का अनुकरण देश के अनेक राज्यों ने किया. हालांकि अनुगामी बनने वाले राज्यों के मन में अनुराग नहीं, राजनीतिक लाभ की मंशा हो सकती है. कहना अन्यथा ना होगा कि सब शिवराजसिंह नहीं हो सकते हैं.
यहां यह भी गौर करने की बात है कि वृद्धाश्रम में जो हमारे बुर्जुग रहे रहे हैं, वे अपने समय के अपने विषयों के सिद्धहस्त जानकार रहे हैं. किसी की गणित विषय में मास्टरी है तो कोई हिन्दी का जानकार है. अंग्रेजी, इतिहास और ऐसे अनेक विषयों के साथ गीत-संगीत आदि-इत्यादि में पारंगत इन विद्धान वृद्धजनों का उपयोग सीएम राईज स्कूल में किया जा सकता है. इनकी सेवाएं लेने से इनके भीतर का ना केवल अकेलापन खत्म होगा बल्कि समाज को उपयोगी लोग मिल सकेंगे. इनके पास अनुभव का खजाना है जो नयी पीढ़ी के लिए ज्ञान का मंदिर खोल देंगे.
शिवराज सिंह सरकार इस दिशा में कुछ प्रयास करती है तो मनोवैज्ञानिक तौर पर इनके जीवन में तो बदलाव आयेगा ही बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को पठन-पाठन के लिए विशेषज्ञ मिल जाएंगे. यह बात तय है कि इन्हें इस उम्र में पैसों से अधिक सम्मान की जरूरत है और यह कहना बेमानी नहीं होगा कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ऐसे गुणाी सर्जकों का निरंतर सम्मान करते आयी है. उम्मीद है कि आने वाले समय में वृद्धाश्रम का नाम बदलकर ज्ञान लोक रखा जाए जहां ये लोग स्वयं में कुंठित, निराश और बेबस समझने के बजाय स्वयं को सशक्त और उपयोगी समझ सकें.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)